गणेश चतुर्थी से लेकर अनंत चौदस तक पढ़ें ये खास स्तोत्र

गणेश जी को ज्ञान, बुद्धि, समृद्धि, शक्ति और सम्मान का कारक माना जाता है। हिंदू धर्म में किसी भी शुभ कार्य से पहले भगवान गणेश की पूजा की जाती है। गणेश जी का जन्म भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को हुआ था। इसलिए इस चतुर्थी को गणेश चतुर्थी कहा जाता है। इस बार गणेश चतुर्थी का त्योहार 07 सितंबर से शुरू हो गया है। मान्यता है कि गणेश चतुर्थी के दिन किए गए कई उपाय सफल होते हैं। खासकर अगर आपने किसी से कर्ज लिया है तो गणेश चतुर्थी से अनंत चौदस तक एक खास स्तोत्र का पाठ करने से आप आसानी से इससे मुक्ति पा सकते हैं। आइए जानते हैं इस स्तोत्र के बारे में।

लाभकारी है ऋणहर्ता गणपति स्तोत्र का पाठ

अगर आप लंबे समय से कर्ज को लेकर परेशान हैं और उसे चुकाने में काफी दिक्कतों का सामना कर रहे हैं तो गणेश चतुर्थी का समय आपके लिए काफी अच्छा है। गणेश चतुर्थी के दिन से गणपति उत्सव शुरू होकर अनंत चतुर्दशी तक चलता है। कर्ज से मुक्ति पाने के लिए गणेश उत्सव के दौरान गणपति के सामने ‘ऋणहर्ता गणपति स्तोत्र’ का पाठ करने से जल्दी कर्ज से मुक्ति मिलती है। इसके लिए गणपति की पूजा के बाद प्रतिदिन सुबह-शाम ऋणहर्ता गणपति स्तोत्र का पाठ करें और भगवान से कर्ज मुक्ति के लिए प्रार्थना करें।

ऋणहर्ता गणपति स्तोत्र

ध्यान : ॐ सिन्दूर-वर्णं द्वि-भुजं गणेशं लम्बोदरं पद्म-दले निविष्टम् ब्रह्मादि-देवैः परि-सेव्यमानं सिद्धैर्युतं तं प्रणामि देवम्

मूल-पाठ
सृष्ट्यादौ ब्रह्मणा सम्यक् पूजित: फल-सिद्धए, सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे.

त्रिपुरस्य वधात् पूर्वं शम्भुना सम्यगर्चित:, सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे.

हिरण्य-कश्यप्वादीनां वधार्थे विष्णुनार्चित:, सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे.

महिषस्य वधे देव्या गण-नाथ: प्रपुजित:, सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे.

तारकस्य वधात् पूर्वं कुमारेण प्रपूजित:, सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे.

भास्करेण गणेशो हि पूजितश्छवि-सिद्धए, सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे.

शशिना कान्ति-वृद्धयर्थं पूजितो गण-नायक:, सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे.

पालनाय च तपसां विश्वामित्रेण पूजित:, सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे.

इदं त्वृण-हर-स्तोत्रं तीव्र-दारिद्र्य-नाशनं, एक-वारं पठेन्नित्यं वर्षमेकं सामहित:, दारिद्रयं दारुणं त्यक्त्वा कुबेर-समतां व्रजेत्.

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