
भोपाल । मध्य प्रदेश में भले ही अभी विधानसभा चुनाव में लंबा समय बाकी हो, लेकिन भाजपा ने मिशन 2023 के लिए मैदानी तैयारियां शुरू कर दी है। भाजपा 15 नवंबर को भोपाल में जनजातीय गौरव दिवस के अवसर पर प्रदेश स्तरीय कार्यक्रम करने जा रही है। इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शिरकत करेंगे। पीएम के प्रस्तावित दौरे के अनुसार वे करीब 2 घंटे भोपाल में रहेंगे। आयोजन में प्रदेश भर के करीब 4 लाख आदिवासियों को लाने की तैयारी है। प्रवास के दौरान मोदी पुनर्निमित हबीबगंज रेलवे स्टेशन का लोकार्पण भी कर सकते हैं।
मंत्रालय सूत्रों ने बताया कि जनजातीय गौरव दिवस का कार्यक्रम भोपाल के जंबूरी मैदान में होगा। इसमें सोशल डिस्टेंसिंग के साथ करीब डेढ़ लाख आदिवासियों के बैठने का इंतजाम किया जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसमें दोपहर 12 से 2 बजे तक रहेंगे। इससे पहले, 18 सितंबर को जबलपुर में राजा शंकरशाह- रघुनाथ शाह के शहीदी दिवस पर भाजपा के आयोजन में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह शामिल हुए थे। शाह के बाद अब मोदी के दौरे को भी आदिवासियों को 2023 के चुनाव के लिए लुभाने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है। वजह यह है कि राज्य में 43 समूहों वाले आदिवासियों की आबादी 2 करोड़ से ज्यादा है, जो 230 में से 84 विधानसभा सीटों पर असर डालती हैं। मप्र में 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को आदिवासियों ने बड़ा नुकसान पहुंचाया था।
10 नवंबर से पहले शिवराज की 3 सभाएं होंगी
मंत्रालय सूत्रों ने बताया कि 15 नवंबर को आयोजित कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान आदिवासी बाहुल्य शहडोल, मंडला और धार में सभाएं करेंगे। इन सभाओं में आदिवासी नेता व केंद्रीय राज्य मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते के अलावा शिवराज कैबिनेट में मंत्री विजय शाह, बिसाहूलाल सिंह व मीना सिंह मौजूद रहेंगे।
4 जातियों पर रहेगा फोकस
सूत्रों के मुताबिक आयोजन में आदिवासियों की गौंड, भील, कोल व सहरिया को अधिक संख्या में बुलाने का निर्णय लिया गया है। आयोजन की प्रारंभिक तैयारी के मुताबिक आदिवासियों को 14 नवंबर को विदिशा, राससेन, सांची व सीहोर में ठहराया जाएगा। इन्हें 15 नंवबर को कार्यक्रम स्थल पर लाया जाएगा।
भाजपा इसलिए झोंक रही ताकत
आदिवासी बहुल इलाके में 84 विधानसभा क्षेत्र आते हैं। 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 84 में से 34 सीट पर जीत हासिल की थी। वहीं, 2013 में इस इलाके में 59 सीटों पर भाजपा को जीत मिली थी। 2018 में पार्टी को 25 सीटों पर नुकसान हुआ है। वहीं, जिन सीटों पर आदिवासी उम्मीदवारों की जीत और हार तय करते हैं, वहां सिर्फ भाजपा को 16 सीटों पर ही जीत मिली है। 2013 की तुलना में 18 सीट कम है। अब सरकार आदिवासी जनाधार को वापस भाजपा के पाले में लाने की कोशिश में जुटी है।
आदिवासी बाहुल्य सीटों पर समीकरण बदले
2003 विधानसभा चुनाव में आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित 41 सीटों में से भाजपा ने 37 सीटों पर कब्जा जमाया था। चुनाव में कांग्रेस केवल 2 सीटों पर सिमट गई थी। वहीं, गोंडवाना गणतंत्र पार्टी ने 2 सीटें जीती थी, जबकि 1998 में कांग्रेस का आदिवासी सीटों पर अच्छा खासा प्रभाव था। 2008 के चुनाव में आदिवासियों के लिए आरक्षित सीटों की संख्या 41 से बढ़कर 47 हो गई। इस चुनाव में भाजपा ने 29 सीटें जीती थी, जबकि कांग्रेस ने 17 सीटों पर जीत दर्ज की थी। 2013 के इलेक्शन में आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित 47 सीटों में से भाजपा ने जीती 31 सीटें जीती थी, जबकि कांग्रेस के खाते में 15 सीटें आई थी। 2018 के इलेक्शन में पांसा पलट गया। आदिवासियों के लिए आरक्षित 47 सीटों में से भाजपा केवल 16 सीटें जीत सकी और कांग्रेस ने दोगुनी यानी 30 सीटें जीत ली। एक निर्दलीय के खाते में गई।