भोपाल। इंदौर लोकसभा सीट पर कांग्रेस से बीजेपी के हुए अक्षय के बम के बाद अब बीजेपी की वरिष्ठ नेत्री सुमित्रा महाजन के बयान का दम क्या कह रहा है. क्या ताई और भाई की दरार फिर उभर आई है. इंदौर के राजनीतिक घटनाक्रम पर आईना दिखाती सुमित्रा महाजन की टिप्पणी कि ऐसा नहीं होना चाहिए था और फिर ये कहना कि बीजेपी वाले भी नोटा को वोट देंगे. महाजन का ये बयान किस तरफ इशारा कर रहा है. इत्तेफाक की बात है कि जिस समय सुमित्रा महाजन इंदौर को लेकर कह रही हैं कि इंदौर में तो यूं भी बीजेपी जीत रही थी, ठीक उसी समय कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पवन खेड़ा ने भी अपने बयान में कहा कि हमारे सर्वे में हम इंदौर की सीट हार रहे थे.
ताई-भाई की दरार फिर उभरी !
पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन अकेली ऐसी नेता हैं इंदौर एपीसोड के बाद जिनकी टिप्पणी इस पूरे घटनाक्रम पर सवाल उठाती सामने आई है. महाजन ने मंजूर किया कि उनके पास बीजेपी कार्यकर्ताओं के नोटा का बटन दबाने की अनुमति के लिए फोन आ रहे हैं. उन्होंने ये भी कहा कि जो हुआ वो ठीक नहीं था जबकि हम इंदौर जीत रहे थे. ये बात किसी से छिपी नहीं है कि अक्षय बम के नामांकन वापिसी से लेकर बीजेपी में उनके दाखिले की पटकथा के पीछे भाई यानि कैलाश विजयवर्गीय मुख्य भूमिका में थे. क्या सुमित्रा महाजन के इस एतराज के पीछे वजह ये भी है.
‘दांव पेंच का खेल है राजनीति’
वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक पवन देवलिया कहते हैं कि “राजनीति दांव पेंच का खेल कहा जाता है, इन्दौर जैसा घटनाक्रम विदिशा में सुषमा स्वराज के समय भी हुआ था जब कांग्रेस के दिग्गज नेता पूर्व मंत्री राजकुमार पटेल ने तकनीकी कारणों से अपना नाम खारिज करा लिया था. सुमित्रा महाजन तब भी सक्रिय राजनीति में थी और केन्द्र सरकार में मंत्री भी थीं. “नोटा” तो उस समय था परंतु अभी नोटा की याद आना कैलाश विजयवर्गीय के खिलाफ राजनैतिक प्रदूषण की झलक को स्पष्ट देखा और समझा जा सकता है.”
‘एक ही नेता की जीवन भर चले ऐसा संभव नहीं’
वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक पवन देवलिया आगे कहते हैं कि “राजनीति में एक ही नेता की जीवन भर चले ऐसा भी संभव नहीं है, सुन्दरलाल पटवा और कैलाश जोशी के रहते ही शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री बने थे, जबकि 2003 का विधानसभा चुनाव कैलाश जोशी की अगुवाई में लड़ा गया था, तब कैलाश जोशी ने उमा भारती, बाबूलाल गौर और शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व को स्वीकार किया था. अतीत में जायें तो पटवा जी के नेतृत्व वाली सरकार में कैलाश जोशी ऊर्जा मंत्री रहे थे. ऐसा ही शिवराज सरकार में बाबूलाल गौर के साथ भी हुआ था.”