मंगलवार, 5 नवंबर को कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी है। इस तिथि को आंवला नवमी कहा जाता है। इसे अक्षय नवमी भी कहते हैं। इस दिन आंवले के वृक्ष की पूजा की जाती है। पुरानी मान्यता है जो लोग इस नवमी पर आंवले की पूजा करते हैं, उन्हें देवी लक्ष्मी की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के अनुसार इस दिन पानी में आंवले का रस मिलाकर स्नान करने की परंपरा भी है। ऐसा करने से हमारे आसपास से नकारात्मक ऊर्जा खत्म होती है, सकारात्मक ऊर्जा और पवित्रता बढ़ती है, साथ ही ये त्वचा के लिए भी बहुत फायदेमंद है। आंवले के रस के सेवन से त्वचा की चमक भी बढ़ती है।
आंवला नवमी के संबंध में कथा प्रचलित है कि प्राचीन समय में कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि पर देवी लक्ष्मी ने आंवले के वृक्ष के नीचे शिवजी और विष्णुजी की पूजा की थी। तभी से इस तिथि पर आंवले के पूजन की परंपरा शुरू हुई है।
आयुर्वेद के अनुसार आंवला सेहत के लिए वरदान है। इसके नियमित सेवन से आयु बढ़ती है और बीमारियों से रक्षा होती है। पं. शर्मा के अनुसार आंवले के रस का धार्मिक महत्व भी है। मान्यता है कि नियमित रूप से पीने से पुण्य में बढ़ोतरी होती है और पाप नष्ट होते हैं। पीपल, तुलसी की तरह ही आंवला भी पूजनीय और पवित्र माना गया है और इसी वजह से आंवला नवमी पर इसकी पूजा की जाती है।
पं. शर्मा के मुताबिक रविवार और सप्तमी तिथि पर आंवले के सेवन से बचना चाहिए। साथ ही, शुक्रवार और माह की प्रतिपदा तिथि, षष्ठी, नवमी, अमावस्या तिथि और सूर्य के राशि परिवर्तन वाले दिन आंवले का सेवन न करें। आंवला नवमी पर आंवले के वृक्ष के गरीबों को भोजन कराने की भी परंपरा है।