विश्व साइकिल दिवस पर विशेष

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-जब मैंने गली-गली में अखबारों को बेचकर अपनी कमाई से खरीदी थी एटलस साइकिल

टिप्पणी-मोहम्मद ताहिर खान

आज विश्व साइकिल दिवस है,उसी समय आत्मनिर्भर भारत से साइकिल निर्माता कंपनी एटलस के बंद होने की खबर है…दोस्तो मैंने भी एक जमाने में पैदल-पैदल गलियों में दैनिक अखबारों को बैचकर पहली कमाई से एटलस साइकिल खरीदी थी। गर्मियों के ही दिन थे अख़बार बाटने के बाद उसी दिन में दोपहर के समय अखबार के हॉकर से ग्राहकों को महीने के अंत मे दिए जाने वाले सर्कुलेशन बिल बनवा रहा था जिनको पाठकों को देकर उसके बदले उनसे अखबार के पैसे लेने रहते थे ओर फिर उन पैसों में से अपनी पगार काटकर हॉकर को देना होता था। उसी दौरान हॉकर ने मुझसे कहाँ की ताहिर गर्मियों में परेशान होते हो पैदल अखबार बाटते हो अगर तुम्हें एक शर्त पर अखबार बाटने के लिए नई साइकिल दिलवा दी जाए तो कैसा रहेगा उस दौरान मेरी खुशी का तो ठिकाना नही रहा मगर मैंने फिर हॉकर से लपक अंदाज में कहां भाई साहब शर्त कैसी शर्त तो उन्होंने कहाँ की इसके लिए तुम्हे कुछ नए ग्राहक बनवाने पढ़ेंगे औऱ अगर ऐसा होगा तो में तुम्हरी तनख्वाह भी बढ़ा दूंगा और नई साइकिल भी दिला दूंगा, तुम कुछ महीने अपनी पगार नही लेना तो साइकिल के पैसे भी जल्दी पट जाएंगे। मैं चाहता तो मेरे दादा जी यनि बाबूजी से या पिता से बोलकर साइकिलें ले सकता था मगर मैंने ऐसा नहीं किया क्योंकि मैं अपने पैसे से अपनी कमाई से ही साइकिल खरीदना चाहता था। फिर उस दिन मैंने खुशी-खुशी हामी तो भर दी मगर अगलें दिन के लिए यह चिंता सताने लगी के पता नही अख़बार के लिए नए ग्राहक मिलेंगे भी या नहीं,मगर नई साइकिल आने की खुशी इतनी थी कि उस खुशी ने उम्मीद को कम नहीं होने दिया और लगातार लोगों से संपर्क करता रहा इस दौरान कई नए ग्राहक अखबार के लिए बन चुके थे और मेरी साइकिल मुझसे बहुत करीब थी,में हॉकर को नए ग्राहकों की लिस्ट सौप चुका था और अपनी साइकिल के लिए इंतजार कर रहा था, मगर कुछ दिनों तक मेरा इंतजार पूरा नहीं हो सका और मैं पैदल ही अखबार बांटते रहा जब मैंने ज्यादा जिद की तो अखबार वाले भाई साहब मुझे साइकिल की दुकान पर लेकर पहुंचे और दुकान के ऊपर रखी कटी हुई पुरानी खटारा साइकिल दिखाने लगे की इनमें से जो पसंद आए वह ले लो मैं सोच में पड़ चुका था कि सपने तो नई साइकिल के थे अब मैं पुरानी क्यों लूं…औऱ वह साइकिल वाला दुकानदार भी अखबार हाकर को यह कहकर भड़का रहा था कि कई लोगो ने पहले भी उसकी दुकान से अखबार बांटने के लिए लड़कों को साइकिल दिलवाई है मगर लड़के चंद दिनों में ही रंग दिखा जाते है तब लपक के अखबार वाले भैया ने बोला कि ताहिर उन जैसा लड़का नही है इस पर मुझे भरोसा है। साइकिल पुरानी मिल रही थी तो में विचार करने की बात कहकर। उस दिन वहाँ से निकल लिया जब अगले दिन हॉकर भैया ने पूछा कि साइकिल लेना है कि नहीं, तो मैंने लपक के कहा कि साइकिल तो लूंगा मगर पुरानी नही नई, तो उन्होंने कहाँ की जो तुम्हारी मर्जी लो क्योंकि किश्तों में पैसे तो तुम्हे ही देने है….और फिर क्या था उन्होंने उस साइकिल दुकानदार को फोन किया कि ताहिर आ रहा उसे नई साइकिल दे देना…मैं गया और नई साइकिल ले आया.. वह साइकिल से फिर मैं अखबार बटता रहा और चंद महीनों में ही उसकी पूरी किश्त पट गई…आगे फिर वही साइकिल मेरे पत्रकारिता कॅरियर का सफर तय कर चुकी थी। क्योंकि उन दिनों में अखबार को पढ़-पढ़ के हाथों से ही खबरे लिखना सिख रहा था । अखबार बाटने के दौरान नज़र आने वाली लोगो की समस्या या अन्य जो भी खबरे होती थी वह में उस तरफ के रिपोर्टर को दे दिया करता । उन दिनों मेल नहीं हुआ करता था खबरों को फैक्स करना रहता था जब अगले दिन वह खबरे अखबार के पन्नो पर दिखतीं थीं तो खुशी का ठिकाना नहीं रहता था । कई बार रिपोर्टर मुझे ही खबरों का प्रत्यक्षदर्शी बना दिया करते थे जैसे कि स्थानीय छात्र ताहिर ने जानकारी देते हुए बताया तो फिर तो हमारी खुशी में और चार चांद लग जाया करते थे , एक दिन मैंने रिपोर्टर से कहा कि भाई साहब मैं जो खबर लिख कर देता हूं उनमें फोटो भी लग सकता है क्या? उन्होंने कहा क्यों नहीं जरूर तुम फ़ोटो दोगे तो वह भी जरूर छप जाएगा फिर में कुछ स्पेशल खबरों में फ़ोटो स्टूडियो के फोटो ग्राफर को ले जाकर अपनी कमाई से ही फ़ोटो निकलवाता और फिर कुछ दिनों बाद जब फोटो बनकर आता तो , मैं उसे और साथ में एक पन्ने पर खबर लिखकर दिया करता था,उस खबर को छपवाने के लिए उन दिनों 8 दिन तक इंतजार करना पड़ता था क्योंकि तब रोल वाले कैमरा हुआ करता था । सब फोटोग्राफरों के पास डीएसएलआर या डिजिटल वाला कैमरा नहीं था। जब उस कैमरे की रोल पूरी भर जाती थी तो वह उस रोल को लेब में धुलवाता फिर फ़ोटो देता था । जिसको में रिपोर्टर को दे दिया करता था अगले कुछ दिनों तक ऐसा ही चलता रहा और एक दिन ऐसा आया कि मैं अखबार को बाटते-बाटते छोटा मोटा कलम का वीर बन चुका था…उसके बाद कई दिनों तक ट्रेनी रिपोर्टर के रूप में काम किया। ओर फिर दैनिक भास्कर,दबंग दुनिया,स्टार समाचार में काम करने के बाद गलिब्स न्यूज़,टीएमटी न्यूज़,नेशनल हेराल्ड,स्टेट न्यूज़ टीवी,खबर नेशनल चैनल में काम किया । इस दौरान मैंने वेब,प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में लगातार मेहनत की ओर यह क्रम अब भी जारी हैं। वर्तमान में न्यूज़29 इंडिया के भोपाल ब्यौरों के पद पर पदस्थ हूँ और अब भी रोजाना लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को सिख रहा हूं।

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