कब से शुरू होगा मार्गशीर्ष 2021, कैसा मिला ‘अगहन’ नाम? जानें महत्व एवं विशेष मंत्र

इसे अगहन मास के नाम से भी जाना जाता है। यह भगवान श्री कृष्ण का माह होता है क्योंकि उन्होंने स्वयं मार्गशीर्ष माह को अपना स्वरूप बताया है। अगहन मास को मार्गशीर्ष नाम से क्यों जानते हैं, आइए यहां हम आपको बताते हैं उसका

कब से होगा शुरू- वर्ष 2021 में मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि का प्रारंभ शुक्रवार, 19 नवंबर को दोपहर 02.26 मिनट से होकर शनिवार, 20 नवंबर 2021 को सायंकाल 05.04 मिनट तक प्रतिपदा रहेगी। इस बार उदयातिथि शनिवार को प्राप्त हो रही है, अत: मार्गशीर्ष 2021 महीने का प्रारंभ 20 नवंबर से माना जाएगा।

धार्मिक शास्त्रों की मानें तो अगहन मास को मार्गशीर्ष कहने के पीछे भी कई तर्क हैं। भगवान श्री कृष्ण की पूजा अनेक स्वरूपों में व कई नामों से की जाती है। इन्हीं स्वरूपों में से एक मार्गशीर्ष भी श्री कृष्ण का ही एक रूप है। पौराणिक शास्त्रों में कहा गया है कि इस माह का संबंध मृगशिरा नक्षत्र से है।

ज्योतिष के अनुसार 27 नक्षत्र होते हैं, जिसमें से एक मृगशिरा नक्षत्र भी है। इस माह की पूर्णिमा मृगशिरा नक्षत्र से युक्त होती है। इसी कारण इस मास को मार्गशीर्ष मास के नाम से जाना जाता है। भागवत के अनुसार, भगवान श्री कृष्ण ने भी कहा था कि सभी माह में मार्गशीर्ष श्री कृष्ण का ही स्वरूप है। मार्गशीर्ष माह में श्रद्धा और भक्ति से प्राप्त किए गए पुण्य के बल पर ही हमें सभी सुखों की प्राप्ति होती है। इस माह में नदी स्नान और दान-पुण्य का विशेष महत्व भी माना जाता है।

मार्गशीर्ष मास की महत्ता श्री कृष्ण ने अपने गोपियों को भी बताई थी। कृष्ण ने कहा था कि मार्गशीर्ष माह में यमुना स्नान से मैं सहज ही सभी को प्राप्त हो जाऊंगा। तभी से इस माह में नदी स्नान का विशेष महत्व माना गया है।

मार्गशीर्ष मास में नदी स्नान के लिए तुलसी की जड़ की मिट्टी एवं तुलसी के पत्तों से युक्त स्नान करना चाहिए। मान्यता है कि मार्गशीर्ष मास में जो भक्त भगवान श्री कृष्ण के मंत्रों का जाप करता है, उनकी सभी इच्छाएं और हर मनोकामनाएं भगवान श्री कृष्ण पूर्ण करते हैं।

इस माह नदी स्नान के समय निम्न मंत्रों का जाप करना चाहिए-

मंत्र- Margashirsha Maas Mantra

  1. ‘ॐ नमो नारायणाय’
  2. ‘ॐ कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने ।। प्रणतः क्लेशनाशाय गोविंदाय नमो नमः।।’
  3. ‘कृं कृष्णाय नमः’
  4. ‘ॐ नमः भगवते वासुदेवाय कृष्णाय क्लेशनाशाय गोविंदाय नमो नमः।’
  5. गायत्री मंत्र- ॐ भूर्भुवः स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ॥
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