भाजपा संसदीय बोर्ड और केंद्रीय चुनाव समिति की क्यों हो रही चर्चा, कब मोदी बने थे सदस्य

नई दिल्ली : आठ साल बाद भारतीय जनता पार्टी ने संसदीय बोर्ड का गठन किया है. आपको बता दें कि पिछली बार भाजपा संसदीय बोर्ड का गठन 2014 में हुआ था. तब अमित शाह पार्टी के अध्यक्ष बने थे, उसके बाद उन्होंने अपनी टीम का ऐलान किया था. उन्होंने संसदीय बोर्ड में नरेंद्र मोदी, नितिन गडकरी, राजनाथ सिंह, अरुण जेटली, सुषमा स्वराज, वेंकैया नायडू और थावरचंद गहलोत जैसे कद्दावर नेताओं को जगह दी थी. अन्य नेताओं में शिवराज सिंह चौहान और बीएल संतोष भी शामिल थे. बाद में थावरचंद गहलोत को राज्यपाल बना दिया गया. वेंकैया नायडू उप राष्ट्रपति बन गए. जेटली और सुषमा स्वराज का निधन हो गया. ये सभी जगह तब से खाली थी.

अमित शाह के बाद पार्टी की कमान जेपी नड्डा को दी गई. तभी से कयास लगाए जा रहे थे कि संसदीय बोर्ड का गठन कब होगा और किन-किन को इसमें जगह मिलेगी. और अब जाकर संसदीय बोर्ड का गठन किया गया है. जानकारी के लिए बता दें कि इसमें से शिवराज सिंह चौहान और नितिन गडकरी को जगह नहीं मिली है. चौहान के बारे में कहा गया है कि क्योंकि किसी भी मुख्यमंत्री को संसदीय बोर्ड में जगह नहीं दी गई है, इसलिए उनका नाम भी हटा दिया गया है. जिनका नाम जुड़ा है, उनमें बीएस येदियुरप्पा, सर्बानंद सोनोवाल, के लक्ष्मण, इकबाल सिंह लालपुरा, सुधा यादव और सत्यनारायण जटिया प्रमुख हैं. ये सभी नए चेहरे हैं. कर्नाटक में पार्टी की स्थिति बेहतर हो सके, इसलिए पार्टी ने येदियुरप्पा को जगह दी है. उन्हें सीएम पद से हटा दिया गया था. पार्टी नहीं चाहती है कि उनकी लोकप्रियता और समर्थन को यों ही जानें दें. पार्टी में यह भी संदेश जा रहा था कि उन्हें दरकिनार करने की कोशिश की जा रही है.

भाजपा संसदीय दल के बारे में कुछ महत्वपूर्ण तथ्य – पिछले दो सालों में शायद ही कभी संसदीय बोर्ड की बैठक हुई है. एक या दो बार इसकी बैठक हुई. इस बीच पार्टी ने कई मुख्यमंत्री भी बदले. उत्तराखंड में दो बार सीएम बदला गया. गुजरात और असम में सीएम को बदला गया. शिवराज सिंह चौहान दोबारा से सीएम बने. विधानसभा चुनाव के बाद यूपी, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में सीएम को बरकरार रखा गया. यानी इतने सारे महत्वपूर्ण फैसले लिए गए, लेकिन पार्टी की संसदीय बोर्ड ने कोई भी फैसला नहीं लिया.

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