ओबीसी-दलितों तक पहुंच बढ़ाई, विपक्षी चाल को फेल करने की तैयारी

पिछले कुछ सालों में विपक्षी दलों ने खासतौर पर जेडीयू, आरजेडी, सपा जैसे दलों ने जातीय जनगणना को लेकर भाजपा सरकार को खूब घेरा है। भाजपा सरकार को दलित और ओबीसी विरोध बताने की कोशिश की है।
अब भाजपा ने भी पलटवार करना शुरू कर दिया है। उत्तर भारत में खासतौर पर विपक्ष की चाल को फेल करने के लिए भाजपा ने बड़ी रणनीति बनाई है। इसी के चलते भाजपा ने यूपी में पिछड़े वर्ग से आने वाले ओम प्रकाश राजभर और बिहार में महादलित समुदाय से आने वाले जीतनराम मांझी को अपने पाले में कर लिया है। आने वाले दिनों में भाजपा जातीय समीकरण साधने के लिए ऐसे ही कई छोटे दलों को अपने साथ ला सकती है। इसे कांग्रेस व अन्य विपक्षी दलों द्वारा ओबीसी आरक्षण बढ़ाने और जाति जनगणना की मांग के जवाब में भाजपा की चाल बताई जा रही है।

यूपी-बिहार से कई पिछड़े और दलित नेताओं ने एनडीए का दामन थामा
केंद्र की भाजपा सरकार अब तक अन्य पिछड़ा वर्ग की जनगणना की मांग पर चुप है। 2014 और 2019 में पिछड़ा वर्ग ने खुलकर भाजपा का साथ दिया था। ऐसे में इस बार भी भाजपा इन वोटर्स को नाराज नहीं करना चाहती है। यही कारण है कि इन अलग-अलग जातियों का प्रतिनिधित्व करने वाले कई छोटे दलों को भाजपा ने खुद के साथ जोड़ना शुरू कर दिया है। यूपी में जहां ओम प्रकाश राजभर, अनुप्रिया पटेल, संजय निषाद जैसे पिछड़े वर्ग से आने वाले नेता भाजपा के साथ खड़े हैं। वहीं, बिहार में जीतन राम मांझी, चिराग पासवान, उपेंद्र कुशवाहा जैसे नेताओं ने भाजपा को समर्थन दिया है।

सपा-बसपा के कई नेताओं को भी तोड़ने की कोशिश
2014 में भाजपा ने यूपी के लगभग हर हिस्से में अपना परचम लहराया। 2019 में भी कुछ यही नतीजे देखने को मिले थे। हालांकि, सपा और सुभासपा गठबंधन ने 2022 विधानसभा चुनाव के दौरान जरूर पूर्वांचल की कई सीटों पर भाजपा को झटका दे दिया। ऐसे में अब फिर से पूर्वांचल में अपना दबदबा कायम करने के लिए भाजपा ने एक तरफ ओम प्रकाश राजभर की पार्टी के साथ गठबंधन किया है तो दूसरी ओर भाजपा छोड़कर सपा में गए पिछड़े वर्ग के नेता दारा सिंह चौहान को फिर से पार्टी में शामिल करा लिया। ये सपा के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है।

पश्चिम में कैसे बन रहे समीकरण?
पश्चिमी यूपी में एसपी-आरएलडी गठबंधन ने 2022 विधानसभा चुनाव के दौरान जाट वोटों को विभाजित करने में कुछ हद तक सफलता हासिल की थी। सूत्रों का कहना है कि अब भाजपा आरएलडी को अपने पाले में लाने की कोशिश में जुटी है। उधर, बिहार में भी भाजपा दलित और पिछड़े वर्ग से जुड़ी अलग-अलग जातियों की पार्टियों को साथ लाकर नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव के गठबंधन को फेल करने की कोशिश में है।

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