हिंदू धर्म में हर चीज़ का विशेष महत्व है। इस धर्म में 16 संस्कार बताए गए हैं और इनका विशेष महत्व बताया गया है। इन 16 संस्कारों में सबसे अंत का संस्कार जो कि मृत्यु के बाद किया जाता है, वो भी काफी महत्वपूर्ण है, जिसे अंतिम संस्कार या दाह संस्कार के रूप में जाना जाता है। अन्य जो भी संस्कार हैं, उनकी तुलना में अंतिम संस्कार काफी महत्वपूर्ण इसलिए भी है, क्योंकि यही वो संस्कार है जिसके ज़रिए मृत व्यक्ति का शरीर जो कि पंच महाभूतों से निर्मित होता है, वो फिर से पंच महाभूतों में विलीन हो जाता है।
मान्यताओं के अनुसार ऐसा कहा जाता है कि मृत्यु के बाद व्यक्ति का जो अंतिम संस्कार होता है, उसी से ये तय होता है कि व्यक्ति को मोक्ष की या परलोक की या फिर पुनर्जन्म की प्राप्ति होगी। यही कारण है कि हिंदू धर्म में व्यक्ति की संसार से अंतिम विदाई पूरे रीति रिवाज और विधि विधान के साथ संपन्न की जाती है। इन विधि विधानों में एक विधि ऐसी भी है, जिसके बिना अंतिम संस्कार को पूर्ण नहीं माना जाता है। इसे कपाल क्रिया के नाम से जाना जाता है। यह क्रिया देखने में तो हृदय विदारक प्रतीत होती है, लेकिन इसका संबंध जन्म जन्मांतर से होता है, इसीलिए इस क्रिया को मृत्यु के पश्चात अवश्य रूप से किया जाना चाहिए। अगर ये क्रिया नहीं की जाती है तो ऐसा माना जाता है कि मृत आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति नहीं होती है। तो क्या है कपाल क्रिया और क्यों इस क्रिया को किया जाता है। आज इसी बारे में हम जानकारी प्रदान करने जा रहे हैं। साथ ही आज हम इसके वैज्ञानिक दृष्टिकोण को भी समझेंगे।
कपाल क्रिया क्या होती है?
हिंदू धर्म में जिस तरह से बच्चे के जन्म के बाद बहुत सारे रीति रिवाजों का पालन किया जाता है, उसी तरह से व्यक्ति की मृत्यु के बाद भी बहुत रीति रिवाजों का पालन किया जाता है और इस संसार से विदा किया जाता है। अंतिम संस्कार को सही ढंग से करना अत्यंत आवश्यक है क्योंकि मृत्यु के बाद आगे का मार्ग क्या होगा, ये व्यक्ति के अंतिम संस्कार पर ही निर्भर करता है। जिन व्यक्तियों का अंतिम संस्कार पूरे विधि विधान से नहीं किया जाता है, उनकी आत्मा मोक्ष को प्राप्त नहीं कर पाती है और वो आत्मा यहीं प्रथ्वी लोक पर ही भटकती रहती है। यही वो आत्मा होती है, जो अपने आसपास के लोगों को परेशान करती है और बुरी आत्मा कहलाती है। यही कारण है कि किसी भी व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसके परिजनों को उसका अंतिम संस्कार पूरे विधि विधान से करना चाहिए। इन विधि विधानों में मुख्य रूप से कपाल क्रिया का किया जाना आवश्यक है। इसके बारे में ज्यादा किसी को जानकारी तो नहीं है, लेकिन इसका बहुत अधिक महत्त्व है। ऐसा माना जाता है कि जब व्यक्ति को अगला नया जन्म प्राप्त होता है तो उसके दिमाग में पिछ्ले जन्म की कई बातें शेष रह जाती हैं। ऐसा इसलिए होती है क्योंकि व्यक्ति की कपाल क्रिया सही ढंग से नहीं होती है। जब मृत शव को मुखाग्नि प्रदान की जाती है, उसके करीब आधे घंटे के भीतर ही मृत शरीर की चमड़ी और मांस अधिकांशतः जल जाता है। इसी समय कपाल क्रिया की जाती है। इसमें एक डंडा लिया जाता है और उस डंडे से मृतक के कपाल पर चोट की जाती है। ऐसा करने से जो मृत शरीर होता है उसके सिर में गड्ढा हो जाता है। इसके बाद इस गड्ढे में घी डाला जाता है। Iएक बांस लिया जाता है और बांस में लोटा बांधा जाता है। इस बंधे हुए लोटे से शव के जो सिर का हिस्सा होता है उसमें और अधिक घी डाला जाता है ताकि सिर का जो भाग है वो पूरी तरह से जल सके। सिर के भाग का जलना सबसे ज्यादा आवश्यक होता है। इस क्रिया को देखकर अक्सर लोग हैरान रह जाते हैं और ज्यादातर लोगों को इसका मतलब भी नहीं पता होता है। लेकिन हिंदू धर्म में पुराणों में ऐसा कहा गया है कि इस क्रिया का किया जाना अत्यंत आवश्य है, अन्यथा मृतक की आत्मा को मुक्ति नहीं मिल पाती है और वो यहीं पृथ्वी लोक पर ही सदैव के लिए भटकती रहती है।
कपाल क्रिया इसलिए की जाती है क्योंकि बाकी शरीर की तुलना में सिर की जो हड्डियां होती हैं, वो काफी मजबूत होती हैं। ऐसे में ये आसानी से जल नहीं पाती हैं। सिर की हड्डियों को जलने के लिए बाकी शरीर की तुलना में अधिक घी की आवश्यकता होती है। यही कारण है कि सिर में शव के जलने के पश्चात भी घी डाला जाता है और इसी को कपाल क्रिया के नाम से जाना जाता है। कपाल क्रिया को करने के दूसरे अन्य कारण भी हैं। ये इसलिए भी की जाती है ताकि मृतक के सिर को डंडे से खोलकर मुक्ति प्रदान की जा सके। इसके साथ ही इसका अन्य कारण यह भी है कि मृत शरीर के आसपास बहुत सारी तांत्रिक क्रियाएं चल रही होती हैं और इसीलिए मृत शरीर के कपाल को तांत्रिक क्रियाओं से बचाना होता है। क्योंकि अगर तांत्रिक क्रिया के जंजाल में मृत आत्मा फंस जाती है तो उसे मोक्ष की प्राप्ति नहीं हो पाती है और वो अपने आसपास के लोगों को परेशान करना शुरू कर देती है। ऐसे में कपाल क्रिया को करना आवश्यक हो जाता है।
अगर कपाल क्रिया सही से नहीं होती है तो व्यक्ति अपने पिछ्ले जन्म की बातों को भूल पाने में असमर्थ रहता है। साथ ही ये भी माना जाता है कि जब तक मृत शरीर की कपाल क्रिया सही ढंग से संपन्न नहीं होती है, तब तक उसकी आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति नहीं होती है।
इसके अलावा जो योगी संन्यासी होते हैं, उनके शवों का दाह संस्कार नहीं किया जाता है और इसीलिए उनकी कपाल क्रिया भी नहीं की जाती है। ऐसा इसलिए क्योंकि ऐसा माना जाता है कि साधु- संत पहले से ही संसार के बंधनों से मुक्त हुए रहते हैं और उन्हें किसी भी तरह की कोई भी मोह माया नहीं होती है। यही कारण है कि सिद्ध पुरूषों का दाह संस्कार नहीं किया जाता है और उन्हें समाधि प्रदान की जाती है।