दिल्ली : करीब 22 साल बाद कांग्रेस में फिर से अध्यक्ष पद का चुनाव होने जा रहा है. कौन-कौन उम्मीदवार मैदान में होंगे, अभी तक स्थिति साफ नहीं है. लेकिन माना जा रहा है कि शशि थरूर, अशोक गहलोत को चुनौती देंगे. उनके अलावा भी कुछ उम्मीदवारों ने घोषणा कर रखी है.
आपको बता दें कि कांग्रेस पार्टी के इतिहास में मात्र चार ही ऐसे मौके आए हैं, जब अध्यक्ष को लेकर चुनाव हुए हैं. ये चारों मौके ऐतिहासिक ही रहे हैं. 1939 में सुभाष चंद्र बोस और पट्टाभि सीतारमैया के बीच कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव हुआ था. सीतारमैया को गांधी का समर्थक उम्मीदवार माना गया. लेकिन चुनाव में जब बोस की जीत हुई. सीतारमैया की हार पर गांधी ने इस अपनी व्यक्तिगत हार बताया था. बोस ने गांधी के सम्मान में इस्तीफा दे दिया था.
इसके बाद आजादी के बाद पहली बार कांग्रेस अध्यक्ष को लेकर उस समय रस्साकशी हुई, जब कांग्रेस के अंदर, दक्षिणपंथी नेताओं ने, नेहरू के नेतृत्व को चुनौती दी थी. इनमें पुरुषोत्तम दास टंडन, केएम मुंशी और नरहर विष्णु गाडगिल प्रमुख नेता थे. टंडन ने चुनौती पेश की. उन्हें नेहरू खेमे के उम्मीदवार जेबी कृपलानी से एक हजार अधिक वोट मिले. नेहरू इससे खासे चिढ़ गए थे. उन्होंने टंडन के नेतृत्व में पार्टी कार्यकारिणी का सदस्य होने से इनकार कर दिया. नेहरू आरए किदवई को कार्यकारिणी का सदस्य बनाना चाहते थे, लेकिन टंडन ने इनकार कर दिया था. बाद में टंडन ने खुद ही इस्तीफा दे दिया और फिर नेहरू पार्टी अध्यक्ष बने.
कांग्रेस में 1997 में कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव हुआ था. उस समय तीन नेताओं के बीच मुकाबला हुआ था. ये थे सीताराम केसरी, शरद पवार और राजेश पायलट. केसरी ने पहले ही प्रदेश कांग्रेस कमेटी में अपने समर्थकों को फिट कर रखा था. उनके पक्ष में 67 नॉमिनेशन पेपर्स आए थे. पवार और पायलट के पक्ष में मात्र तीन-तीन नॉमिनेशन पेपर्स आए थे. सीडब्लूसी के सभी सदस्यों ने केसरी का समर्थन किया था. हालांकि, सीडब्लूसी के ऑस्कर फर्नांडीज, गुलाम नबी आजाद, मनमोहन सिंह और के करुणाकरण ने उनका साथ नहीं दिया था. सीताराम केसरी ने प्रदेश कांग्रेस कमेटी का दौरा भी नहीं किया. जबकि पायलट और पवार अपनी उम्मीदवारी के पक्ष में वोट हासिल करने के लिए राज्य दर राज्य गए थे. अंतिम चुनाव में केसरी को 6224 वोट, जबकि पायलट को 354 और पवार को 888 वोट हासिल हुए थे. केसरी का कार्यकाल काफी विवादास्पद रहा. बाद में उन्हें बहुत ही नाटकीय अंदाज में पद से हटा दिया गया.
1999 में शरद पवार, पीए संगमा और तारिक अनवर कांग्रेस छोड़ चुके थे. तीनों नेताओं ने सोनिया के विदेशी मूल का मुद्दा उठाया था. उसके बाद राजेश पायलट और जितेंद्र प्रसाद ने विरोध का बिगूल फूंका. हालांकि, पायलट का निधन हो गया और तब सोनिया के विरोध में सिर्फ जितेंद्र प्रसाद ही आगे आए. प्रसाद को मात्र 94 वोट हासिल हुए, जबकि सोनिया को 7542 वोट मिले थे.