बूढ़ी मां के कदमों में टूट गई जवान बेटे की सांस; घाटों पर चिताएं ठंडी नहीं हो रहीं, कब्रिस्तानों में दो गज जमीन नहीं बची
भोपाल: शहर के भदभदा श्मशान घाट की है। यहां हर दिन 100-150 लोगों का अंतिम संस्कार हो रहा है, जबकि सरकारी आंकड़ों में पूरे जिले में केवल 10-12 मौतें ही दर्ज हो रही हैं।
हमारा मकसद आपको डराना नहीं है, बल्कि उस सच्चाई से रूबरू कराना है जिसे जानना आपके लिए जरूरी है। सरकारी फाइलों में दर्ज कोरोना से होने वाली मौतों के आंकड़ों से हकीकत कहीं ज्यादा भयावह है। आप इसी से अंदाजा लगा सकते हैं कि अब श्मशान घाटों पर चिताएं ठंडी होने से पहले बुझा दी जा रहीं, ताकि दूसरे का अंतिम संस्कार किया जा सके। कब्रिस्तानों में शव को दफन करने के लिए जगह तक नहीं बची।
इसे देख आप खुद-ब-खुद देश के हालात से वाकिफ हो जाएंगे। तस्वीरें थोड़ा विचलित कर सकती हैं, क्योंकि इसमें आपको अपनों के खोने का दर्द दिखेगा। मर चुके सिस्टम की झलकियां, जनता की मायूसी और बेबसी दिखेगी। ये तस्वीरें आपको इस बात का भी एहसास कराएंगी कि आपके पास कितना भी पैसा क्यों न हो। आप कितने बड़े ओहदे पर क्यों न हों… अगर हल्की सी भी लापरवाही बरती तो आपके साथ आपके अपनों पर भी ये भारी पड़ सकती है।