समलैंगिक विवाह पर अपना फैसला पढ़ते हुए सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस रविंद्र भट्ट ने कहा, यह अदालत मानती है कि शादी सामाजिक घटना है. एक संस्था के रूप में विवाह राज्य से पहले है. इसका मतलब यह है कि विवाह की संरचना सरकार से पहले है. विवाह की शर्तें सरकार की शर्तों से परे हैं.
सरकार को कमिटी बना कर समलैंगिक जोड़ों को कानूनी अधिकार देने पर विचार करना चाहिए
जस्टिस संजय किशन कौल ने कहा, समलैंगिकता प्राचीन काल से मौजूद है. ऐसे जोडों को कानूनी अधिकार मिलने चाहिए. सरकार इसके लिए कमिटी बनाए. हालांकि, मैं इस विचार से सहमत नहीं हूँ कि स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत ऐसी शादियों को मान्यता नहीं मिल सकती.
समलैंगिक तबके के साथ हुए ऐतिहासिक भेदभाव को दूर किया जाना चाहिए. इनकी शादी को मान्यता देना भी उसमें से एक कदम हो सकता है. हालांकि, मैं अपने साथी जजों के इस विचार से सहमत हूँ कि सरकार को एक कमिटी बना कर समलैंगिक जोड़ों को कानूनी अधिकार देने पर विचार करना चाहिए. समलैंगिकों के साथ भेदभाव के खिलाफ कानून बनना चाहिए.
किसी व्यक्ति को उसके जेंडर के आधार पर शादी करने से नहीं रोका जा सकता
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, सिर्फ किसी व्यक्ति को उसके जेंडर के आधार पर शादी करने से नहीं रोका जा सकता है. ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को व्यक्तिगत कानूनों सहित मौजूदा कानूनों के तहत शादी करने का अधिकार है. समलैंगिक जोड़े सहित अविवाहित जोड़े मिलकर एक बच्चे को गोद ले सकते हैं.
सीजेआई ने कहा- अदालत को यह मामला सुनने का अधिकार था
कोर्ट को यह मामला सुनने का अधिकार था. समलैंगिकता प्राचीन काल से है, आज भी समाज के हर वर्ग में है. कोर्ट उन्हें शादी की मान्यता नहीं दे सकता. लेकिन इस वर्ग को कानूनी अधिकार मिलना चाहिए. बच्चा गोद लेने से भी नहीं रोका जा सकता. यह चीफ जस्टिस और जस्टिस रविंद्र भट का आदेश था.
स्वतंत्रता का अर्थ वह है व्यक्ति वह हो जो वह होना चाहता है
सीजेआई ने कहा, सभी व्यक्तियों को अपने जीवन की नैतिक गुणवत्ता का आकलन करने का अधिकार है. स्वतंत्रता का अर्थ है वह बनने की क्षमता जो कोई व्यक्ति बनना चाहता है. भारत में क्वीर समुदाय सदियों से है और यह एक प्राकृतिक घटना है. यह न ही शहरी है और न ही एलीट यानी संभ्रांतवादी है.
समलैंगिक विवाह पर सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को ये निर्देश दिए हैं
मुख्य न्यायाधीश ने सरकार को ये निर्देश दिए हैं
1. केंद्र और राज्य सरकारें सुनिश्चित करें कि समलैंगिक जोडों के साथ भेदभाव न हो
2. लोगों को उनके प्रति जागरूक करें
3. उनकी सहायता के लिए हेल्पलाइन बनाएं
4. किसी बच्चे का सेक्स चेंज ऑपरेशन तभी हो, जब वह इसके बारे में समझने योग्य हो जाए
5. किसी को जबरन सेक्स प्रवृत्ति में बदलाव वाला हॉरमोन न दिया जाए
6. पुलिस ऐसे जोड़ों की सहायता करे
7. उन्हें उनकी मर्जी के खिलाफ परिवार के पास लौटने के लिए मजबूर न किया जाए
8. ऐसे जोड़ों के खिलाफ FIR प्राथमिक जांच के बाद ही दर्ज हो
CJI समलैंगिक जोड़ों को बच्चा गोद लेने का हक देने के पक्ष में हैं
किसी व्यक्ति को शादी करने का अधिकार उसको भारत के संविधान का अनुच्छेद 19(1)(e) देता है. सीजेआई ने कहा, यह सही है कि कुछ मामलों में साथी चुनने के अधिकार पर कानूनी रोक है. जैसे प्रतिबंधित संबंधों में शादी, लेकिन समलैंगिक तबके को भी अपने साथी के साथ रहने का अधिकार उसी तरह है, जैसे दूसरों को है.
अविवाहित जोड़े को बच्चा गोद लेने से रोकने वाले प्रावधान गलत हैं. इससे समलैंगिक जोडों के साथ भी भेदभाव होता है. इस तरह का प्रावधान अनुच्छेद 15 (समानता) का हनन है. (यानी CJI समलैंगिक जोड़ों को बच्चा गोद लेने का हक देने के पक्ष में हैं
अदालत संसद के अधिकार क्षेत्र में प्रवेश नहीं करना चाहती है
सीजेआई ने कहा हर व्यक्ति को यह अधिकार है कि वह खुद को किस (स्त्री या पुरुष) तरह से पहचानता है. संविधान के मुताबिक इस अदालत की जिम्मेदारी है कि वह नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करे. शहर में रहने वाले सभी व्यक्तियों को एलीट व्यक्तियों के खांचे में नहीं रखा जाना चाहिए.
सीजेआई ने आगे कहा, यह संसद को तय करना है कि विशेष विवाह अधिनियम की व्यवस्था में बदलाव की आवश्यकता है या नहीं अदालत संसद के अधिकार क्षेत्र में प्रवेश नहीं करना चाहती है.
सीजेआई बोले- समलैंगिक विवाह को कानूनी दर्जा दे सरकार
फैसला पढ़ते हुए सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने कहा, अपना साथी चुनने का अधिकार सबको है. इसके साथ ही अनुच्छेद 21 के तहत सम्मान के साथ जीवन एक मौलिक अधिकार है. सरकार को खुद नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करनी चाहिए. विवाह को कानूनी दर्जा जरूर है, लेकिन यह कोई मौलिक अधिकार नहीं है.
स्पेशल मैरिज एक्ट को अलग-अलग धर्म और जाति के लोगों को शादी करने देने के लिए बनाया गया. समलैंगिक विवाह के लिए इसे निरस्त कर देना गलत होगा. अगर इसी कानून (स्पेशल मैरिज एक्ट) के तहत अगर समलैंगिक विवाह को दर्जा दिया तो इसका असर दूसरे कानूनों पर भी पड़ेगा. यह सब विषय संसद के देखने के हैं.
सरकार इस तरह के संबंधों को कानूनी दर्जा दे, ताकि उन्हें भी जरूरी कानूनी अधिकार मिल सकें. सुनवाई के दौरान सरकार ने कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता में इसके लिए एक कमिटी बनाने का प्रस्ताव दिया था.
सीजेआई बोले- अपनी पसंद के व्यक्ति से शादी करना मौलिक अधिकार
समलैंगिक विवाह पर फैसला पढ़ते हुए सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा,अपनी पसंद के व्यक्ति से शादी करना किसी भी व्यक्ति मौलिक अधिकार है.
CJI बोले-सिर्फ शहरी नहीं हर वर्ग में ऐसे लोग
समलैंगिक विवाह पर फैसला पढ़ते हुए सीजेआई ने टिप्पणी करते हुए कहा, ‘CJI लेकिन हमारे सामने मौलिक अधिकार का मसला उठाया गया है. इसलिए हमारा फैसला किसी के अधिकार क्षेत्र में दखल नहीं माना जाएगा. कोर्ट कानून नहीं बनाता, लेकिन कानून की व्याख्या कर सकता है. यह एक ऐसा विषय है, जिसे सिर्फ शहरी उच्च तबके तक सीमित नहीं कहा जा सकता. हर वर्ग में ऐसे लोग हैं. हर संस्था में समय के साथ बदलाव आता है. विवाह भी ऐसी संस्था है. पिछले 200 सालों में सती प्रथा खत्म होने, विधवा विवाह से लेकर अंतर्धार्मिक, अंतरजातीय विवाह तक यह बदलाव हुए हैं.’
केंद्र ने प्रशासनिक और सामाजिक आधार पर किया मांग का विरोध
केंद्र सरकार की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इस मांग का सामाजिक और प्रशासनिक आधार पर विरोध किया. उन्होंने कहा कि भारतीय समाज और उसकी मान्यताएं समलैंगिक विवाह को सही नहीं मानते. कोर्ट को समाज के एक बड़े हिस्से की आवाज को भी सुनना चाहिए. सॉलिसिटर जनरल ने यह भी कहा कि कानून बनाना या उसमें बदलाव करना संसद के अधिकार क्षेत्र में आता है.
कोर्ट में बैठे कुछ लोगों को समाज पर स्थायी बदलाव लाने वाला इतना बड़ा फैसला नहीं लेना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट अपनी तरफ से शादी की नई संस्था को मान्यता नहीं दे सकता. सरकार ने यह भी कहा शादी को मान्यता मिलने के बाद समलैंगिक जोड़े बच्चा गोद लेने की भी मांग करेंगे. जो बच्चा ऐसे जोड़े के यहां पलेगा, उसकी मनोस्थिति पर भी विचार किया जाना चाहिए.
सॉलिसीटर जनरल ने यह भी कहा कि समलैंगिक शादी का मसला इतना सरल नहीं है. सिर्फ स्पेशल मैरिज एक्ट में हल्का बदलाव करने से बात नहीं बनेगी. समलैंगिक शादी को मान्यता देना बहुत सारी कानूनी जटिलताओं को जन्म दे देगा. इससे 160 दूसरे कानून भी प्रभावित होंगे. परिवार और पारिवारिक मुद्दों से जुड़े इन कानूनों में पति के रूप में पुरुष और पत्नी के रूप में स्त्री को जगह दी गई है.
सुप्रीम कोर्ट में कौन हैं याचिकाकर्ता?
सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल करने वालों में गे कपल सुप्रियो चक्रबर्ती और अभय डांग, पार्थ फिरोज़ मेहरोत्रा और उदय राज आनंद के अलावा कई लोग शामिल हैं. 20 से अधिक याचिकाओं में से ज़्यादातर में समलैंगिक शादी को कानूनी मान्यता देने की मांग की गई है. याचिकाओं में कहा गया है कि स्पेशल मैरिज एक्ट में अंतर धार्मिक और अंतर जातीय विवाह को संरक्षण मिला हुआ है. लेकिन समलैंगिक जोड़ों के साथ भेदभाव किया गया है.
क्या कह रहे हैं समलैंगिक विवाह में याचिकाकर्ता?
समलैंगिक विवाह को लेकर आने वाले फैसले पर इस मामले में याचिकाकर्ता और इसकी समर्थक वकील करुणा नंदी ने कहा, मैं समलैंगिक, क्वीर, लेस्बियन और LGBTQA समुदाय के हर व्यक्ति इस देश में नागरिक और धरती पर इंसान के रूप में देखती हूं. इस देश और धरती पर नागरिक और इंसान के रूप में जन्म लेने वाले लोगों के कुछ अधिकार हैं. हम उन अधिकारों के लिए ही लड़ रहे हैं. फैसला चाहे जो भी आए हम उन नागरिकों के अधिकारों के लिए लड़ते रहेंगे.
समलैंगिक विवाह (सेम सेक्स मैरिज) को कानूनी दर्जा देने की मांग वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट मंगलवार (17 अक्टूबर 2023) अपना फैसला सुना रहा है. 11 मई को कोर्ट ने 10 दिन की सुनवाई के बाद इस मामले पर अपना फैसला सुरक्षित रखा था. मामले को सुनते समय सामाजिक संगठनों और LGBTQ मामले पर अपनी विशेषज्ञता रखने वालों की याचिका पर केंद्र सरकार समेत देश की सभी राज्य सरकारों को एक पक्ष बनाया गया था.
उच्चतम न्यायालय समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने का अनुरोध करने वाली याचिकाओं पर मंगलवार को अपना फैसला सुनाएगा. प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 10 दिनों की सुनवाई के बाद 11 मई को याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट, न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा शामिल हैं. सूत्रों ने कहा कि फैसला मंगलवार को सुनाया जाएगा और इसके मुताबिक जानकारी शीर्ष अदालत की वेबसाइट पर अपडेट की जाएगी.
सुनवाई के दौरान केंद्र ने शीर्ष अदालत से कहा था कि समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने का आग्रह करने वाली याचिकाओं पर उसके द्वारा की गई कोई भी संवैधानिक घोषणा ‘कार्रवाई का सही तरीका’ नहीं हो सकती, क्योंकि अदालत इसके परिणामों का अनुमान लगाने, परिकल्पना करने, समझने और उनसे निपटने में सक्षम नहीं होगी. केंद्र ने अदालत को यह भी बताया था कि उसे समलैंगिक विवाह के मुद्दे पर सात राज्यों से प्रतिक्रियाएं मिली हैं और राजस्थान, आंध्र प्रदेश तथा असम की सरकारों ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने के याचिकाकर्ताओं के आग्रह का विरोध किया है.
सुप्रीम कोर्ट की वकील करुणा नंदी ने कहा, ‘मैं क्वीर, समलैंगिक, ट्रांसजेंडर, इंटरसेक्स लोगों को इस देश के नागरिकों के रूप में और इस धरती पर इंसान के तौर पर देखती हूं. हर व्यक्ति इस ग्रह पर कई अधिकारों के साथ आते हैं. हम देखेंगे कि क्या अदालत हमें उस व्यक्ति से शादी करने का अधिकार देती है या नहीं जिस व्यक्ति से हम प्यार करते हैं. हमने बहुत मेहनत की है. काफी समय से संघर्ष चल रहा है और कल चाहे कुछ भी हो हमारा संघर्ष जारी रहेगा.’