जातीय बैलेंस में अनफिट है प्रहलाद पटेल का नाम

भोपाल । लोकसभा चुनाव को देखते हुए भाजपा राज्य इकाइयों के संगठन में बदलाव करना शुरू कर चुकी है। इसी कड़ी में झारखंड, पंजाब, आंध्रप्रदेश और तेलंगाना के प्रदेश अध्यक्ष बदले गए। आगामी मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव को देखते हुए अटकलें हैं कि यहां भी भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बदल सकती है। मध्य प्रदेश के राजनीतिक गलियारों में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष के लिए कई नाम चर्चा में हैं। जिन नामों की सबसे ज्यादा चर्चा हैं उनमें से एक केंद्रीय मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल भी हैं। ऐसी चर्चा है कि पीएम मोदी कैबिनेट बदलाव में प्रहलाद सिंह पटेल को केंद्र सरकार से मुक्त कर उन्हें मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में जीत सुनिश्चित करने के लिए प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी सौंप सकते हैं। हालांकि यह केवल अभी अटकलें हैं। भाजपा की किसी भी बड़े नेता ने अभी तक इस पर कुछ भी नहीं कहा है। प्रहलाद सिंह पटेल के नाम को लेकर राजनीतक विशेषज्ञों से बात करने पर पता चलता है कि यह फैसला इतना आसान नहीं होगा। उनका कहना है कि प्रहलाद पटेल के प्रदेश अध्यक्ष बनाने पर कई पेच फंसेंगे।
चुनाव का जिक्र आते ही राजनीतिक पार्टियां जातीय समीकरण बनाने में जुट जाती हैं। स्वभाविक है कि मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव 2023 में भी मुख्य विपक्षी कांग्रेस के अलावा सत्ताधारी भाजपा भी जातीय बैलेंस बनाने में जुटी है। जिस तरह से विभिन्न न्यूज चैनलों के प्री पोल सर्वे में कांग्रेस की बढ़त दिखाई जा रही है उसके बाद से भाजपा चुनावी मैनेजमेंट में मध्य प्रदेश में कोई गलती नहीं करना चाह रही है। ऐसे में माना जा रहा है कि प्रहलाद पटेल को प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी मिलना थोड़ा मुश्किल होगा। प्रहलाद सिंह पटेल 1989 में पहली बार संसद पहुंचे। 2003 में वह अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में कोयला राज्य मंत्री भी रहे। फिलहाल मोदी कैबिनेट में पर्यटन मंत्री का जिम्मा संभाल रहे हैं। साल 1980 वह जबलपुर विश्वविद्यालय छात्रसंघ के अध्यक्ष चुने गए थे। इसके बाद उन्होंने राजनीति में कभी पलट कर नहीं देखा। उन्होंने पीसीएस की परीक्षा पास करने के बाद डीएसपी की नौकरी ज्वाइन करने के बजाय लॉ की डिग्री हासिल की और बाद में राजनतिक जीवन में आ गए। वह फिलहाल भाजपा के सदस्य के रूप में दमोह से सांसद हैं।
हालांकि साल 2005 में उमा भारती ने भाजपा से अलग होकर ‘भारतीय जनशक्ति पार्टी’ की स्थापना की थी, तो पटेल भी उनके साथ हो गए थे। हालांकि तीन साल बाद ही मार्च 2009 में उन्होंने भाजपा में घर वापसी कर ली। ऊपर बताई गई बातों से आप समझ चुके होंगे कि प्रहलाद पटेल एक मंजे हुए राजनेता हैं और उनमें प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी संभालने की सारी खूबियां हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि उनके लिए पेच कहां फंसेगी। दरअसल, प्रहलाद सिंह पटेल लोधी राजपूत समुदाय से आते हैं। यह जाति मध्य प्रदेश में ओबीसी कैटेगरी में आती है। वहीं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान किरार जाति से आते हैं। किरार जाति भी मध्य प्रदेश में ओबीसी कैटेगरी में है। ऐसे में सवाल उठता है कि मुख्यमंत्री के साथ प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी भी ओबीसी को देना थोड़ा मुश्किल है। माना जा रहा है कि ओबीसी को दोनों अहम पद देने से पार्टी में असंतोष फैल सकता है। इस वक्त भाजपा के किसी भी ब्राह्मण को अहम जिम्मेदारी नहीं दी गई है। अगर सीएम के बाद प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी भी ओबीसी को दी जाती है तो ब्राह्मणों में सबसे ज्यादा असंतोष पनप सकता है।
मध्य प्रदेश भाजपा प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए अगर प्रलहाद पटेल का नाम कटता है तो और कौन कौन नाम रेस में आ सकते हैं। इनमें केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर का भी नाम प्रदेश अध्यक्ष पद की रेस में चल रहा है। तोमर भी सवर्ण वर्ग से आते हैं और मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा भी उच्च जाति के हैं। नरेंद्र सिंह तोमर ग्वालियर चंबल इलाके के कद्दावर नेता हैं। नरेंद्र तोमर के लिए निगेटिव फैक्टर इनका चंबल इलाके से होना हो सकता है। इस वक्त शिवराज सरकार में चंबल इलाके से नरोत्तम मिश्रा, प्रद्युम्न सिंह तोमर, महेंद्र सिंह सिसोदिया, बीडी शर्मा जैसे कद्दावर नेता मंत्री हैं। इसके अलावा केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया भी इसी इलाके से आते हैं। ऐसे में इसी इलाके के नेता को प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी सौंपना कठिन हो सकता है। मध्य प्रदेश में इस वक्त भाजपा का खास फोकस आदिवासियों पर है। यहां करीब 22 फीसदी आदिवासी वोटर हैं। हाल के दिनों में राज्य में आदिवासियों के साथ हुई कुछ घटनाओं के चलते पार्टी और सरकार की छवि भी सुधारनी है। ऐसे मे सुमेर सिंह सोलंकी को प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी के लिए आजमाया जा सकता है। सुमेर सिंह सोलंकी आदिवासी बाहुल्य मालवा इलाके से आते हैं। भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय का नाम भी प्रदेश अध्यक्ष की रेस में माना जा रहा है। हालांकि पिछले कुछ समय से भाजपा कैलाश को जिस तरह से नजरअंदाज कर रही है उसे देखकर कम ही उम्मीद है कि उन्हें प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी सौंपी जा सकती है। कैलाश के बारे में कहा जाता है कि गृहमंत्री अमित शाह उन्हें अपनी कोर टीम का हिस्सा मानते हैं और शायद ही वह उन्हें फिलहाल अपनी टीम से रिलीज करें।

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