अब तक कैसी रही शिव की सियासी पारी, डेढ़ दशक बाद क्यों खत्म हुआ राज? जानें इसकी तीन वजह

राजनीति

मध्य प्रदेश में शिव का राज खत्म हो गया है, अब यहां मोहन राज होगा। साथ ही सत्ता के तीन केंद्र भी नजर आएंगे। इनमें मोहन यादव मुख्यमंत्री, राजेंद्र शुक्ला और जगदीश देवड़ा उपमुख्यमंत्री होंगे। आज भाजपा ने जैसे ही इन नामों का एलान किया उसके साथ मुख्यमंत्री के रूप में शिवराज की डेढ़ दशक लंबी सियासी पारी खत्म हो गई। आइए, जानते हैं क्या हैं इसके तीन बड़े कारण?  

2018 के चुनाव में हार 
सबसे पहले हमें कुछ पीछे चलना होगा। 2018 के चुनावों के समय। बता दें कि 2018 के चुनाव का पूरा नियंत्रण मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के हाथों में था। टिकट तय होने में भी उनकी अहम भूमिका रही। हालांकि, परिणाम भाजपा के अनुरूप नहीं रहे और प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बन गई। 109 सीटों पर सिमटी भाजपा की हार का कारण कहीं न कहीं शिवराज का चेहरा माना जाने लगा था। हालांकि ज्योतिरादित्य सिंधिया की बदौलत भाजपा फिर सत्ता में लौटी और तब भी शिवराज की जगह कुछ और नाम आगे बढ़े थे। इन सबको देखते हुए इस चुनाव में भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने चुनाव के सारे सूत्र अपने हाथ में ले लिए। अमित शाह और केंद्रीय मंत्रियों को मैदान में उतारा गया। टिकट तय करते समय नई रणनीति अपनाई गई और केंद्रीय मंत्री-सांसदों को विधानसभा चुनाव लड़ाया गया। इस बार केंद्र ने शिवराज को बिलकुल पीछे रखा और मोदी के चेहरे और नाम पर चुनाव लड़ा। केंद्रीय मंत्रियों को उतारने के पीछे मंशा भी यही थी कि प्रदेश के लोगों को नया सीएम मिलने की चर्चा खड़ी हो सके।

भाजपा का आंतरिक सर्वे
गौरतलब है कि 2023 के चुनावों से पहले भाजपा ने प्रदेश में आंतरिक सर्वे कराया था, जिसमें भाजपा की स्थिति का पता लगाने की कोशिश की गई थी। सर्वे में भाजपा काफी पिछड़ी नजर आ रही थी, इसे लेकर भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने काम करना शुरू किया। बूथ स्तर की बैठकें, संघ के साथ समन्वय और महीनों पहले टिकट तय कर दिए ताकि भाजपा को विरोध को साधने का वक्त मिले। केंद्रीय नेतृत्व ने शिवराज का नाम सीएम के लिए प्रस्तावित करने से परहेज किया और सभाओं में भी सीएम शिवराज का जिक्र कम ही किया गया। आखिर में जब भाजपा के पक्ष में नतीजे आए तो भाजपा ने सीएम के नाम को लेकर मंथन शुरू कर दिया। कहीं न कहीं सर्वे को आधार मानकर शीर्ष नेतृत्व शिवराज का नाम आगे बढ़ाने से कतरा रहा है। 

लोकसभा चुनाव की रणनीति
विधानसभा चुनावों के बाद अब 2024 में लोकसभा चुनाव होने जा रहे हैं। भाजपा ने विधानसभा चुनावों के जरिए लोकसभा की तैयारियों और रणनीति को परखा है। भाजपा का शीर्ष नेतृत्व 2024 में भी प्रचंड जीत के लिए तैयारियां करने में जुट गया है। तीन राज्यों में सत्ता मिलने के बाद अपनी स्थिति इन राज्यों में लोकसभा चुनावों के लिए और मजबूत करना चाहती है। माना जा रहा है कि नई रणनीति के तहत तीनों राज्य में सीएम के लिए नए चेहरों पर भाजपा विचार कर रही है। वहीं कुछ लोगों का मानना है कि भाजपा लोकसभा चुनावों में प्रदेश में जातिगत समीकरण साधने के मूड में नजर आ रही है, इसलिए शिवराज की जगह दूसरे नाम पर विचार किया जा रहा है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *