छठ पर्व पर डूबते एवं उगते सूर्य की अराधना की जाती है

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देश के हर भाग में आज श्रद्धा एवं विश्वास के साथ मनाये जाने वाला महान पर्व छठ सूर्योपासना सुख – शांति का प्रतीक बन चुका है। आज सूर्य ही प्रत्यक्ष देवता के रूप में सभी के समने विराजमान है, जो कालजयी एवं उर्जावान है। जिन्हें उपनिषद में ब्रम्हा, विष्णु, व महेश का स्वरुप बताया गया है। जिनकी उपासना से प्राणी हर कष्ट से मुक्त हो जाता है। वेद पुराण में सूर्य उपासना को प्रमुख बताया गया है। इसी तेजवान सूर्य की उपासना सुख शांति पुत्र प्राप्ति  के लिये वर्षो से कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष के षष्ठी तिथि को प्रति वर्ष छठ व्रत के रूप में श्रद्धा एवं विश्वास के साथ नदी, तालाब के किनारे देश के हर भाग में किये जाने की परम्परा अनवरत चालू है। उगते सूर्य की पूजा तो प्रायः सभी करते है पर  यह विश्व की पहली ऐसी उपासना है जहां डूबते सूर्य की भी पूजा की जाती है। यह व्रत कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष को षष्ठी तिथि में अस्ताचल की ओर जाते सूर्य की उपासना के साथ प्रारम्भ होकर दूसरे दिन सप्तमी तिथि में उदित सूर्य को अर्घ देने के साथ समाप्त होता है। वैसे इस व्रत का शुभारम्भ पंचमी से ही हो जाता है जिसे खरना कहा जाता हैं। इस दिन व्रत करने वाला दिन भर उपवास रहकर शाम को प्रसाद के रुप में खीर लेता है जिसे आंचलिक भाषा में खरना कहा जाता है। दूसरे दिन षष्ठी तिथि को बिना अन्न – जल ग्रहण किये व्रत करने वाला व्रती सरिवार संध्या काल में पूजन सामग्री के साथ पूजा घाट पर पहुंचता है जहां जल में खड़े होकर डूबते हुए सूर्य की अराधना के साथ गंगा जल व गाय के दूध से अघ्र्र देकर घर वापिस आ जाता है, रात्रि भर उपवास रहने के बाद दूसरे दिन सप्तमी को पुनः सरिवार प्रसाद की डाल लेकर प्रातःकाल पूजा घाट पर पहुंचता है एवं जल में खड़े होकर उगते सूर्य को गाय के दूध से अर्घ देकर पूजा की समाप्ति करता है। तदपरान्त प्रसाद एक दूसरे को देकर एवं स्वयं ग्रहण कर श्रव्द्धा सहित इस महान पर्व को पूरा करता है। इस व्रत को करने वाला व्रती अधिकांशतः महिलाएं होती है । जब कि पुरुष वर्ग भी इस व्रत को करता है पर उसकी संख्या नगण्य होती है । इस व्रत में गुड़ -चीनी से बने मीठे पकवान जिन्हें बिहार की लोकभाषा में ठेकुआ कहा जाता है, के साथ हर प्रकार का मौसमी फल प्रसाद के रुप में चढ़ाया जाता है। गन्ना ( ईख ) का प्रयोग प्रसाद के रुप में इस व्रत में विशेष रुप से किया जाता है। पूजा घाट की शोभा इस गन्ने से और रमणीय एवं शोभनीय बन जाती है। इस व्रत में शुद्धता का विशेष ध्यान रखा जाता है। जहां  आस्था के विभिन्न रुप के दर्शन होते है। कुछ व्रती घाट पर लेट कर प्रणाम्् की मुद्रा में आते देखे जा सकते है तो कुछ पूजा काल के दौरान पूरे समय तक जल में खड़े होकर सुर्य की अराधना करते देखे जा सकते है। मनोवांछित फल देनेे वाला यह व्रत आज पूर्वाचल से शुरू होकर देश विदेश में काफी लोकप्रिय हो चुका है । जहां जहां पूर्वाचल के लोग पहुंचे है, इस व्रत को श्रद्धा पूर्वक सदा करते रहे है जिसके वजह से आज केवल यह  पूर्वाचल का पर्व न होकर विश्व स्तरीय रुप धारण कर चुका है।
इस व्रत को प्राचीन काल से ही नाग, किन्नर, मानव में करने के प्रमाण मिलते है। संकट काल में द्वापर युग में दौपदी द्वारा इस व्रत को करने एवं पांडवों को अपना राज्य मिलने की भी बात प्रमुख रही है। यह व्रत विहार , झारखंड के हर परिवार में श्रद्धा के साथ प्रति वर्ष किया जाता है। इस प्रांत के निवासी देश, विदेश जहां भी रहते है, श्रद्धा के साथ वही इस व्रत को करते है। इसी करण यह व्रत आज अंतर्राष्टीय रुप ले चुका है। देश का हर कोना कोना आज  इस व्रत की गंूज से गंुजयमान तो हो ही रहा है, मारिशश, फीजी, सूरीनामी आदि देश में  भी इस छठ पूजा की धूम मची हुई है।
षष्ठी तिथि को अस्थाचल होते हुए सूर्य को प्रथम अघ्र्य इस कामना एवं विश्वास के साथ कि उदय के समय हमारी झोली खुशियों से सूर्य देव की असीम कृृपा से सदा के लिये भर जायेगी , दूसरे दिन उगते सूर्य को अघ्र्य देकर व्रत की समाप्ति होती है। इस अवसर पर घाट का दृृश्य अति मनोरम होता है। ईख से अच्छादित वातावरण हर किसी को अपनी ओर खींच लेता है। 
इस व्रत की महिमा अपरम्पार है।  जिस किसी ने भी इस व्रत को विश्वास एवं श्रद्धा के साथ किया है। उसकी हर मनोकामना पूर्ण हुई है। पुत्र, यश , धन प्राप्ति के लिये किये इस व्रत के परिणाम सदैव ही सकरात्मक रहे है। तभी इस व्रत को करने वालों की संख्या में निरंतर वृृद्धि ही होती जा रही है। आज यह व्रत केवल विहार, झारखंड प्रांत का ही नहीं होकर पूरे देश का हो चला है। जो भी इस व्रत की अपार महिमा से परिचित हुआ है, इस व्रत को करते मिलेगा। इस व्रत को हर जाति संप्रदाय के लोग करते मिलेगें। इसी कारण यह व्रत आपसी भाईचारा एव्र सद््भावना का प्रतीक बन चुका है।
इस व्रत को बिहार प्रदेश के चर्चित राजनेताओं के साथ देश के समस्त भागों में इस आस्था से जुड़े लोगों ने श्रद्धा के साथ खुशहाली , अमन चैन के लिये प्रति वर्ष करते आ रहे है जिनमें हर वर्ष व्रत करने वालों की सेख्या में वृृद्धि ही होती जा रही है। इस व्रत की महिमा के प्रचार प्रसार में दृृश्य मीडिया के साथ – साथ भोजपुरी कलाकारों का योगदान काफी महŸवपूर्ण रहा है जिसके कारण आज बिहार संस्कृृति के अलावे देश की अन्य संस्कृृति से जृुड़े लोग भी श्रद्धा के साथ कर रहे है। विश्व का एक मात्र यहीं व्रत है जहां डूबते एवं उगते सूर्य की अराधना की जाती है। 
आस्था एवं विश्वास से जुड़ा चर्चित एवं प्रसिद्ध धार्मिक पूजा छठ व्रत का शुभारम्भ श्रद्धा के साथ इस वर्ष1 नव. खरना के साथ पा्ररम्भ होकर 2 नवम्बर की संध्याकालीन पूजन एवं 3 नवम्बर को प्रातःकालीन पूजन के उपरान्त समाप्त हो जायेगा। 

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