ज्योतिरादित्य सिंधिया, दिग्विजय सिंह और कमल नाथ के लिए बढ़ी चुनौतियां

भोपाल ।  बीते चार वर्षों में बनते-बिगड़ते राजनीतिक समीकरणों के बीच अब भी मध्य प्रदेश की सियासी तस्वीर भले ही दो दलीय मुकाबले की दिख रही हो, लेकिन ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस से भाजपा में जाने से दोनों ही पार्टियों में अनुभवी और दिग्गजों के लिए चुनौतियां बढ़ी हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया के सामने चुनौती है ग्वालियर-चंबल में भाजपा को विजय दिलाकर अपनी ताक़त दिखाने की। निकाय चुनाव में ग्वालियर क्षेत्र में भाजपा को खास सफलता हाथ नहीं लगी। महापौर पद पर भी हार का सामना करना पड़ा। ऐसे में सिंधिया के सामने राजनीतिक विरासत को मजबूत करने के साथ विधानसभा चुनाव में क्षेत्र से पार्टी को ज्यादा विधायक देने की मशक्कत बढ़ गई है। सिंधिया 2019 के लोकसभा चुनाव में गुना-शिवपुरी लोकसभा सीट से अपनी हार के पीछे बड़ी वजह दिग्विजय सिंह को मानते रहे हैं। भाजपा में शामिल होने के बाद से वह लगातार दिग्विजय सिंह के गढ़ की घेराबंदी करते रहे हैं। सिंधिया के करीबी पंचायत ग्रामीण विकास मंत्री महेंद्र सिंह सिसौदिया गुना में भाजपा को मजबूत करने में लगा दिए गए तो राजगढ़ का जिम्मा उच्च शिक्षा मंत्री डा. मोहन यादव को प्रभारी बनाकर सौंप दिया गया। विधानसभा चुनाव में ग्वालियर चंबल क्षेत्र में भाजपा का प्रदर्शन ही सिंधिया का राजनीतिक भविष्य तय करेगा।

उधर, कमल नाथ और दिग्विजय सिंह जैसे दिग्गज नेताओं के सामने अपना पारिवारिक वजूद बचाए रखने की चुनौती है। दोनों नेताओं के क्षेत्र में नगरीय निकाय चुनाव में भी भाजपा ने सकारात्मक परिणाम दिए हैं। राजगढ़, गुना और अशोकनगर का कुछ क्षेत्र दिग्विजय सिंह के प्रभाव वाला माना जाता रहा है। वह यहां से सांसद, विधायक रहे हैं, उनके भाई लक्ष्मण सिंह भी इन्हीं क्षेत्रों से सांसद रहे हैं और अब चाचौड़ा से विधायक हैं। दिग्विजय सिंह के पुत्र जयवर्धन सिंह भी इसी क्षेत्र राघौगढ़ से विधायक हैं। इसके बावजूद नगरीय निकाय चुनाव में गुना, राजगढ़ से कांग्रेस का सफाया दिग्विजय सिंह के लिए बड़ी चुनौती के रूप में देखा जा रहा है। विस चुनाव में दिग्विजय को अपने गढ़ के साथ पारिवारिक सियासी जमीन को भी बचाने की चुनौती होगी। राजनीतिक विरासत को लेकर कमल नाथ की भी चिंता बढ़ सकती है। उनके सामने प्रदेश में कांग्रेस के न केवल बेहतर प्रदर्शन, बल्कि सत्ता में वापसी के लिए जादुई आंकड़े तक पहुंचने की चुनौती है। संगठन पर कमल नाथ से मजबूत पकड़ दिग्विजय सिंह की मानी जाती रही है। दिग्गज नेताओं का मानना है कि कांग्रेस की सत्ता में वापसी की दशा में कमल नाथ के मुख्यमंत्री बनने की संभावना अधिक होगी। दिग्गजों के सामने चुनौती भरी परिस्थितियों के बीच भाजपा ने लक्ष्य तय किया है कि हारी हुई सीटों पर इस चुनाव में हर हाल में विजय पाना है। यही वजह है की कमल नाथ जैसे दिग्गज ने जाने अनजाने में यह बात कही थी कि वह विधान सभा चुनाव नहीं लड़ेंगे। इसकी वजह उन्हें भी मालूम है कि वे चुनाव मैदान में उतरे तो भाजपा उन्हें उन्हीं के क्षेत्र में बांधने की कोशिश करेगी।

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