अल्पसंख्यकों की जिलावार पहचान की मांग करने वाली याचिकाओं के एक बैच पर विचार करते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को आश्चर्य जताया कि क्या ऐसा निर्धारण करना संभव है। जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस एएस ओका की पीठ का ध्यान याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के 2007 के एक आदेश की ओर आकर्षित किया। इस आदेश में उत्तर प्रदेश सरकार से अनुदान के लिए आवेदन करने वाले सभी मुस्लिम संस्थानों के साथ बिना किसी भेदभाव के गैर-अल्पसंख्यक संस्थानों के रूप में समान स्तर पर व्यवहार करने को कहा गया था।उन्होंने प्रस्तुत किया, “राज्य के 20 जिलों के लिए हाईकोर्ट ने कहा कि जनसंख्या के प्रतिशत को देखते हुए मुसलमानों को अल्पसंख्यक नहीं माना जा सकता। यह 2001 की जनगणना पर आधारित है। अब, हम 2022 में हैं। मेरी जानकारी के अनुसार अब बढ़कर 26 जिले हो गए हैं।” जस्टिस एसके कौल ने पलटवार करते हुए कहा, “आप क्या पूछ रहे हैं? क्या प्रत्येक जिलेवार अल्पसंख्यक का दर्जा निर्धारित किया जा सकता है? फिर, प्रत्येक गली-वार क्यों नहीं? यह कैसे किया जा सकता है?”
यह तर्क देते हुए कि 10 राज्यों में हिंदू अल्पसंख्यक हैं, याचिकाकर्ताओं ने अदालत से यह निर्देश देने का भी आग्रह किया है कि इस समुदाय को इन राज्यों में धार्मिक अल्पसंख्यक का दर्जा दिया जाए। अश्विनी कुमार उपाध्याय द्वारा दायर मुख्य याचिका में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम 1992 और राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान आयोग अधिनियम, 2004 की संवैधानिक वैधता को भी चुनौती दी गई है। न्यायालय ने राज्य स्तर पर अल्पसंख्यकों की पहचान के लिए एक समान दिशा-निर्देश जारी करने की प्रार्थना करने वाली याचिकाओं के समूह में सुनवाई स्थगित कर दी, क्योंकि केंद्र ने अदालत को सूचित किया था कि केवल 14 राज्यों ने परामर्श प्रक्रिया में अपने विचार साझा किए हैं, अन्य 19 राज्य से रिपोर्ट की प्रतीक्षा की जा रही है।
इससे पहले मई में शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार को अल्पसंख्यकों की पहचान के मुद्दे पर राज्यों से परामर्श करने का निर्देश दिया था। जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस अभय एस. ओका की खंडपीठ को मंगलवार को एडिशनल सॉलिसिटर-जनरल के.एम. नटराज ने सूचित किया कि विभिन्न राज्य सरकारों के साथ एक “परामर्श प्रक्रिया” चल रही है। जबकि 14 राज्य सरकारों ने पहले ही अपने जवाब प्रस्तुत कर दिए हैं, 19 राज्य सरकारों के स्टैंड का इंतजार किया जा रहा है। यह जानकारी केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय द्वारा दायर की गई स्टेटेटस रिपोर्ट में दी गई है। बेंच ने जनवरी में इस मामले को फिर से उठाने का आदेश देते हुए कहा, “विद्वान एएसजी के अनुरोध के अनुसार, इस संबंध में स्टैंड रखने के लिए छह सप्ताह का और समय दिया गया है। हम उन 19 राज्य सरकारों को, जिन्होंने जवाब नहीं दिया है, इस आदेश के संप्रेषित होने के चार सप्ताह की अवधि के भीतर केंद्र सरकार को अपने स्टैंड/स्थिति से अवगत कराने के लिए कहते हैं।”
केस टाइटल: अश्विनी कुमार उपाध्याय बनाम भारत संघ रिट याचिका (सी) नंबर 836/2020