इंदौर। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने इंदौर के एरोड्रम पुलिस के खिलाफ तीखी टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा कि पुलिस पैसा वसूली में इतनी व्यस्त हो गई कि देखा ही नहीं सिविल लेनदेन को आपराधिक बनाया जा रहा है। दरअसल पूरा मामला पुलिस ने दिल्ली में रहने वाली सरिता और अमेरिका में रहने वाले उनके बेटे सौरभ के खिलाफ 2 करोड़ रुपए नहीं देने के बदले सरकारी जमीन संजय कोटवानी नामक व्यक्ति को बेचे जाने पर केस दर्ज कर लिया था। इस पूरे मामले को निरस्त किए जाने को लेकर सरिता ने अधिवक्ता मनीष यादव के माध्यम से हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। याचिका की सुनवाई के दौरान पूरे मामले में इंदौर हाई कोर्ट की खंडपीठ में मामले की सुनवाई हुई। जिसमें हाईकोर्ट ने एरोड्रम पुलिस की कार्य प्रणाली खिलाफ टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा है कि फरियादी के आरोप पर पुलिस 2 करोड़ रुपए की वसूली में इतना व्यस्त हो गई की जांच करना ही भूल गई मामला सिविल है या क्रिमिनल। पुलिस ने इसकी तस्दीक नहीं की जिनके खिलाफ केस दर्ज हुआ है वह दिल्ली के रहने वाले हैं। पैसे का लेनदेन का एग्रीमेंट मात्र ₹100 के स्टांप पर रायपुर में होना बताया गया है और केस इंदौर में दर्ज कर लिया गया। यही नहीं आरोपियों को जमानत मिली तो पुलिस ने बार-बार उनकी जमानत निरस्त करने के लिए आवेदन भी लगाए और पासपोर्ट तक जप्त करवा दिए। जस्टिस विवेक रूसिया की खंडपीठ ने पुलिस द्वारा दर्ज किए गए प्रकरण के खिलाफ दायर याचिका पर टिप्पणी की हाईकोर्ट ने पुलिस की पूरी कार्रवाई को रद्द कर दिया है।
याचिका बिना जांच के दर्ज करने का आरोप
याचिका में उल्लेख किया गया है कि पुलिस ने बगैर जांच किए केस दर्ज कर लिया। सरिता और संजय के बीच कोई सौदा हुआ ही नहीं, सरिता कभी रायपुर नहीं गई ना ही वह उनका कोई परिचित रायपुर में रहता है। इसके बावजूद रायपुर में एग्रीमेंट करना बता दिया, इस एग्रीमेंट के आधार पर इंदौर में केस दर्ज कर लिया। वहीं पुलिस भी पैसा वसूली के लिए दबाव बनाने लगी। गिरफ्तार करने की धमकी तक पुलिस ने दे दी। हाईकोर्ट ने सभी पक्षों को सुनने के बाद कहा कि एरोड्रम पुलिस ने आउट ऑफ़ द वे जाकर एफआईआर दर्ज करने वालों की मदद की है।