भोपाल। कांग्रेस की कमलनाथ सरकार अपने 9 महीनों के कार्यकाल में ही प्रदेश में अलोकप्रिय हो चुकी है। उसे निकाय चुनावों में अपनी हार सुनिश्चित दिखाई दे रही है, जिसकी झलक हाल ही में संपन्न लोकसभा चुनावों में प्रदेश की जनता दिखा चुकी है। इससे भयभीत होकर ही कांग्रेस सरकार ने महापौर एवं निकायों के अध्यक्षों का चुनाव पार्षदों के माध्यम से कराने का निर्णय लिया है, ताकि खरीद-फरोख्त के जरिए अपने लोगों को इन पदों पर बिठाया जा सके। यह बात मध्यप्रदेश विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष श्री गोपाल भार्गव ने राज्य मंत्रिमंडल द्वारा महापौर एवं निकाय अध्यक्षों की निर्वाचन प्रक्रिया में बदलाव के प्रस्ताव को मंजूरी दिए जाने पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कही।
श्री गोपाल भार्गव ने कहा कि कांग्रेस ने धोखाधड़ी, झूठे वादों और प्रदेश की जनता को भ्रमित करके प्रदेश में सरकार तो बना ली, लेकिन यह सरकार अपने किसी भी वादे को पूरा नहीं कर पाई। कई तरह के अंतरविरोधों से घिरी यह सरकार अब तक की सबसे असफल राज्य सरकार रही है। इस सरकार ने भाजपा शासन के समय से चल रही जनहित की योजनाओं को तो बंद कर दिया, लेकिन न तो प्रदेश के विकास का रोडमैप बनाया, न उसे लागू कर पाई। सत्ता में आते ही कांग्रेस के नेताओं, मंत्रियों ने प्रदेश में तबादला उद्योग शुरू कर दिया, जो अभी तक चल रहा है। इसके चलते प्रदेश का प्रशासन ठप और कानून व्यवस्था ध्वस्त हो गई। चाहे जब गुल हो जाने वाली बिजली और मेंटेनेंस के अभाव में गड्ढों से भरी सड़कें बंटाढार युग की यादें ताजा कराने लगी हैं। इस अराजकता से नाराज प्रदेश की जनता ने लोकसभा चुनाव में अपना मंतव्य बता दिया है, जिससे कांग्रेस सरकार भयभीत है।
श्री गोपाल भार्गव ने कहा कि इसीलिए सरकार ने महापौर एवं निकाय अध्यक्षों के चुनाव सीधे जनता से कराने की प्रक्रिया बदल दी है, ताकि पार्षदों को खरीद कर या बरगलाकर अपने आदमी को अध्यक्ष बनाया जा सके। चूंकि कांग्रेस प्रदेश में सत्ता में है, इसलिए निकाय चुनावों में पार्षदों की खरीद-फरोख्त, भ्रष्टाचार और प्रशासन के दुरुपयोग की पूरी-पूरी आशंका है। श्री भार्गव ने कहा कि लोकतंत्र की सार्थकता सत्ता के अधिक से अधिक विकेंद्रीकरण में है, लेकिन कांग्रेस की सरकार पार्षदों के माध्यम से चुनाव कराकर लोकतंत्र का गला घोंट रही है।
अपनी ही सरकार के निर्णय को बदला
श्री गोपाल भार्गव ने कहा कि महापौर एवं निकाय अध्यक्षों का चुनाव सीधे जनता से कराने का प्रावधान कांग्रेस की दिग्विजय सिंह सरकार ने ही लिया था। अब कांग्रेस की ही कमलनाथ सरकार इस प्रावधान को बदलकर पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह का अपमान कर रही है। श्री भार्गव ने कहा कि पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के बेटे जयवर्धन सिंह नगरीय प्रशासन विभाग के मंत्री हैं, लेकिन वे कमलनाथ सरकार के इस निर्णय का न तो औचित्य बता पा रहे हैं और ना ही इस बारे में कुछ भी कहने की स्थिति में है।