राजधानी दिल्ली-एनसीआर सहित देश के अधिकतर राज्य इन दिनों भीषण गर्मी-लू की चपेट में हैं। पिछले कुछ हफ्तों से राजधानी में तापमान 42-48 डिग्री सेल्सियस के बीच बना हुआ है। बुधवार को गर्मी ने सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए। मीडिया रिपोर्टस के मुताबिक दिल्ली के मुंगेशपुर इलाके में बुधवार को अधिकतम तापमान 52.9 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया। यह राष्ट्रीय राजधानी में अब तक दर्ज किया गया सर्वाधिक तापमान है। इस स्तर की गर्मी को स्वास्थ्य विशेषज्ञ गंभीर समस्याकारक मानते हैं। अध्ययनकर्ता कहते हैं, इंसानी सेहत के लिए 45 डिग्री से अधिक का तापमान गंभीर समस्याकारक है। इसका 50 से ऊपर जाना जानलेवा दुष्प्रभावों वाला भी हो सकता है।
क्या वास्तव में पारा 50 को पार कर गया है? इस बारे में भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के महानिदेशक डॉ एम महापात्रा ने कहा, मौसम विभाग मुंगेशपुर के स्वचालित मौसम स्टेशन में लगे तापमान सेंसर की जांच कर रहा है, ताकि ये पता किया जा सके कि सेंसर सही से काम कर रहा है या नहीं?
राजस्थान के कई हिस्सों में पारा 50 डिग्री और उससे अधिक रिपोर्ट किया जा रहा है। सेहत के नजरिए से देखें तो स्वास्थ्य विशेषज्ञ इस स्तर के तापमान को जानलेवा दुष्प्रभावों वाला बताते हैं। आइए जानते हैं कि 50 डिग्री से अधिक तापमान के शरीर पर किस तरह के दुष्प्रभाव हो सकते हैं? क्या इंसानी शरीर 50 से अधिक तापमान को सहन कर सकता है?
बढ़ता तापमान हो सकता है गंभीर समस्याकारक
भारत सहित दुनिया के कई देश पिछले एक दशक से तापमान में लगातार हो रही वृद्धि का सामना कर रहे हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका में पिछले कुछ वर्षों में बढ़ते तापमान ने सार्वजनिक स्वास्थ्य को खतरे में डाल दिया है। कई शहरों में हीट स्ट्रोक और गर्मी के कारण होने वाली बीमारियां मृत्यु दर में नाटकीय वृद्धि का कारण बनी हैं। भारत में भी इसके कारण न्यूरोलॉजिकल और कई प्रकार की क्रोनिक बीमारियों सहित मृत्यु के मामले भी बढ़ते देखे जा रहे हैं।
स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं, 50 से अधिक तापमान में कुछ समय बिताना भी सेहत के लिए नुकसानदायक हो सकता है।
तापमान में क्यों हो रही है इस स्तर की बढ़ोतरी?
अमर उजाला से बातचीत में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू( में असिस्टेंट प्रोफेसर (पर्यावरण विभाग) डॉ कृपाराम बताते हैं, बढ़ता तापमान अत्यंत गंभीर विषय है, पर दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि हम इसकी गंभीरता को समझ नहीं रहे हैं। जलवायु परिवर्तन को सिर्फ तापमान बढ़ने तक ही सीमित नहीं करना चाहिए, इसका वाटर बॉडीज पर भी गंभीर असर होता है जो तापमान बढ़ने के बाद प्रक्रिया स्वरूप ग्रीन हाउस गैस को बढ़ाने का कारक हैं। अलबिडो के स्तर में हो रहा बदलाव भी बड़ी चिंता का कारण है। अलबिडो, सोलर रेडिएशन का मापक है, जिसके आधार पर धरती पर सूर्य की ताप आने के बाद यह वातावरण में कितना रिफ्लेक्ट हो रहा है, उसे मापा जाता है।
डॉ कृपाराम कहते हैं, कार्बन उत्सर्जन रोकथाम वैश्विक स्तर का विषय है। पेड़ों की कटाई, कंक्रीट का बढ़ना तापमान को बढ़ाता जा रहा है।
सेहत के लिए हो सकती हैं गंभीर समस्याएं
सेहत पर उच्च तापमान के क्या दुष्प्रभाव हो सकते हैं, इस बारे में जानने के लिए शोधकर्ताओं ने 23 से 58 वर्ष की आयु के स्वस्थ स्वयंसेवकों पर अध्ययन किया प्रत्येक प्रतिभागी को रोजाना एक घंटे के लिए पांच तापमान स्थितियों (28 डिग्री सेल्सियस से 50 डिग्री सेल्सियस के बीच अलग-अलग) में रखा गया। शोधकर्ताओं ने पाया कि जिन प्रतिभागियों का संपर्क 40 डिग्री से अधिक तापमान में अधिक रहा उनमें रक्तचाप, पसीना आने की दर, हृदय गति, सांस लेने की दर में परिवर्तन देखा गया। 50 डिग्री से अधिक के तापमान में हृदय गति में 64 प्रतिशत से अधिक की बढ़ोतरी देखी गई।
दिल्ली स्थित एक अस्पताल में कंसल्टेंट और इंटरनल मेडिसिन के डॉ प्रखर अवस्थी कहते हैं, बढ़ता तापमान सभी के लिए घातक है। इसका सबसे ज्यादा असर बच्चों और बुजुर्गों की सेहत पर होता है।
स्ट्रोक-हार्ट अटैक के बढ़ सकते हैं मामले
स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं, तेज गर्मी के संपर्क में रहने से हृदय गति और ब्लड प्रेशर पर सबसे ज्यादा असर देखा जाता है। ब्लड प्रेशर सामान्य से अधिक होने के कारण दिल का दौरा और हृदय संबंधी अन्य समस्याओं के साथ स्ट्रोक का जोखिम बढ़ सकता है। शोध से पता चलता है कि 50 से अधिक तापमान में हृदय संबंधी बीमारियों (दिल या रक्त वाहिकाओं को प्रभावित करने वाली स्थितियां) से होने वाली मौतों की संख्या दो से तीन गुनी हो सकती है।
डॉ प्रखर बताते हैं, अधिक तापमान के दुष्प्रभाव सिर्फ लू लगने तक ही सीमित नहीं हैं। उच्च तापमान और उच्च आर्द्रता में धड़कन तेज हो जाती है। इस तरह के जोखिम सभी उम्र के लोगों की सेहत पर हो सकते हैं।
नोट: यह लेख मेडिकल रिपोर्टस से एकत्रित जानकारियों के आधार पर तैयार किया गया है।