सरकार का पूरा बजट काफी संयमित है। इसमें रोजगार, युवा और महिलाओं के साथ-साथ कौशल पर काफी ध्यान दिया गया है। यह काफी अहम है, क्योंकि वैश्विक स्तर पर भारत के पास अपार क्षमताएं हैं। यहां कौशल विकास को बढ़ावा देने से दुनियाभर में भारतीयों के लिए अवसर पैदा होंगे। हालांकि, स्वास्थ्य क्षेत्र को उसका बहुत छोटा हिस्सा मिला है। इसे लेकर बहुत ज्यादा खुशी नहीं है, लेकिन कैंसर दवाओं से सीमा शुल्क हटाना एक अच्छी सोच है।
इससे उन हजारों मरीजों को सीधे तौर पर फायदा होने वाला है, जो लगातार कैंसर से लड़ाई लड़ रहे हैं। यह इसलिए, क्योंकि इन दवाओं का खर्चा काफी महंगा है। साथ ही बजट में एक्सरे ट्यूब और डिजिटल डिटेक्टर के घटकों पर सीमा शुल्क में छूट की घोषणा भी बेहतर है, लेकिन पूरे स्वास्थ्य बजट में कोई बड़ा बदलाव नहीं है। कई स्वास्थ्य योजनाएं हैं, जिन्हें विस्तार दिया जा सकता है। इसमें हम आयुष्मान भारत जैसी महत्वाकांक्षी योजना की बात कर सकते हैं, जो देश के आखिरी छोर तक के व्यक्ति तक स्वास्थ्य सेवाएं पहुंचाने का सबसे बड़ा विकल्प है।
देश के स्वास्थ्य क्षेत्र को इस बजट से काफी उम्मीदें थीं, क्योंकि स्वास्थ्य देखभाल का खर्च बढ़ता जा रहा है। डॉलर की कीमत में लगातार उछाल होने से काफी कीमत चुकानी पड़ रही है, लेकिन पिछले दो से तीन बजट में सरकार की ओर से इसे लेकर कोई नीति सामने नहीं आई।
स्वास्थ्य जीएसटी और भुगतान में देरी पर चर्चा नहीं
सरकार के स्वास्थ्य बजट में दो महत्वपूर्ण तथ्यों पर चर्चा नहीं हुई है। पहला मुद्दा, स्वास्थ्य और जीएसटी कर का भुगतान है। निजी क्षेत्र के स्वास्थ्य प्रदाताओं को अलग-अलग इनपुट पर जीएसटी का भुगतान करना होता है, लेकिन इसके बदले में सरकार से क्रेडिट नहीं मिलता। इसकी वजह से एक तनाव पैदा हो रहा है, जिसका सामना छोटे और मध्यम श्रेणी के अस्पतालों को सबसे ज्यादा करना पड़ रहा है। दूसरे, स्वास्थ्य सेवाओं की डिलीवरी और सरकार की ओर से भुगतान में देरी होना है। अस्पतालों पर कई तरह के कर के जरिये बड़ी राशि के भुगतान का बोझ है। वहीं सरकार से मिलने वाले भुगतान में देरी से सेवा प्रदाताओं को कठिनाई हो रही है।