छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद यह पहला लोकसभा चुनाव है जो बदले माहौल में हो रहा है। दो बातें हैं जिनकी वजह से राजनीतिक समीकरण बदले-बदले से हैं। पहला- प्रत्याशी चयन और दूसरा- विधानसभा चुनाव के अप्रत्याशित नतीजे। राज्य की 11 सीटों में दोनों दल के 22 प्रत्याशियों में से 19 के लिए यह पहला लोकसभा चुनाव है। यानी नए चेहरों का चुनाव। सिर्फ तीन प्रत्याशी सरगुजा के खेलसाय सिंह, महासमुंद से धनेंद्र साहू और जांजगीर से गुहाराम अजगले ही लोकसभा के अनुभवी है। कांग्रेस विधानसभा चुनाव के नतीजों के उत्साह से लबरेज है और राज्य में पहली बार लोकसभा चुनाव के दौरान उसकी सरकार है। कांग्रेस इस बार भाजपा के 10 सीटों पर जीत के सिलसिले को तोड़ने की स्थिति में है। भाजपा पिछले तीन लोकसभा चुनावों से 10-1 की हैट्रिक लगाई है।
बस्तर, रायपुर, राजनांदगांव और दुर्ग में भाजपा के पास केवल एक-एक विधानसभा सीट ही है। फ्रेश चेहरे और विधानसभा चुनाव परिणामों से हटकर तीसरा फैक्टर है जातिगत समीकरण। महासमुंद में दोनों प्रमुख प्रत्याशी साहू और दुर्ग में कुर्मी जाति से हैं। रायपुर की 9 विधानसभाओं में से 6 पर कांग्रेस और दो पर भाजपा विधायक हैं। एक सीट जोगी कांग्रेस के पास है। मोदी फैक्टर से भाजपा यहां विधानसभा की खाई पाटने का प्रयास कर रही है, कांग्रेस उसी परिणाम को दोहराने के लिए ताकत लगा रही है। भाजपा चुनाव को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर ले जा रही है। यह फैक्टर असरदार हो सकता है।
6 लोकसभा सीटों को विधानसभा से देखें…50 सीट: 40 कांग्रेस, 8 भाजपा और 2 जोगी की
रायपुर: पहली बार जाति हावी नहीं, चेहरों पर आधारित है यह चुनाव
यहां चुनाव पहली बार जातिगत समीकरण से हटकर चेहरों पर केंद्रित हो गया है। भाजपा ने रायपुर के पूर्व मेयर सुनील सोनी और कांग्रेस ने मौजूदा मेयर प्रमोद दुबे को उतारा है। भाजपा के रमेश बैस 7 बार जीते और कुर्मी बहुल इलाके से खासी लीड लेते रहे हैं। दोनों ही दलों ने कुर्मी समाज से बाहर के प्रत्याशी उतारे हैं। रमेश बैस का चुनाव में नही होना सबसे बड़ी चर्चा है।
बस्तर: भाजपा को भितरघात की आशंका, कांग्रेस विधायकों के भरोसे
आदिवासी वर्ग की सबसे अहम सीट पर कांग्रेस विधायक दीपक बैज और भाजपा के पूर्व विधायक बैदूराम कश्यप के बीच सीधी लड़ाई है। कश्यप परिवार के किसी सदस्य को न उतारकर भाजपा ने उनके समर्थकों की नाराजगी मोल ले ली है। इससे निपटना ही भाजपा के लिए चुनौती है। यहां 8 विधानसभा सीट में से केवल दंतेवाड़ा पर भाजपा है। यहां मोदी फैक्टर कितना चलेगा, देखना होगा।
राजनांदगांव: विधानसभा की हार को पलटने में जुटे हैं रमन सिंह
पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह के क्षेत्र राजनांदगांव और गृह नगर कवर्धा पर हमेशा भाजपा का दबदबा रहा है। विधानसभा में रमन सिंह की जीत का मार्जिन कम था और कवर्धा में भाजपा को सबसे बड़ी हार भी मिली थी, रमन सिंह और उनकी टीम इस माहौल को बदलने की कोशिश में है। रमन के करीबी संतोष पांडेय भाजपा और कांग्रेस से भोलाराम साहू आमने-सामने हैं।
कांकेर: संघ की ताकत लगेगी, कांग्रेस को बढ़त से उम्मीद
भाजपा ने आरएसएस से जुड़े मोहन मंडावी को उतारकर संघ की ताकत का इस्तेमाल करने की कोशिश की है। उनके सामने कांग्रेस के बीरेश ठाकुर हैं। आठ में से एक भी विधानसभा सीट भाजपा के पास नहीं है। भाजपा के लिए यह सीट कठिन है। संघ की सक्रियता और मोदी फैक्टर से भाजपा को आने वाले दिनों में तस्वीर बदलने की उम्मीद है।
महासमुंद: समाज से होकर गुजरेगी जीत की राह, दल भी इसी पर निर्भर
इस सीट का मिजाज थोड़ा अलग है। भाजपा और कांग्रेस की सीधी लड़ाई वाली सीट में जातिगत समीकरण के चलते इस बार दोनों ही दलों ने साहू समाज से प्रत्याशी उतारे हैं। विधायक धनेंद्र साहू कांग्रेस और भाजपा से चुन्नीलाल साहू हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि जातीय समीकरण ही सबसे महत्वपूर्ण होगा। वर्तमान में यहां से पांच विधायक कांग्रेस और तीन भाजपा के हैं।
दुर्ग: कांग्रेस के दिग्गजों की प्रतिष्ठा से जुड़ी है इस सीट की जीत-हार
दोनों प्रत्याशी कुर्मी समाज से हैं। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के प्रभाव वाली सीट पर भाजपा ने उनके भतीजे विजय बघेल को प्रत्याशी बनाया है। कांग्रेस से प्रतिमा चंद्राकर हैं। दोनों विधायक रह चुके हैं। विजय बघेल एक बार भूपेश को पाटन से हरा चुके हैं। प्रतिमा दुर्ग के दिग्गज नेता वासुदेव चंद्राकर की बेटी हैं। यहां मुकाबला रोचक हो गया है। इस सीट से कांग्रेस के दिग्गजाें की प्रतिष्ठा जुड़ी है।
- भाजपा पिछले 3 चुनाव से 11 में से 10 सीटें जीत रही
- इस बार दोनों दलों के 22 प्रत्याशियों में से 19 का यह पहला लोकसभा चुनाव