भक्त सावन के महीने का बेसब्री से इंतजार करते हैं। इस मौके पर भगवान शिव के कई रूपों की पूजा की जाती है। शिव का अर्धनारीश्वर रूप बहुत भव्य है। धार्मिक मान्यता है कि महादेव ने ब्रह्मा जी के समक्ष यह रूप धारण किया था। भगवान शिव और शक्ति को प्रसन्न करने के लिए साधक भोलेनाथ के अर्धनारीश्वर रूप की विशेष पूजा करते हैं। आइए जानते हैं भगवान शिव ने अर्धनारीश्वर रूप क्यों धारण किया।
सृष्टिके प्रारम्भमें जब ब्रह्माजीद्वारा रची गयी मानसिक सृष्टि विस्तार न पा सकी, तब ब्रह्माजीको बहुत दुःख हुआ। उसी समय आकाशवाणी हुई ‘ब्रह्मन् ! अब मैथुनी सृष्टि करो।’ आकाशवाणी सुनकर ब्रह्माजीने मैथुनी सृष्टि रचनेका निश्चय तो कर लिया, किंतु उस समयतक नारियोंकी उत्पत्ति न होनेके कारण वे अपने निश्चयमें सफल नहीं हो सके। तब ब्रह्माजीने सोचा कि परमेश्वर शिवकी कृपा के बिना मैथुनी सृष्टि नहीं हो सकती। अतः वे उन्हें प्रसन्न करनेके लिये कठोर तप करने लगे। बहुत दिनोंतक ब्रह्माजी अपने हृदयमें प्रेमपूर्वक महेश्वर शिवका ध्यान करते रहे। उनके तीव्र तपसे प्रसन्न होकर भगवान् उमा-महेश्वरने उन्हें अर्धनारीश्वर- रूपमें दर्शन दिया। देवाधिदेव भगवान् शिवके उस दिव्य स्वरूपको देखकर ब्रह्माजी अभिभूत हो उठे और उन्होंने दण्डकी भाँति भूमिपर लेटकर उस अलौकिक विग्रहको प्रणाम किया।
महेश्वर शिवने कहा- ‘पुत्र ब्रह्मा ! मुझे तुम्हारा मनोरथ ज्ञात हो गया है। तुमने प्रजाओंकी वृद्धिके लिये जो कठिन तप किया है; उससे मैं परम प्रसन्न हूँ। मैं तुम्हारी इच्छा अवश्य पूरी करूँगा।’ ऐसा कहकर शिवजीने अपने शरीरके आधे भागसे उमादेवीको अलग कर दिया। तदनन्तर परमेश्वर शिवके अर्धाङ्गसे अलग हुई उन पराशक्तिको साष्टांग प्रणाम करके
ब्रह्माजी इस प्रकार कहने लगे –
‘शिवे ! सृष्टिके प्रारम्भमें आपके पति देवाधिदेव शम्भुने मेरी रचना की थी। भगवति ! उन्हींके आदेशसे मैंने देवता आदि समस्त प्रजाओंकी मानसिक सृष्टि की। परंतु अनेक प्रयासोंके बाद भी उनकी वृद्धि करनेमें मैं असफल रहा हूँ। अतः अब स्त्री-पुरुषके समागमसे मैं प्रजाओंको उत्पन्न कर सृष्टिका विस्तार करना चाहता हूँ, किंतु अभीतक नारी-कुलका प्राकट्य नहीं हुआ है और नारी-कुलकी सृष्टि करना मेरी शक्तिके बाहर है। देवि ! आप सम्पूर्ण सृष्टि तथा शक्तियोंकी उद्गमस्थली हैं। इसलिये हे मातेश्वरी, आप मुझे नारी कुलकी सृष्टि करनेकी शक्ति प्रदान करें। मैं आपसे एक और विनती करता हूँ कि चराचर जगत्की वृद्धिके लिये आप मेरे
पुत्र दक्षकी पुत्रीके रूपमें जन्म लेनेकी भी कृपा करें।’ ब्रह्माकी प्रार्थना सुनकर परमेश्वरी शिवाने ‘तथास्तु’ ऐसा ही होगा- कहा और ब्रह्माको
उन्होंने नारी-कुलकी सृष्टि करनेकी शक्ति प्रदान की। इसके लिये उन्होंने अपनी भौंहों के मध्यभागसे अपने ही समान कान्तिमती एक शक्ति प्रकट की। उसे देखकर देवदेवेश्वर शिवने हँसते हुए कहा- ‘देवि ! ब्रह्माने तपस्याद्वारा तुम्हारी आराधना की है। अब तुम उनपर प्रसन्न हो जाओ और उनका मनोरथ पूर्ण करो।’ परमेश्वर शिवकी इस आज्ञाको शिरोधार्य करके वह शक्ति ब्रह्माजीकी प्रार्थनाके अनुसार दक्षकी पुत्री हो गयी। इस प्रकार ब्रह्माजीको अनुपम शक्ति देकर देवी शिवा महादेवजीके शरीरमें प्रविष्ट हो गयीं। फिर महादेवजी भी अन्तर्धान हो गये। तभीसे इस लोकमें मैथुनी सृष्टि चल पड़ी। सफल मनोरथ होकर ब्रह्माजी भी परमेश्वर शिवका स्मरण करते हुए निर्विघ्नरूपसे सृष्टि-विस्तार करने लगे।
इस प्रकार शिव और शक्ति एक-दूसरेसे अभिन्न तथा सृष्टिके आदिकारण हैं। जैसे पुष्पमें गन्ध, चन्द्रमें चन्द्रिका, सूर्यमें प्रभा नित्य और स्वभाव-सिद्ध है, उसी प्रकार शिवमें शक्ति भी स्वभाव-सिद्ध है। शिवमें इकार ही शक्ति है। शिव कूटस्थ तत्त्व है और शक्ति परिणामी तत्त्व। शिव अजन्मा आत्मा है और शक्ति जगत्में नाम-रूपके द्वारा व्यक्त सत्ता। यही अर्धनारीश्वर शिवका रहस्य है।