मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने विधानसभा में राज्यपाल के अभिभाषण का धन्यवाद देते हुए कहा था, दुनिया का समय पहले उज्जैन से तय होता था। हमारी सरकार एक बार फिर इसके लिए प्रयास करेगी। माना जाता है कि कर्क रेखा और भूमध्य रेखा एक-दूसरे को उज्जैन में काटती है। यही वजह है कि इसे पृथ्वी की नाभि भी माना जाता है। इसी बयान से कयास लगाए जा रहे है कि आने वाले समय में एक बार फिर दुनिया का समय उज्जैन से तय होगा।
मुख्यमंत्री मोहन यादव ने विधानसभा में कहा कि मध्यप्रदेश सरकार समय के लिए ग्लोबल रेफरेंस के रूप में इस्तेमाल की जाने वाली प्राइम मेरिडियन को इंग्लैंड के ग्रीन विच से उज्जैन लाने के लिए काम करेगी। विधानसभा में सीएम यादव ने कहा कि उनकी सरकार साबित करेगी कि उज्जैन ही प्राइम मेरिडियन है और वह दुनिया के समय को सही करने पर जोर देंगे। उन्होंने कहा, यह हमारा (उज्जैन का) समय था, जो दुनिया में जाना जाता था। लेकिन पेरिस ने समय निर्धारित करना शुरू कर दिया और बाद में इसे अंग्रेजों ने अपनाया, जो ग्रीन विच को प्राइम मेरिडियन मानते थे।
मुख्यमंत्री डॉ. यादव एक प्राचीन हिंदू खगोलीय मान्यता का रेफरेंस दे रहे थे कि उज्जैन को कभी भारत का केंद्रीय मध्याह्न रेखा माना जाता था और यह शहर देश के समय क्षेत्र और समय के अंतर को निर्धारित करता था। यह हिंदू कैलेंडर में समय का आधार भी है। ऐसा विश्वास है कि उज्जैन, शून्य मध्याह्न रेखा और कर्क रेखा से जुड़ा हुआ है। यह भारत की सबसे पुरानी वेधशाला का स्थान भी है, जिसे 18वीं शताब्दी की शुरुआत में जयपुर के सवाई जय सिंह द्वितीय ने बनवाया था। इस बात के कई प्रमाण भी मिलते हैं।
स्टैंडर्ड टाइम कहां से तय होना चाहिए, यह उज्जैन तय करेगा। इसके लिए विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के माध्यम से मध्यप्रदेश सरकार काम करने जा रही है। मंथन के लिए भारतीय विज्ञान कांग्रेस के माध्यम से अंतरराष्ट्रीय कांग्रेस कराई जाएगी। अगर अंतरराष्ट्रीय विज्ञान कांग्रेस निर्धारित करेगी तो स्टैंडर्ड टाइम में बदलाव आएगा। इसी कड़ी में इंदौर आईआईटी का विस्तार करते हुए अब उज्जैन में आईआईटी सेटेलाइट टाउन बनाया जाएगा। इस संबंध में प्रस्ताव लाया जा रहा है। यह जानकारी मुख्यमंत्री डा. मोहन यादव ने 16वीं विधानसभा के प्रथम सत्र के अंतिम दिन राज्यपाल के अभिभाषण में चर्चा के दौरान दी।
उज्जैन वेधशाला अधीक्षक से जानिए क्यों है उज्जैन काल गणना का केंद्र
उज्जैन स्थित जीवाजीराव वेधशाला के अधीक्षक डॉ. राजेंद्र प्रसाद गुप्त ने उज्जैन के मध्य से होकर गुजरने वाली कर्क रेखा के महत्व और उसके ठोस प्रमाण के बारे में बताया। उन्होंने बताया कि पृथ्वी सूर्य के चारों और परिक्रमा करती है, जिस कारण सूर्य की जो स्थिति है वह कर्क रेखा से मकर रेखा के बीच गति करती हुई दिखाई देती है। इसीलिए विषुवत रेखा के बाद दो रेखाएं मानी गई है। उत्तरी गोलार्ध में 23 अंश 26 कला पर कर्क रेखा और दक्षिणी गोलार्ध में इतने ही अक्ष यानी कि 23 अंश और 26 कला पर मकर रेखा। प्राचीन समय में कर्क रेखा उज्जैन से गुजरती थी। क्योंकि उज्जैन का जो अक्षांश था, वह कर्क रेखा के अक्षांश के बराबर है।
पृथ्वी की तीसरी गति होती है, जो अक्ष वाइब्रेट करती है। इस कारण कर्क रेखा की स्थिति थोड़ी सी बदलती है। वर्तमान में डोंगला नामक स्थान पर उसका स्थान 23 अंश और 26 कला एकदम समान है। कर्क रेखा वहां पर है। भारत में उज्जैन वह स्थान था, जो कर्क रेखा पर उस स्थान पर था, जिस पर शून्य रेखांश अर्थात निरक्ष उसे काटे यहां का सूर्योदय देश भर के लिए प्रामाणिक माना जाता था। यहां के काल के साथ तुलना करके ही अन्य स्थानों के स्थानिक काल निर्धारित किए जाते थे। इसलिए उज्जैन का प्राचीन नाम ‘उदयिनी’ भी है। ‘उदयिनी’ का प्राकृत रूप ‘उजेणी’ बना जो पुनः संस्कृतीकरण में ‘उज्जयिनी’ हो गया और उज्जैन के नाम से जाना जाता है।