देश की 22 क्षेत्रीय भाषाओं में 22 हजार पाठ्यपुस्तकें तैयार की जाएंगी. केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय के मुताबिक इसके लिए UGC के नेतृत्व में भारतीय भाषा समिति के सहयोग से ‘अस्मिता’ की शुरुआत की है. अस्मिता का उद्देश्य अगले पांच वर्षों में 22 अनुसूचित भाषाओं में 22000 पुस्तकें तैयार करना है. इसके साथ ही बहुभाषा शब्दकोष का एक विशाल भंडार बनाने की एक व्यापक पहल भी की गई है. वहीं तत्काल अनुवाद के उपाय, भारतीय भाषा में तत्काल अनुवाद क्षमताओं को बढ़ाने के लिए एक तकनीकी ढांचे के निर्माण की सुविधा भी प्रदान की जा रही है.
महत्वपूर्ण परियोजनाओं की हुई शुरुआत
केंद्रीय शिक्षा सचिव के. संजय मूर्ति ने इन तीन महत्वपूर्ण परियोजनाओं की शुरुआत की. ये परियोजनाएं अस्मिता (अनुवाद और अकादमिक लेखन के माध्यम से भारतीय भाषाओं में अध्ययन सामग्री का संवर्धन), बहुभाषा शब्दकोष और तत्काल अनुवाद के उपाय हैं। केंद्रीय शिक्षा सचिव के मुताबिक इन सभी परियोजनाओं को आकार देने में प्रमुख भूमिका प्रौद्योगिकी की होगी, और एनईटीएफ और बीबीएस की इसमें बहुत बड़ी भूमिका होगी.
शिक्षा मंत्रालय ने एक महत्वपूर्ण कार्यशाला का आयोजन किया. इसमें देश भर से 150 से अधिक कुलपतियों ने हिस्सा लिया. कुलपतियों को 12 मंथन सत्रों में बांटा गया था, इनमें से प्रत्येक 12 क्षेत्रीय भाषाओं में पाठ्य पुस्तकों की योजना बनाने और विकसित करने के लिए समर्पित था.
प्रारंभिक फोकस भाषाओं में पंजाबी, हिन्दी, संस्कृत, बंगाली, उर्दू, गुजराती, कन्नड़, मलयालम, मराठी, तमिल, तेलुगु और ओडिया शामिल थीं. समूहों की अध्यक्षता नोडल विश्वविद्यालयों के संबंधित कुलपतियों ने की और उनके विचार-विमर्श से बहुमूल्य परिणाम सामने आए.
इस पर भी हुई चर्चा
चर्चाओं भारतीय भाषा में नई पाठ्य पुस्तकों के निर्माण को परिभाषित करना, पुस्तकों के लिए 22 भारतीय भाषाओं में मानक शब्दावली स्थापित करना और वर्तमान पाठ्यपुस्तकों के लिए संभावित सुधारों की पहचान करना, घटकों में से एक के रूप में भारतीय ज्ञान प्रणाली (आईकेएस) पर जोर देना, व्यावहारिक और सैद्धांतिक ज्ञान को जोड़ना शामिल था. शिक्षा राज्य मंत्री डॉ. सुकांत मजूमदार ने नई दिल्ली में उच्च शिक्षा के लिए भारतीय भाषा में पाठ्यपुस्तकों के लेखन पर कुलपतियों के लिए इस एक दिवसीय कार्यशाला का उद्घाटन किया. कार्यशाला का आयोजन विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) और भारतीय भाषा समिति (बीबीएस) द्वारा संयुक्त रूप से किया गया था.
शिक्षा मंत्रालय ने एक महत्वपूर्ण कार्यशाला का आयोजन किया. इसमें देश भर से 150 से अधिक कुलपतियों ने हिस्सा लिया. कुलपतियों को 12 मंथन सत्रों में बांटा गया था, इनमें से प्रत्येक 12 क्षेत्रीय भाषाओं में पाठ्य पुस्तकों की योजना बनाने और विकसित करने के लिए समर्पित था.सुकांत मजूमदार ने विभिन्न उच्च शिक्षा पाठ्यक्रमों के लिए भारतीय भाषाओं में अध्ययन सामग्री तैयार करने के महत्व के बारे में बताया. भारतीय भाषाएं राष्ट्र के प्राचीन इतिहास और पीढ़ियों से चली आ रही बुद्धिमत्ता का प्रमाण हैं. उन्होंने कहा कि युवा पीढ़ियों का पोषण किया जाना चाहिए और समृद्ध सांस्कृतिक और भाषाई विरासत में उनके विश्वास को मजबूत किया जाना चाहिए.