कृष्ण जन्मभूमि मामला पहुंचा सुप्रीम कोर्ट, 1968 के समझौते को गैर कानूनी घोषित करने की मांग

 नई दिल्ली। कृष्ण जन्मभूमि का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल हुई है जिसमें कृष्ण जन्म भूमि को समझौते के जरिये मुसलमानों को देने को चुनौती दी गई है। याचिका में कहा गया है कि हिंदुओं के साथ धोखा करके कृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट की संपत्ति बिना किसी कानूनी अधिकार के अनधिकृत रूप से समझौता करके शाही ईदगाह को दे दी गई जो कि गलत है। कोर्ट घोषित करे कि श्रीकृष्ण जन्म सेवा संस्थान की ओर से 12 अगस्त, 1968 को शाही ईदगाह के साथ किया गया समझौता बिना क्षेत्राधिकार के किया गया था, इसलिए वह किसी पर भी बाध्यकारी नहीं है।

याचिका में यह भी मांग की गई है कि श्रीकृष्ण सेवा संस्थान द्वारा बिना किसी अधिकार के कृष्ण जन्मभूमि और ट्रस्ट की संपत्ति को समझौते के जरिए मुसलमानों को दिए जाने और हिंदुओं से धोखा किये जाने की एसआइटी गठित कर जांच कराई जाए और सेवा संस्थान के सदस्यों के खिलाफ आइपीसी की विभिन्न धाराओं में मुकदमा चलाया जाए।

सुप्रीम कोर्ट में यह याचिका वकील मनोहर लाल शर्मा ने दाखिल की है। बताते चलें कि कृष्ण जन्मभूमि मामले में शर्मा के सुप्रीम कोर्ट पहुंचने का यह दूसरा मौका है। इसके पहले भी उन्होंने 1998 में याचिका दाखिल की थी जिसमें नोटिस भी हुआ था लेकिन उसके बाद उनके वकील के सुनवाई पर पेश न होने के कारण याचिका खारिज हो गई थी।

रविवार को ई फाइलिंग के जरिये दाखिल की गई इस नई रिट याचिका में शर्मा ने कृष्ण जन्मभूमि कटरा केशव देव की संपत्ति पर मालिकाना हक का सारा ब्योरा और समय-समय पर अदालतों से आए फैसलों का हवाला दिया है। याचिका में यह भी मांग की गई है कि सुप्रीम कोर्ट केंद्र सरकार और उत्तर प्रदेश सरकार को स्पेशल फोर्स तैनात कर मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि को सुरक्षित करने का आदेश दे। इसके अलावा कोर्ट कृष्ण जन्मभूमि ट्रस्टियों की सहमति से केंद्र और उत्तर प्रदेश सरकार को मथुरा स्थिति कटरा केशव देव कृष्ण जन्मभूमि, मस्जिद ईदगाह को अधिग्रहित करके उसके प्रबंधन और संरक्षण का निर्देश दे। याचिका में केंद्र सरकार, उत्तर प्रदेश, कृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट, कुमार मंगलम बिड़ला, शोभना भरतिया, सिद्धार्थ कुमार बिड़ला और श्री कृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान को पक्षकार बनाया गया है।

मालूम हो कि कृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट का गठन जुगल किशोर बिड़ला ने किया था और बिड़ला परिवार कृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट का आजीवन ट्रस्टी है इसीलिए बिड़ला परिवार के सदस्यों को याचिका मे पक्षकार बनाया गया है।

जानें क्या है पूरा मामला

याचिका में 1921 से लेकर 1946 तक के मथुरा की जिला अदालत और इलाहाबाद हाईकोर्ट के विभिन्न फैसलों का हवाला दिया गया है। इसमें यह माना गया है कि कटरा केशवदेव राजा पटनीमल के अधिकार क्षेत्र में था और उसके बाद उनके उत्तराधिकारी राय किशन दास। 8 फरवरी,1944 को जुगल किशोर बिड़ला ने 13,400 रुपये में कटरा केशव देव, जिसमें ईदगाह और कारागार समेत सारी संपत्ति शामिल है, राय किशन दास और राय आनंद दास से खरीद ली थी।

जमीन की रजिस्ट्री मदन मोहन मालवीय, गोस्वामी गणेश दत्त और भीकनलाल अत्री के नाम हुई। पूरी जमीन का कब्जा जुगल किशोर बिड़ला को मिला। 1951 में जुगल किशोर बिड़ला ने कृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट का गठन किया जिसमें तीन शर्ते थीं। पहली कटरा का जिर्णोद्धार होगा वहां भगवान कृष्ण का मंदिर बनेगा और गीता के उपदेशों का प्रचार होगा। दूसरी प्रापर्टी का कोई भी हिस्सा किसी को नहीं दिया जाएगा न गिरवी रखा जाएगा। तीसरी बिड़ला परिवार इस ट्रस्ट का आजीवन ट्रस्टी होगा उसे हटाया नहीं जा सकता।

कहा गया है कि 1958 में जयदेव डालमिया जो कि इस समय वीएचपी के अध्यक्ष थे और कुछ अन्य लोगों ने मिल कर आगरा में श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान नाम की एक सोसाइटी पंजीकृत कराई। सोसाइटी ने 1958 में कटरा केशव देव का जीर्णोद्धार कराना शुरू किया। 1964 में इस सोसाइटी ने मथुरा की अदालत में वाद दाखिल किया और ईदगाह को हटाने की मांग की। 21 जून 1967 में जुगल किशोर बिड़ला का देहांत हो गया। 1968 में सेवा संस्थान सोसाइटी ने बैठक करके देवधर शास्त्री को अपना अधिकृत व्यक्ति नियुक्त किया जो मुसलमानों और शाही ईदगाह कमेटी के साथ समझौता पत्र हस्ताक्षरित कर सकता था। इसके बाद 1968 में सोसाइटी ने शाही ईदगाह कमेटी के साथ समझौता किया और ईदगाह का पूर्ण प्रबंधन मुसलमानों को सौप दिया। इस समझौता डीड को अदालत में दाखिल किया गया और इसके आधार पर सोसाइटी ने ईदगाह को हटाने का सूट वापस ले लिया।

1993 में मनोहर लाल शर्मा और दो अन्य लोगों ने मथुरा की अदालत में सूट दाखिल कर सेवा संस्थान सोसाइटी को हटाने की मांग की लेकिन सोसाइटी ने अदालत में दाखिल जवाब में कहा कि सोसाइटी और ट्रस्ट अलग अलग कानूनी व्यक्ति हैं और सोसाइटी ट्रस्ट का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकती। इसके आधार पर शर्मा का केस खारिज हो गया। यह मामला 1998 में सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, जहां से नोटिस जारी होने पर सोसाइटी ने फिर यही बात कही लेकिन शर्मा का वकील पेश न होने के कारण सुप्रीम कोर्ट ने एसएलपी खारिज कर दी थी।

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