भरुच | राजनीति में कोई किसी का सगा नहीं होता| सत्ता पाने के लिए पिता-पुत्र, भाई-भाई, माता-पुत्री या भाई-बहन रिश्तों को ताक पर रख जाते हैं| भरुच जिले की झगड़िया सीट पर वसावा परिवार में ही मुकाबला है| भरुच जिले की झगड़िया विधानसभा सीट पर वसावा परिवार से तीन नामांकन पत्र दाखिल किया गया था| जिसमें छोटू वसावा के अलावा उनके दो बेटे महेश वसावा और दिलीप वसावा शामिल हैं| आज छोटू वसावा के छोटे बेटे दिलीप वसावा ने अपना नाम वापस ले लिया है| अब छोटू वसावा और महेश वसावा यानी बाप-बेटे के बीच मुकाबला होगा| भारतीय ट्रायबल पार्टी (बीटीपी) के राष्ट्रीय संयोजक छोटू वसावा और पार्टी के अध्यक्ष उनके बेटे महेश वसावा के बीच टिकट बंटवारे को लेकर मतभेद इतने बढ़ गए हैं कि चुनाव मैदान में आमने-सामने उतर आए हैं| महेश वसावा ने छोटू वसावा का टिकट काट उनकी परंपरागत सीट से खुद चुनाव लड़ने का ना सिर्फ ऐलान किया बल्कि नामांकन पत्र भी दाखिल कर दिया| बताया जाता है कि बीटीपी के दो शीर्ष पदों पर बैठे पिता-पुत्र के बीच मतभेद की शुरुआत तब हुई जब छोटू वसावा ने जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) के साथ गठबंधन का ऐलान कर दिया| छोटू वसावा ने जेडीयू से गठबंधन का ऐलान किया तो बाद में महेश वसावा ने पत्रकार वार्ता में इसे अपने पिता की निजी राय बता दिया था| उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि बीटीपी किसी भी राजनीतिक दल से गठबंधन नहीं करेगी और चुनाव अपने दम पर लड़ेगी| दूसरी ओर छोटू वसावा ने कहा कि मैं खुद ही पार्टी हूं और मुझे पार्टी की जरूरत नहीं है| उन्होंने पूरे दमखम के साथ झगडिया सीट से नामांकन पत्र भी दाखिल कर दिया| छोटू वसावा के अलावा उनके बड़े बेटे महेश वसावा और छोटे बेटे दिलीप वसावा ने भी अपने पर्चे भर दिए| हांलाकि अब छोटू वसावा के छोटे बेटे दिलीप वसावा ने अपना नाम वापस ले लिया है| दिलीप वसावा बीटीपी और बीटीटीएस के महासिचव रह चुके हैं और डेडियापाडा की सीटिंग विधायक हैं| अपने पिता छोटू वसावा के अपमान के बाद दिलीप वसावा ने बीटीपी से इस्तीफा दे दिया था|
40 बागी विधायकों में से 5 को मिली हार, सामना के जरिए उद्धव ठाकरे ने शिंदे को राजनीति छोड़ने के वादे की दिलाई याद
शिवसेना (यूबीटी) ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे को उनके राजनीति छोड़ने के वादे की याद दिलाई, यदि 2022 में अविभाजित शिवसेना के विभाजन के दौरान उनके साथ रहने वाले…