
हिंदू धर्म के इतिहास को समझने के लिए पहले हमें हिंदू समय या काल गणना को समझना होगा। कालगणना में क्रमश: अणु, क्षण, प्रहर, वार, तिथि, दिन-रात, योग, करण नक्षत्र, पक्ष, अयन, संवत्सर, दिव्यवर्ष, मन्वन्तर, युग, कल्प और ब्रह्मा की गणना की जाती है। वैदिक ऋषियों ने इस तरह का पंचांग बनाया जिससे धरती और ब्रह्मांड का समय निर्धारण किया जा सकता है। धरती का समय निर्माण अर्थात कि धरती पर इस वक्त कितना समय बीत चुका है और बीत रहा है और ब्रह्मांड अर्थात अन्य ग्रहों पर उनके जन्म से लेकर अब तक कितना समय हो चुका है- यह निर्धारण करने के लिए उन्होंने एक सटीक समय मापन पद्धति विकसित की थी। ऋषियों ने इसके लिए सौरमास, चंद्रमास और नक्षत्रमास की गणना की और सभी को मिलाकर धरती का समय निर्धारण करते हुए संपूर्ण ब्रह्मांड का समय भी निर्धारण कर उसकी आयु का मान निकाला। जैसे कि मनुष्य की आयु प्राकृतिक रूप से 120 वर्ष होती है उसी तरह धरती और सूर्य की भी आयु निर्धारित है। ऋषियों ने सूक्ष्मतम से लेकर वृहत्तम माप, जो सामान्य दिन-रात से लेकर 8 अरब 64 करोड़ वर्ष के ब्रह्मा के दिन-रात तक की गणना की है।
जब हम हिंदू इतिहास की बात करते हैं तो हम इन्हीं समय के चक्र में फंसकर रह जाते हैं और फिर किसी भी भगवान या राजा के राज्य काल का सटीक निर्धारण नहीं कर पाते हैं। इसके लिए हमें यह समझना होगा कि हिंदू ग्रंथों में एक और जहां धरती के समय की बातें बताई जा रही है तो उसी दौरान बृहस्पति आदि ग्रहों की गति के अनुसार ब्रह्मांडीय समय को भी बताया जा रहा है। इसी कारण कई बार भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
हिन्दू काल गणना:-
प्राचीनकाल से ही हिन्दू मानते आए हैं कि हमारी धरती का समय अन्य ग्रहों और नक्षत्रों के समय से भिन्न है, जैसे 365 दिन में धरती का 1 वर्ष होता है तो धरती के मान से 365 दिन में देवताओं का एक दिन-रात होता है। देवताओं की छह माह की रात और छह माह का दिन माना गया है। इसे आप उत्तरी ध्रुव के समय को जानकर मान सकते हैं। हिन्दू काल निर्धारण अनुसार 4 युगों का मतलब 12,000 देव वर्ष होता है। इस तरह अब तक 4-4 करने पर 71 युग होते हैं। 71 युगों का एक मन्वंतर होता है। इस तरह 14 मन्वंतर का 1 कल्प माना गया है। 1 कल्प अर्थात ब्रह्माजी के लोक का 1 दिन होता है। विष्णु पुराण के अनुसार मन्वंतर की अवधि 71 चतुर्युगी के बराबर होती है।
वैदिक ऋषियों के अनुसार वर्तमान सृष्टि पंच मंडल क्रम वाली है। चन्द्र मंडल, पृथ्वी मंडल, सूर्य मंडल, परमेष्ठी मंडल और स्वायम्भू मंडल। ये उत्तरोत्तर मंडल का चक्कर लगा रहे हैं। सूर्य मंडल के परमेष्ठी मंडल (आकाश गंगा) के केंद्र का चक्र पूरा होने पर उसे मन्वंतर काल कहा गया। इसका माप है 30,67,20,000 (तीस करोड़ सड़सठ लाख बीस हजार वर्ष)। परमेष्ठी मंडल स्वायम्भू मंडल का परिभ्रमण कर रहा है यानी आकाशगंगा अपने से ऊपर वाली आकाशगंगा का चक्कर लगा रही है। इस काल को कल्प कहा गया यानी इसकी माप है 4 अरब 32 करोड़ वर्ष (4,32,00,00,000)। इसे ब्रह्मा का 1 दिन कहा गया।
इस कल्प में 6 मन्वंतर अपनी संध्याओं समेत निकल चुके, अब 7वां मन्वंतर काल चल रहा है जिसे वैवस्वत: मनु की संतानों का काल माना जाता है। 27वां चतुर्युगी बीत चुका है। वर्तमान में यह 28वें चतुर्युगी का कृतयुग बीत चुका है और यह कलियुग चल रहा है। यह कलियुग ब्रह्मा के द्वितीय परार्ध में श्वेतवराह नाम के कल्प में और वैवस्वत मनु के मन्वंतर में चल रहा है। इसका प्रथम चरण ही चल रहा है।
यदि हम कल्प की बात करें तो अब तक महत कल्प, हिरण्यगर्भ कल्प, ब्रह्म कल्प और पद्म कल्प बीत चुका है और यह 5वां कल्प वराह कल्प चल रहा है। अब तक वराह कल्प के स्वयम्भुव मनु, स्वरोचिष मनु, उत्तम मनु, तामस मनु, रेवत मनु, चाक्षुष मनु तथा वैवस्वत मनु के मन्वंतर बीत चुके हैं और अब वैवस्वत तथा सावर्णि मनु की अंतर्दशा चल रही है। सावर्णि मनु का आविर्भाव विक्रमी संवत प्रारंभ होने से 5,631 वर्ष पूर्व हुआ था।
युग क्या है?
आपने सुना ही होगा मध्ययुग, आधुनिक युग, वर्तमान युग जैसे अन्य शब्दों को। इसका मतलब यह कि युग शब्द को कई अर्थों में प्रयुक्त किया जाता रहा है। मतलब यह कि युग का मान एक जैसी घटनाओं के काल से भी निर्धारित हो सकता है। उल्लेखनीय है कि दिव्ययुग और देवयुग यह दो तरह के युग पुराणों में प्रचलित है। दिव्य अर्थात सूर्य का युग और देवयुग अर्थात देवताओं का युग। दिव्य युग को आप मनुष्य युग भी मान सकते हैं।
1. युग के बारे में कहा जाता है कि 1 युग लाखों वर्ष का होता है, जैसा कि सतयुग लगभग 17 लाख 28 हजार वर्ष, त्रेतायुग 12 लाख 96 हजार वर्ष, द्वापर युग 8 लाख 64 हजार वर्ष और कलियुग 4 लाख 32 हजार वर्ष का बताया गया है। इसे इस तरह जानें- 4,32,000 वर्ष में सौर मंडल के सातों ग्रह अपने भोग और शर को छोड़कर एक जगह आते हैं। इस एक युति के काल को कलियुग कहा गया। दो युति को द्वापर, तीन युति को त्रेता तथा चार युति को सतयुग कहा गया। चतुर्युगी में सातों ग्रह भोग एवं शर सहित एक ही दिशा में आते हैं।
2. एक पौराणिक मान्यता के अनुसार प्रत्येक युग का समय 1250 वर्ष का माना गया है। यह वर्ष दिव्ययुग के मान से हैं। इस मान से चारों युग का एक चक्र पांच हजार वर्षों में पूर्ण हो जाता है।
3. वर्ष को ‘संवत्सर’ कहा गया है। संवत्सर, परिवत्सर, इद्वत्सर, अनुवत्सर और युगवत्सर ये युगात्मक 5 वर्ष कहे जाते हैं। यानी 5 वर्ष का 1 युग होता है। बृहस्पति की गति के अनुसार प्रभव आदि 60 वर्षों में 12 युग होते हैं तथा प्रत्येक युग में 5-5 वत्सर होते हैं। 12 युगों के नाम हैं- प्रजापति, धाता, वृष, व्यय, खर, दुर्मुख, प्लव, पराभव, रोधकृत, अनल, दुर्मति और क्षय। भारत के कई क्षेत्रों में चैत्र प्रतिपदा से जब नववर्ष प्रारंभ होता है तो उसे युगादि या उगादि इसलिए कहा जाता है। इसका अर्थ है सूर्य का युग।
4. ऋग्वेद के मंत्रों से ‘युग’ शब्द का अर्थ काल और अहोरात्र भी सिद्ध होता है। ऋग्वेद के 5वें मंडल के 76वें सूक्त के तीसरे मंत्र में ‘नहुषा युगा मन्हारजांसि दीयथ:’ पद में युग शब्द का अर्थ ‘युगोपलक्षितान् कालान् प्रसरादिसवनान् अहोरात्रादिकालान् वा’ किया गया है। इससे स्पष्ट है कि उदय काल में युग शब्द का अन्य अर्थ अहोरात्र विशिष्ट काल भी लिया जाता था। ऋग्वेद के छठे मंडल के नौवें सूक्त के चौथे मंत्र में ‘युगे-युगे विदध्यं’ पद में युगे-युगे शब्द का अर्थ ‘काले-काले’ किया गया है। वाजसनेयी संहिता के 12वें अध्याय की 11वीं कंडिका में ‘दैव्यं मानुषा युगा’ ऐसा पद आया है। इससे सिद्ध होता है कि उस काल में देवयुग और मनुष्य युग ये 2 युग प्रचलित थे। तैत्तिरीय संहिता के ‘या जाता ओ वधयो देवेभ्यस्त्रियुगं पुरा’ मंत्र से देवयुग की सिद्धि होती है।
5. सौर मास के अनुसार धरती 365 दिन 5 घंटे 48 मिनट और 46 सेकंड में सूर्य की परिक्रमा पूर्ण कर लेती है, जबकि चन्द्रमास के अनुसार 354 दिनों में सूर्य का 1 चक्कर लगा लेती है। जिस तरह धरती सूर्य का चक्कर लगाती है उसी तरह वह राशि मंडल का चक्कर भी लगाती है। धरती को राशि मंडल की पूरी परिक्रमा करने या चक्कर लगाने में कुल 25,920 साल का समय लगता है। इस तरह धरती का एक भोग काल या युग पूर्ण होता है। इस भोगकाल को कुछ विद्वानों ने 4 युगों का एक चक्र भी माना है।
भारत के धार्मिक इतिहास को युगों की प्रचलित धारणा में लिखना या मानना उचित नहीं माना जा सकता है। जैसे कि श्रीराम त्रेता में और श्रीकृष्ण द्वापर में हुए थे। इस तरह माना जाएगा तो फिर इतिहास कभी नहीं लिखा जा सकता है। इतिहास को तो तारीखों में ही लिखना होता है और वह भी तथ्य और प्रमाणों के साथ। ऊपर हमने कल्प, मन्वंतर और युग के मान को स्पष्ट किया ताकि हमें यह निर्धारित करने में आसानी होगी कि हिंदू इतिहास को किस तरह की काल गणना के अनुसार लिखा जाना उचित होगा। निश्चित ही इसके लिए हम प्रचलित संवत का उपयोग करना चाहेंगे।
ज्योतिर्विदाभरण के अनुसार कलियुग में 6 व्यक्तियों ने संवत चलाए। यथाक्रम- युधिष्ठर, विक्रम, शालिवाहन, विजयाभिनन्दन, नागार्जुन, कल्की। इससे पहले सप्तऋषियों ने संवत चलाए थे जिनके आधार पर ही बाद के लोगों ने इसे अपडेट किया। अगले भाग में जानेंगे हिंदू इतिहास के कालखंड का विभाजन।