चैत्र नवरात्रि के पावन पर्व की शुरुआत बुधवार 22 मार्च 2023 से हो चुकी है. नवरात्रि के नौ दिनों में देवी दुर्गा के नौ अलग-अलग रूपों की पूजा की जाती है. घटस्थापना के साथ ही नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री और दूसरे दिन मां ब्रह्माचारिणी की पूजा की गई. अब नवरात्रि के तीसरे दिन शुक्रवार 24 मार्च 2023 को मां दुर्गा की तीसरी शक्ति मां चंद्रघंटा की पूजा की जाएगी.मां चंद्रघंटा का मंत्र है-
या देवी सर्वभूतेषु माँ चन्द्रघण्टा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
सिंहारूढा चन्द्रघण्टा यशस्विनीम्॥
मां चंद्रघंटा का स्वरूप
मां चंद्रघंटा का रूप अत्यंत कल्याणकारी और शांतिदायक होता है. इनके माथे पर अर्ध चंद्रमा का आकार चिन्हित होता है, जिस कारण इन्हें चंद्रघंटा कहा जाता है. मां चंद्रघंटा के शरीर का रंग स्वर्ण की तरह चमकीला है और इनके 10 हाथ हैं जोकि खड्ग और अन्य अस्त्र-शस्त्र से विभूषित हैं. सिंह पर सवार मां चंद्रघंटा की मुद्रा युद्ध के लिए उद्धत रहने की है. इनकी पूजा करने से न सिर्फ घर पर सुख-समृद्धि आती है बल्कि रोगों से मुक्ति भी मिलती है. मन, वचन, कर्म और विधि-विधान से मां चंद्रघंटा की पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं.
मां चद्रघंटा कथा (Maa Chandraghanta Katha)
पौराणिक कथाओं के अनुसार, मां दुर्गा ने मां चंद्रघंटा का रूप तब धारण किया था जब दैत्यों का आतंक स्वर्ग पर बढ़ने लगा था. महिषासुर का आंतक और भयंकर युद्ध देवताओं से चल रहा था. क्योंकि महिषासुर देवराज इंद्र का सिंहासन प्राप्त करना चाहता था और स्वर्ग लोक पर अपना आधिपत्य जमाना चाहता है. जब देवताओं को इसका पता चला तो सभी परेशान हो गए और भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश के पास पहुंचे.
त्रिदेवों ने देवताओं की बात सुनी और क्रोध प्रकट किया. कहा जाता है इसी क्रोध से त्रिदेवों के मुख से एक ऊर्जा निकली और उसी ऊर्जा से एक देवी अवतरित हुईं, जिनका नाम मां चंद्रघंटा है. उस देवी को भगवान शंकर ने अपना त्रिशूल, विष्णुजी ने अपना चक्र, इंद्र ने अपना घंटा, सूर्य ने अपना तेज और तलवार और सिंह प्रदान किया. इसके बाद मां चंद्रघंटा ने महिषासुर का वध कर देवताओं और स्वर्ग लोक की रक्षा की.
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