संविधान में कितने तरह के आपातकाल, सरकार कब कर सकती है इसका इस्तेमाल

देश की राजनीति में आपातकाल का जिक्र हमेशा से होता आया है. लेकिन अब केंद्र सरकार ने नोटिफिकेशन जारी करके 25 जून की तारीख को संविधान हत्या दिवस घोषित कर दिया है. इसके बाद से एक बार फिर से देश में आपातकाल को लेकर राजनीति तेज हो गई है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि संविधान में कितने तरह के आपातकाल का जिक्र है और सरकार इनका इस्तेमाल कब कर सकती है. आज हम आपको बताएंगे कि केंद्र सरकार कब और किस तरह के आपातकाल का इस्तेमाल देश के लिए कर सकते हैं.

आपातकाल

देश के इतिहास में हमेशा 1975 में लगे आपातकाल का जिक्र किया जाता है. क्योंकि 25 जून, 1975 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने तानाशाही दिखाते हुए देश में आपातकाल लागू किया था. इस दौरान पत्रकारों से लेकर सभी एक्टिविस्टों को सरकार ने जेल में डाला था. लेकिन अब केंद्र सरकार ने नोटिफिकेशन जारी करके बताया है कि इस तारीख को संविधान हत्या दिवस माना जाएगा.

संविधान में आपातकाल

अब सवाल ये है कि देश में आपातकाल कब लग सकता है और संविधान में इसको लेकर क्या नियम हैं. बता दें कि देश में आखिरी बार आपातकाल यानी इमरजेंसी 25 जून, 1978 को लागू की गई थी, लेकिन इस शब्द का जिक्र भारतीय संविधान में भी किया गया है. भारतीय संविधान में तीन तरह की इमरजेंसी का जिक्र किया गया है. बता दें कि इन तीनों को लागू करने की वजह अलग-अलग हैं. भारतीय संविधान में तीन प्रकार की आपात स्थितियां दर्ज हैं, जिसमें राष्ट्रीय आपातकाल (नेशनल इमरजेंसी) , संवैधानिक आपातकाल (राज्य आपातकाल/राष्ट्रपति शासन) और वित्तीय आपातकाल है.

आपातकाल के प्रकार

नेशनल इमरजेंसी

राष्ट्रीय आपातकाल को तब लागू किया जाता है, जब देश के किसी हिस्से में सुरक्षा को लेकर खतरा होता है. उदाहरण के लिए दुश्मनों से जंग, किसी तरह का अटैक, आंतरिक कलह या बड़ी आपदा होती है, तब इसे लागू किया जाता है. ऐसी स्थिति में सरकार नेशनल इमरजेंसी लगाती है. भारतीय संविधान का अनुच्छेद 352 देश में राष्ट्रीय आपातकाल लागू करने का अधिकार देता है. बता दें कि राष्ट्रपति इसकी घोषणा करते हैं.

संवैधानिक आपातकाल

संवैधानिक आपातकाल तब लागू किया जाता है, जब राज्य सरकारें भारतीय संविधान का पालन नहीं करती और राज्य में असंवैधानिक संकट की स्थिति बनती है. ऐसे हालातों में राष्ट्रपति राज्य सरकार को अपने कंट्रोल में लेते हैं, इसे ही राष्ट्रपति शासन कहा जाता है. इसे संवैधानिक आपातकाल भी कहा जाता है. भारतीय संविधान का अनुच्छेद 355 के मुताबिक केंद्र का कर्तव्य यह सुनिश्चित करना है कि प्रत्येक राज्य की सरकार भारतीय संविधान के प्रावधानों के मुताबिक काम करे. लेकिन राज्य सरकार ऐसा नहीं करती है तो अनुच्छेद 356 के मुताबित केंद्र राज्य सरकार को अपने नियंत्रण में ले सकते हैं. ऐसे हालात में राष्ट्रपति की निगरानी में राज्यपाल शासन व्यवस्था चलाते हैं.

वित्तीय आपातकाल

वित्तीय आपातकाल की स्थिति देश में तब बनती है, जब देश की वित्तीय या ऋण प्रणाली में अस्थिरता पैदा हो जाती है. सरकार के पास देश चलाने के लिए पर्याप्त पैसा नहीं होता. ऐसे हालात में वित्तीय आपातकाल की घोषणा की जा सकती है. वित्तीय आपातकाल का जिक्र भारतीय संविधान के अनुच्छेद 360 में किया गया है.

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