सुप्रीम कोर्ट ने एससी-एसटी आरक्षण को लेकर बड़ा फैसला सुनाया है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि ओबीसी आरक्षण की तरह ही एससी-एसटी आरक्षण में भी क्रीमी लेयर का सिद्धांत लागू किया जा सकता है. खास बात यह है कि सुप्रीम कोर्ट की 7 जजों की संविधान पीठ ने यह फैसला 6:1 से सुनाया है. फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस ने कहा कि वे इस बात से सहमत हैं कि एससी-एसटी कैटेगरी में सह कैटेगरी बनाकर अधिक पिछड़े लोगों को अलग से कोटा दिया जाना चाहिए.
यह फैसला सुनाने वाली सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ में सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ , जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस विक्रम नाथ , जस्टिस बेला एम त्रिवेदी , जस्टिस पंकज मित्तल , जस्टिस मनोज मिश्र और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा शामिल थे. जिनमें से 6 जज फैसले से सहमत रहे, जबकि जस्टिस बेला त्रिवेदी ने असहमति जताई. हम आपको बता रहे हैं कि सुप्रीम कोर्ट के इस ऐतिहासिक फैसले से मध्य प्रदेश में क्या असर पड़ेगा…
एसटी में गोंड-भील, एससी में जाटव-महार का घटेगा दबदबा
सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले के बाद मध्य प्रदेश में एससी-एसटी में भी कुछ विशेष जातियों का दबदबा घटेगा. अभी प्रदेश में कुल 5,90,550 कर्मचारी कार्यरत हैं. इसमें से 20% आरक्षण के अनुसार एसटी के 1.18 लाख और 16% आरक्षण के हिसाब से एससी के 94,488 कर्मचारी कार्यरत हैं, लेकिन एसटी वर्ग की 46 और एससी वर्ग की 48 जातियों के कितने कर्मचारी हैं यह जानकारी नहीं हैं.
एससी : 48 जातियों को पर्याप्त लाभ नहीं
एससी को 16% आरक्षण है, जिसका सर्वाधिक लाभ जाटव, महार, मेहरा और अहिरवार को मिला है. इसी वर्ग की 48 जातियों में से बेड़िया, बंसोर, बेलदार, भंगी, मेहतर, चड़ार, बेलदार, झमराल, पासी, कुचबंदिया, खंगार, झइझर, कालबेलिया, सपेरा, नवदीगार, कोटवाल, चितार को पर्याप्त लाभ नहीं मिला है.
एसटी : सहरिया, उरांव का प्रतिनिधित्व कम
इस वर्ग को प्रदेश में 20% आरक्षण है. इस वर्ग में 46 जातियां हैं, जिनमें से सरकारी नौकरियों में गोंड, कौल, भील, भिलाला, बारेला और डामोर का सर्वाधिक कब्जा है. सहरिया के अभ्यर्थी 12वीं पास भी बमुश्किल हैं. इसलिए सरकारी नौकरियों में संख्या कम है. उरांव, मुंडा, नगेसिया, मवासी, उरांव, घनुका, धनगड़, पनिका के भी यही हाल हैं.
अब जानते हैं सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों ने यह ऐतिहासिक फैसला सुनाते समय क्या टिप्पणी की…
पक्ष में फैसला देने वाले जजों के बयान
CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने फैसले के पक्ष में कहा कि सब-क्लासिफिकेशन (कोटे में कोटा) आर्टिकल 14 का उल्लंघन नहीं करता, क्योंकि सब-कैटेगरीज को सूची से बाहर नहीं रखा गया है. आर्टिकल 15 और 16 में ऐसा कुछ नहीं है जो राज्य को किसी जाति को सब-कैटेगरी में बांटने से रोकता हो. एससी की पहचान बताने वाले पैमानों से ही पता चल जाता है कि वर्गों के भीतर बहुत ज्यादा फर्क है. वहीं जस्टिस बीआर गवई ने कहा कि सब कैटेगरी का आधार राज्यों के आंकड़ों से होना चाहिए, वह अपनी मर्जी से काम नहीं कर सकता. क्योंकि आरक्षण के बाद भी निम्न ग्रेड के लोगों को अपने पेशे को छोड़ने में कठिनाई होती है. ईवी चिन्नैया केस में असली गलती यह है कि यह इस समझ पर आगे बढ़ा कि आर्टिकल 341 आरक्षण का आधार है.
जस्टिस गवई ने कहा कि इस जमीनी हकीकत से इनकार नहीं किया जा सकता कि एससी-एसटी के भीतर ऐसी कैटेगरी हैं, जिन्हें सदियों से उत्पीड़न का सामना करना पड़ा है. सब कैटेगरी का आधार यह है कि बड़े समूह के अंतर्गत आने वाले एक समूह को ज्यादा भेदभाव का सामना करना पड़ता है. अनुसूचित जातियों के हाई क्लास वकीलों के बच्चों की तुलना गांव में मैला ढोने वाले के बच्चों से करना गलत है.
उन्होंने कहा, “बीआर अंबेडकर ने कहा है कि इतिहास बताता है कि जब नैतिकता का सामना अर्थव्यवस्था से होता है तो जीत अर्थव्यवस्था की होती है. सब-कैटेगरी की परमिशन देते समय, राज्य केवल एक सब-कैटेगरी के लिए 100% आरक्षण नहीं रख सकता है.” वहीं जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा ने कहा कि मैं जस्टिस गवई के इस विचार से सहमत हूं कि एससी-एसटी में क्रीमी लेयर की पहचान का मुद्दा राज्य के लिए संवैधानिक अनिवार्यता बन जाना चाहिए.
असहमत जज ने क्या कहा?
जस्टिस बेला एम त्रिवेदी इस फैसले में असहमति जताने वाली इकलौती जज रहीं. उन्होंने कहा कि यह देखा गया है कि आंध्र प्रदेश और पंजाब जैसे राज्यों में स्टेट वाइज रिजर्वेशन के कानूनों को हाई कोर्ट ने असंवैधानिक बताया है. आर्टिकल 341 को लेकर यह कहा है कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि राष्ट्रपति की अधिसूचना अंतिम मानी जाती है. केवल संसद ही कानून बनाकर सूची के भीतर किसी वर्ग को शामिल या बाहर करती है. अनुसूचित जाति कोई साधारण जाति नहीं है, यह केवल आर्टिकल 341 की अधिसूचना के जरिए अस्तित्व में आई है. अनुसूचित जाति वर्गों, जनजातियों का एक मिश्रण है और एक बार अधिसूचित होने के बाद एक समरूप समूह बन जाती है. राज्यों का सब-क्लासिफिकेशन आर्टिकल 341(2) के तहत राष्ट्रपति की अधिसूचना के साथ छेड़छाड़ करने जैसा होगा.
जस्टिस बेला ने कहा कि इंदिरा साहनी ने पिछड़े वर्गों को अनुसूचित जातियों के नजरिए से नहीं देखा है. आर्टिकल 142 का इस्तेमाल एक नया बिल्डिंग बनाने के लिए नहीं किया जा सकता है जो संविधान में पहले से मौजूद नहीं थी. कभी-कभी सकारात्मक कार्रवाई की नीतियों और संविधान में कई तरह से मतभेद होते हैं. इन नीतियों को समानता के सिद्धांतों का पालन करना चाहिए. मेरा मानना है कि ईवी चिन्नैया मामले में निर्धारित कानून सही है और इसकी पुष्टि होनी चाहिए.