इस्लाम, ईसाई और यहूदी को छोड़ अरब में नया धर्म, छिड़ी है जबर्दस्त बहस, क्या है अब्राहम धर्म

अरब के प्राचीन धर्मों के बीच सबसे पहले यहूदी का प्रचलन प्रारंभ हुआ। इसके बाद ईसाई धर्म अस्तित्व में आया और अंत में इस्लाम। तीनों ही धर्मों में धार्मिक मान्यता और तीर्थों को लेकर कई बार जंग होती रही है, जो आज भी जारी है। आओ जानते हैं कि कौनसा है नया धर्म और किसके बीच छिड़ी है बहस।

इसराइल और यूएई के बीच समझौता : इस जंग से निजात पाने के लिए ही तीनों धर्मों के बीच समानता देखते हुए एक इजराइल और यूएई के बीच संबंध सुधारने के लिए एक समझौता हुआ था जिसे अब्राहमी समझौता कहा गया था। सबसे मजेदार बात यह है कि ना तो यह औपचारिक रूप से स्थापित कोई धर्म है, ना इसके कोई अनुयायी हैं और ना ही इसको लेकर कोई खाका तैयार किया गया है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह सिर्फ एक धार्मिक प्रोजेक्ट है। संयुक्त अरब अमीरात, यूएई और इजराइल के बीच संबंध सुधारने के लिए हुए इस ‘अब्राहम समझौता’ समझौते को अमेरिका ने शांति बढ़ाने वाला और देशों के बीच सांस्कृतिक और अंतरधार्मिक संवाद स्थापित करने वाला बताया था।

उल्लेखनीय है कि वर्ष 2020 में इज़राइल और संयुक्त अरब अमीरात ने ऐतिहासिक ‘द अब्राहम एकॉर्ड ( The Abraham Accord )’ (Washington-brokered Deal) के तहत पूर्ण राजनयिक संबंध स्थापित करने के लिए सहमति व्यक्त की है। इसे ‘इज़राइल-यूएई शांति समझौता’ के रूप में भी जाना जाता है, यह इज़राइल द्वारा फिलिस्तीनी क्षेत्रों को अपने हिस्सों में को जोड़ने की योजना को ‘निलंबित’ कर देगा। इससे फिलिस्तीनी और इसराइल के बीच चली आ रही जंग पर विराम लगने की संभावना व्यक्त की जा रही है।

मिस्र में विरोध (Egypt) : यह वास्तव में धर्म (Religion) ना होकर एक प्रोजोक्ट है जिसका उद्येश्य इस्लाम, ईसाई और यहूदी धर्म के बीच सामंजस्यता बैठाना और मतभेदों को मिटाना है। इस अब्राहमी धर्म या कहें कि समझौते को लेकर हाल ही में मिस्र में धार्मिक एकता के लिए शुरू हुई मिस्र फैमिली हाउस की दसवीं वर्षगांठ के मौके पर अब्राहमी धर्म की जमकर आलोचना हुई। अब इसको लेकर विरोध और समर्थन दोनों तरह के सुर उठ रहे हैं। अरब देशों में इसको लेकर पिछले एक साल से हलचल देखी जा रही है।

मिस्र के अल-अजहर के सर्वोच्च इमाम अहमद अल तैय्यब ने इस धर्म की आलोचना करते हुए कहा कि लोग ईसाई, यहूदी और इस्लाम को एक करने पर जोर देंग, लेकिन दूसरे धर्मों का सम्मान करना और उन्हें मानना ​​दो अलग-अलग चीजें हैं। इमाम के अनुसार सभी धर्मों के लोगों को एक साथ लाना असंभव है। मिस्र के कॉप्टिक पादरियों ने भी अब्राहमी धर्म के अस्तित्व का विरोध किया है। माना जा रहा है कि अब्राहमी धर्म धोखे और शोषण की आड़ में एक राजनीतिक आमंत्रण है। इस समझौते का विरोध करने वाले कुछ इस्लामी धार्मिक नेताओं का मानना है कि यह इस्लामी धर्म और धार्मिक एकता को अलग-अलग दिखाने का प्रयास है।

क्या है इब्राहिमी धर्म : कहा जा रहा है कि इस प्रोजेक्ट के तहत तीनों धर्मों की समानता के मद्देनजर पैगंबर अब्राहम या हजरत इब्रहिम के नाम पर एक नया धर्म प्रचलन में लाने का प्रयास किया जा रहा है। इससे तीनों ही धर्म के लोग अपने अपने मतभेद ‍भुलाकर एक ही पैगंबर पर विश्‍वास जताएंगे और इसके चलते शांति स्थापित होगी।

हालांकि इन तीनों ही धर्मों को मिलाकर पूर्व से ही इन्हें इब्राहीमी धर्म माना जाता रहा है क्योंकि हज़रत इब्राहिम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तीनों ही धर्मों के पैगंबर हैं। तीनों ही धर्म के लोग उन्हें अपना पैगंबर मानते हैं। पैगंबर ईश्वर के संदेशवाहक को कहा जाता है। तीनों ही धर्म इस बात पर भी एकमत है कि ईश्‍वर एक ही है और उसने ही इस कायनात और मानव को बनाया है। इसके अलावा भी कई धार्मिक मान्यताएं भी इन धर्मों में एक सी पाई जाती हैं।

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