मणिपुर हिंसा को रोकने के लिए राजनीतिक समाधान जरुरी : सुरजेवाला 

नई दिल्ली । मणिपुर में जारी हिंसा को लेकर केंद्र की मोदी सरकार पर निशाना साधकर कांग्रेस महासचिव रणदीप सिंह सुरजेवाला ने कहा कि हिंसा प्रभावित मणिपुर को कानून और व्यवस्था को संभालने के लिए केवल पुलिस-सेना की तैनाती नहीं बल्कि एक राजनीतिक समाधान की आवश्यकता है। सुरजेवाला की टिप्पणी पूर्व सेना प्रमुख वेद प्रकाश मलिक और सेना के लेफ्टिनेंट जनरल एल निशिकांत सिंह (सेवानिवृत्त) द्वारा मणिपुर की स्थिति को स्टेटलेस करार देने के बाद आई है।
कांग्रेस महासचिव ने कहा कि मणिपुर की विनाशकारी हिंसा ने खून, मौतों, विनाश, सरकार में अविश्वास का मजबूत निशान छोड़ दिया है, जिसने भारतीय सेना के एक लेफ्टिनेंट जनरल को मणिपुर को स्टेटलेस कहने और इसकी तुलना लेबनान से करने के लिए मजबूर किया है। भारतीय सेना के एक पूर्व प्रमुख ने कार्रवाई की गुहार लगाई है। क्या कोई सुन रहा है? कांग्रेस नेता सुरजेवाला ने कहा कि 3 मई को मणिपुर में जातीय हिंसा भड़कने के बाद से 115 से अधिक लोग मारे गए, 50,000 से अधिक विस्थापित हुए, 15 संप्रदायों के 121 से अधिक चर्च जलाए गए, 5,000 से अधिक हथियार लूटे गए (केवल 1,100 वापस किए गए), बड़ी संख्या में सरकारी भवनों को नष्ट करने के अलावा, विदेश राज्य मंत्री के घर तक को जला दिया गया है।
मणिपुर के बीजेपी सीएम ने हिंसा को आतंकियों की करतूत बताया है। उन्होंने कहा, लेकिन हमारे आर्मी जनरल अनिल चौहान का कहना है कि इसका आतंकवाद से कोई लेना-देना नहीं है और यह मुख्य रूप से दो जातियों के बीच टकराव है। लेकिन पीएम मोदी मणिपुर से बेखबर हैं।
प्रधानमंत्री मोदी पर निशाना साधकर सुरजेवाला ने कहा कि मोदी ने न मणिपुर का दौरा किया है (उन्हें जापान, पापुआ न्यू गिनी और ऑस्ट्रेलिया जाने का समय मिला और अब अमेरिका जा रहे हैं) और न ही एक बार बैठक बुलाकर या मणिपुर की स्थिति की समीक्षा के लिए एक बैठक की अध्यक्षता करके जायजा लिया है, न ही 3 मई से पिछले 45 दिनों में हिंसा पर निराशा व्यक्त की है या इसके बारे में बात की है। कांग्रेस नेता सुरजेवाला ने कहा कि मौत और तबाही के 27 दिन बाद ही गृहमंत्री अमित शाह को मणिपुर जाने का समय मिला। उनके समाधान का कोई नतीजा नहीं निकला और तब से उन्होंने मणिपुर को पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया जैसे कि यह उनका प्रभार नहीं है। भाजपा के मुख्यमंत्री बीरेन सिंह निश्चित रूप से स्थिति को संभालने में बुरी तरह विफल रहे हैं और राज्य में सरकार का कोई नामोनिशान नहीं रहा है।
वहीं मणिपुर पर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा इस तरह चुप्पी रखते हैं, जैसे कुछ हो ही नहीं रहा हो। कानून और व्यवस्था बनने के लिए हमारी सेना और पुलिस के कंधों पर सब कुछ डाल दिया गया है और मोदी सरकार ने पल्ला झाड़ लिया है। क्या पीएम को पहल नहीं करनी चाहिए? क्या पीएम और केंद्र सरकार को दोनों जातीय समूहों के साथ नए सिरे से बातचीत शुरू नहीं करनी चाहिए? क्या हिंसा के शिकार लोगों को पीएम और केंद्र सरकार से सहायता और पुनर्वास का आश्वासन देने वाले सीधे उपचार की आवश्यकता नहीं है? क्या पीएम को यह स्वीकार नहीं करना चाहिए कि राज्य की भाजपा सरकार संविधान के अनुसार सरकार चलाने में पूरी तरह विफल रही है? क्या पीएम और केंद्र सरकार को यह सुनिश्चित नहीं करना चाहिए कि हमारी सेना पर अपनी जिम्मेदारी डालने के बजाय उग्र हिंसा और व्यवधान समाप्त हो और सामान्य राजनीतिक प्रक्रिया बहाल हो? 

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