नागपुर (महाराष्ट्र) : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने शुक्रवार को कहा कि समाज के हित में सोचने वाले सभी को यह बताना चाहिए कि ‘वर्ण’ और ‘जाति’ (जाति) व्यवस्था अतीत की बात है. ‘वर्ण’ और ‘जाति’ की अवधारणाओं को भूल जाना चाहिए… आज अगर कोई इसके बारे में पूछता है, तो समाज के हित में सोचने वाले सभी को बताना चाहिए कि ‘वर्ण’ और ‘जाति’ (जाति) व्यवस्था एक अतीत की चीज है और भुला दी जानी चाहिए. भागवत ने एक पुस्तक विमोचन समारोह को संबोधित करते हुए कहा.
उन्होंने कहा ऐसा पहले कभी नहीं हुआ. और न ही भविष्य में ऐसा होगा. यह न तो संघ का स्वभाव है और न ही हिंदुओं का. उन्होंने कहा था कि न तो धमकाया जाता है और न ही डराया जाता है. उन्होंने कहा कि नफरत फैलाने वालों, अन्याय और अत्याचार करने वालों और समाज के प्रति गुंडागर्दी और दुश्मनी रखने वालों के खिलाफ आत्मरक्षा एक कर्तव्य बन जाती है. हिंदू समाज किसी का विरोधी नहीं है. संघ भाईचारे, सौहार्द और शांति के पक्ष में खड़े होने का संकल्प लेता है.
डॉ मदन कुलकर्णी और डॉ रेणुका बोकारे द्वारा लिखित पुस्तक ‘वज्रसूची तुंक’ का हवाला देते हुए संघ प्रमुख ने कहा कि सामाजिक समानता भारतीय परंपरा का एक हिस्सा थी, लेकिन इसे भुला दिया गया और इसके हानिकारक परिणाम हुए. इस दावे का उल्लेख करते हुए कि वर्ण और जाति व्यवस्था में मूल रूप से भेदभाव नहीं था और इसके उपयोग थे, भागवत ने कहा कि अगर आज किसी ने इन संस्थानों के बारे में पूछा, तो जवाब होना चाहिए कि ‘यह अतीत है, इसे भूल जाओ.’ उन्होंने कहा कि जो कुछ भी भेदभाव का कारण बनता है उसे खत्म कर दिया जाना चाहिए.