कांग्रेस की मौजूदा चुनौती में इजाफा करेगा पुडुचेरी में सरकार का पतन

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नई दिल्ली। पहले से ही चुनौतियों से जूझ रही कांग्रेस के लिए पुडुचेरी में सरकार का पतन उसकी सियासी मुसीबतें और बढ़ाएंगी। पांच राज्यों के चुनाव से ठीक पहले लगे इस बड़े झटके से पार्टी की राजनीतिक परेशानियों में इजाफा तो होगा ही, साथ ही पिछले कुछ महीनों से जारी अंदरूनी असंतोष के एकबार फिर से मुखर होने की आशकाएं बढ़ गई हैं। पुडुचेरी में कांग्रेस सरकार का नेतृत्व करने वाले मुख्यमंत्री वी. नारायणसामी पार्टी हाईकमान के करीबी हैं और ऐसे में सत्ता बचा पाने की उनकी असफलता की आंच कहीं न कहीं पार्टी नेतृत्व को भी परेशान करेगी।

सत्ता के लिहाज से पुडुचेरी का राजनीतिक प्रभाव चाहे बहुत ज्यादा न हो, मगर देश की सियासत में कांग्रेस के सिकुड़े आधार को देखते हुए पार्टी के मनोबल की दृष्टि से इसकी अहमियत थी। ऐसे में पार्टी की रीति-नीति और संगठन के संचालन को लेकर असंतोष की आवाज उठा रहे कांग्रेस के ‘जी 23’ के नेताओं के लिए पुडुचेरी का यह प्रकरण नेतृत्व पर दबाव बनाने का एक और मौका बन सकता है। विशेषकर यह देखते हुए कि जिन पांच राज्यों में चुनाव होने हैं, उनमें पुडुचेरी भी शामिल है और चुनाव में केवल दो-तीन महीने रह जाने के बावजूद कांग्रेस नेतृत्व अपनी सरकार नहीं बचा पाया। इतना ही नहीं सरकार गिर जाने के बाद सूबे में पार्टी के टूटे मनोबल का असर अप्रैल-मई में होने वाले चुनाव में भी पड़ सकता है। पार्टी के नेता भी अंदरखाने यह मान रहे कि पुडुचेरी में भाजपा ने कांग्रेस और द्रमुक के विधायकों को तोड़ कर जो सियासी व्यूह रचना की है, उसकी वजह से सूबे के चुनाव में पार्टी की चुनौतियां गहरी हो गई हैं।

पांच राज्यों के चुनाव से ठीक पहले लगे इस झटके को भुना सकता है असंतुष्ट गुट

वहीं, दूसरी तरफ गुलाम नबी आजाद को राज्यसभा में वापसी का मौका नहीं मिलने और मल्लिकार्जुन खड़गे को नेता विपक्ष बनाए जाने को लेकर असहज कांग्रेस का असंतुष्ट खेमा पुडुचेरी के घटनाक्रम के आधार पर सोनिया गांधी को लिखे गए अपने पत्र में उठाए गए मुद्दों को फिर गर्म करने के विकल्प पर मंथन करने लगा है। असंतुष्ट नेताओं का साफ कहना है कि पुडुचेरी में सरकार गिराने के पीछे भाजपा की चाहे जो राजनीतिक साजिश रही हो, मगर इसका खुला संकेत एक- डेढ़ महीने पहले ही पार्टी को मिलने लगा था। इसके बावजूद कांग्रेस के रणनीतिकार इसका राजनीतिक समाधान नहीं निकाल पाए और इसकी सबसे बड़ी वजह पार्टी में नेतृत्व को लेकर जारी दुविधा व संगठन के संचालन की खामी है। असंतुष्ट नेताओं के इन संकेतों से साफ है कि देर-सबेर कांग्रेस के मौजूदा हालात को लेकर लंबे समय से चल रही अंदरूनी हलचल में पुडुचेरी एक ताजा अध्याय बनेगा।

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