होली में छिपे हैं जीवन के रंग, जो देते हैं बड़े संदेश

Uncategorized देश धर्म-कर्म-आस्था मनोरंजन

सनातन धर्म में प्रत्येक मास की पूर्णिमा का बड़ा ही महत्व है और यह किसी न किसी उत्सव के रूप में मनाई जाती है। उत्सव के इसी क्रम में होली (Holi 2019), वसंतोत्सव के रूप में फाल्गुन मास की पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है।

रंगों का उत्सव होली (Holi 2019) एक सांस्कृतिक, धार्मिक और पारंपरिक त्यौहार है। आइए जानते हैं इस महापर्व से जुड़ी परंपराओं और उनसे जुड़े सामाजिक-आध्यात्मिक महत्व के बारे में…

आठ दिन नहीं होते शुभ कार्य

अष्टमी से लेकर पूर्णिमा तक के समय में कोई शुभ कार्य या नया कार्य आरम्भ करना शास्त्रों के अनुसार वर्जित माना गया है। होलाष्टक के आठ दिनों में नवग्रह भी उग्र रूप में होते हैं, इसलिए इन दिनों में किए गए शुभ कार्यों में अमंगल होने की आशंका रहती है।

जो होली सो होली

होली शब्द का संबंध होलिका दहन से भी है और इस शब्द का अर्थ यह भी इशारा करता है कि जो होना था हो गया। कहने का तात्पर्य यह कि पिछले वर्ष की गलतियां एवं बैर-भाव को भुलाकर आज के दिन एक दूसरे को रंग लगाकर, गले मिलकर रिश्तों को नए सिरे से आरम्भ किया जाए। इस प्रकार होली भाईचारे, आपसी प्रेम एवं सद्भावना का त्यौहार है।

होली के हजार रंग

होली भारतीय समाज में लोकजनों की भावनाओं को अभिव्यक्त करने का आईना है। परिवार को समाज से जोड़ने के लिए होली जैसे पर्व महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है। रीति-रिवाज़ों और परम्पराओं के अनुसार होली उत्तर प्रदेश में ‘लट्ठमार होली’ के रूप में, असम में ‘फगवाह’ या ‘देओल’, बंगाल में ‘ढोलपूर्णिमा’ और नेपाल आदि में ‘फागु’ नामों से लोकप्रिय है।

बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक

होलिका दहन बुराइयों के अंत एवं अच्छाइयों की विजय के पर्व के रूप में मनाया जाता है। होली यह संदेश लेकर आती है कि जीवन में आनंद, प्रेम, संतोष एवं दिव्यता होनी चाहिए। जब मनुष्य इन सबका अनुभव करता है, तो उसके अंतः करण में उत्सव का भाव पैदा होता है, जिससे जीवन स्वाभाविक रूप से रंगमय हो जाता हैं। रंगों का पर्व यह भी सिखाता है कि काम, क्रोध, मद, मोह एवं लोभ रुपी दोषों को त्यागकर ईश्वर भक्ति में मन लगाना चाहिए।

दूर होती है नकारात्म्क ऊर्जा

सौहार्दपूर्ण ढंग से होली खेलने से आस-पास की नकारात्मक ऊर्जा समाप्त होती है, वहीं सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। घर-परिवार पर देवी-देवताओं की कृपा बनी रहती है।

मुगलकाल में भी मनाई जाती थी होली

मुग़ल साम्राज्य के समय में होली की तैयारियां कई दिन पहले ही प्रारम्भ हो जाती थीं। मुगलों के द्वारा होली खेलने के संकेत कई ऐतिहासिक पुस्तकों में मिलते हैं। जिसमें अकबर, हुमायूं, जहांगीर, शाहजहां और बहादुरशाह जफ़र मुख्य बादशाह थे, जिनके समय में होली खेली जाती थी।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *