सुप्रीम कोर्ट ने सवर्णों को आर्थिक आधार पर 10% आरक्षण देने के सरकार के फैसले पर रोक लगाने से फिलहाल इनकार कर दिया है। अदालत ने इस मामले में शुक्रवार को कहा कि हम इस पर विचार करेंगे। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस संजीव खन्ना की बेंच ने इस मामले में सरकार से जवाब मांगा है।
सरकार का फैसला आरक्षण की सीमा का उल्लंघन- याचिकाकर्ता
- कारोबारी तहसीन पूनावाला ने सवर्णों को 10 फीसदी आरक्षण के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। याचिका में उन्होंने कहा कि सरकार के फैसले से अधिकतम 50 फीसदी आरक्षण देने की सीमा का उल्लंघन होता है।
- सरकार शीत सत्र में सवर्णों को 10% आरक्षण देने के लिए 124वां संविधान संशोधन लाई थी। यह लोकसभा और राज्यसभा से पास हो चुका है। इसे राष्ट्रपति की ओर से भी मंजूरी मिल गई है। गुजरात, उत्तरप्रदेश, झारखंड जैसे कुछ राज्यों में यह लागू भी हो गया है।
- आरक्षण का लाभ सामान्य वर्ग के गरीबों को शिक्षा और नौकरियों में मिलेगा। हालांकि ये 10% आरक्षण एससी-एसटी और ओबीसी वर्ग के लिए पहले से लागू 49% आरक्षण से अलग है। आर्थिक आधार पर सामान्य वर्ग के तमाम-वर्ग-जाति संप्रदाय के लोगों को 10 फीसदी अतिरिक्त आरक्षण मिलेगा।
- आरक्षण की कोशिश में नरसिंहा राव सरकार रही थी फेल देश के पूर्व प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव ने भी आर्थिक आधार पर आरक्षण देने की कोशिश की थी। उन्होंने अपने कार्यकाल में मंडल आयोग की रिपोर्ट के आधार पर सवर्णों को 10 फीसदी आरक्षण का ऐलान किया था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने इसे खारिज कर दिया था।