शरद पूर्णिमा प्रत्येक वर्ष आश्विन मास की पूर्णिमा तिथि को आती है और इस दिन चन्द्रमा की विशेष रूप से पूजा की जाती है। मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है कि इस दिन चन्द्रमा से अमृत बसरता है। तो आइए इसी क्रम में जानते हैं कि शरद पूर्णिमा का क्या महत्व है और साथ ही यह भी जानेंगे कि इस तिथि का शुभ मुहूर्त और पूजन विधि क्या है।
शरद पूर्णिमा का महत्व
शरद पूर्णिमा के दिन चन्द्र देव की विशेष रूप से पूजा की जाती है, इसके साथ ही इसका सीधा संबंध कृष्ण जी से भी बताया गया है। भागवत पुराण में भी शरद पूर्णिमा का जिक्र मिलता है। मान्यता के अनुसार कहा जाता है कि चन्द्रमा 16 कलाओं के स्वामी हैं और एक महीने में चन्द्रमा 27 नक्षत्रों में भ्रमण करते हैं और उसकी शुरुआत इस पूर्णिमा से ही होती है। शरद पूर्णिमा का दिन चन्द्रमा 16 कलाओं से परिपूर्ण होता है और यही कारण है कि इस दिन चन्द्रमा अमृत बरसाता है।
इसलिए यदि आपने ध्यान दिया होगा तो घर के बड़े बुजुर्ग शरद पूर्णिमा के दिन रात्रि के समय चांदनी रात्रि में खीर रखते हैं और कहा जाता है कि इस रात्रि में चन्द्रमा अमृत की बूंदें गिराता है। जिसके बाद अगले दिन परिवार में वो खीर बांटी जाती है है। मान्यता है कि इस दिन चंद्रमा की किरणों में अमृत होता है जो रोगों को दूर करता है।
शरद पूर्णिमा मुहूर्त
शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा का उदय सायं 05:05 बजे होगा और चन्द्रास्त का समय अक्टूबर 17 को प्रात: 05:58 बजे होगा। इसी के साथ इस तिथि के दिन कई शुभ योग भी बन रहे हैं।
ब्रह्म मुहूर्त 04:42 ए एम से 05:32 ए एम
प्रातः सन्ध्या 05:07 ए एम से 06:23 ए एम
अभिजित मुहूर्त कोई नहीं
विजय मुहूर्त 02:01 पी एम से 02:47 पी एम
गोधूलि मुहूर्त 05:50 पी एम से 06:15 पी एम
सायाह्न सन्ध्या 05:50 पी एम से 07:05 पी एम
अमृत काल 03:04 पी एम से 04:28 पी एम
निशिता मुहूर्त 11:42 पी एम से 12:32 ए एम, अक्टूबर 17
रवि योग 06:23 ए एम से 07:18 पी एम
शरद पूर्णिमा पूजन विधि
- चंद्रमा को जल, दूध, दही, शहद और घी से अर्घ्य दें।
- चंद्रमा पर अक्षत चढ़ाएं।
- चंद्रमा के सामने दीपक जलाएं।
- मंत्र का जाप करें- ॐ सोम मंत्र:, ॐ सोमाय नमः, चंद्र देव मंत्र:, ॐ चंद्रमणि मंत्राय नमः
- चंद्रमा को खीर, फल और मिठाई का भोग लगाएं।