हर साल भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी के दिन गणेश चतुर्थी का पर्व मनाया जाता है। इसके साथ ही मान्यता है कि गणेश चतुर्थी के दिन चंद्र के दर्शन नहीं करना चाहिए। इसी कारण इसे कलंक चतुर्थी भी कहते हैं। माना जाता है कि इस दिन चंद्र दर्शन करने से किसी कलंक का सामना करना पड़ता है। इस बार चतुर्थी तिथि दो दिन होने के कारण गणेश चतुर्थी और कलंक चतुर्थी अलग-अलग दिन मनाया जा रहा है। कलंक चतुर्थी को चौठ चंद्र पर्व के नाम से भी जानते हैं। इस बार कलंक चतुर्थी 30 अगस्त को मनाई जा रही है।
शास्त्रों के अनुसार, माना जाता है कि गणेश जी का जन्म भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को दोपहर के समय हुआ था। इसलिए गणेश चतुर्थी का पर्व उसी दिन मनाया जाता है जिस दिन दोपहर के समय चतुर्थी होती है। पंचांग के अनुसार, इस साल 30 अगस्त को चतुर्थी तिथि का आरंभ दोपहर में 3 बजकर 34 मिनट से हो रहा है जो 31 अगस्त को चतुर्थी तिथि दोपहर 3 बजकर 23 मिनट तक है । इसलिए 31 अगस्त को गणेश स्थापना करना शुभ माना जा रहा है।
वहीं कलंक चतुर्थी की बात करें, तो 31 अगस्त की रात को चतुर्थी तिथि नहीं होगी। इस कारण 30 अगस्त को चौठ चंद्र और कलंक चतुर्थी का पर्व मनाया जाएगा। इस दिन चंद्र दर्शन की मनाही होती है। चंद्रमा के दर्शन करने से किसी कलंक का सामना करना पड़ता है।
पौराणिक कथा के अनुसार, चंद्र देव को गणपति जी का फूला पेट और गजमुख देखकर हंसी आ गई थी। गणेश जी को उनका ये व्यवहार बिल्कुल अच्छा नहीं लगा। ऐसे में गणेश दिन से चंद्र देव को शाम दे दिया कि तुम्हें अपनी जिस सुंदरता में इतना गर्व है उसका धीरे-धीरे क्षय हो जाएगा और तुम्हें कोई भी नहीं देखेगा। इस शाप के कारण चंद्रमा चंद्रमा की सुंदरता धीमे-धीमे कम होती गई। इसके बाद चंद्र देव को अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने गणेश जी से क्षमा मांगी। तब गणपति ने कहा कि आप एक मास में सिर्फ एक बार अपनी पूर्ण कलाओं से युक्त हो सकते हैं। इस वजह से ही पूर्णिमा के दिन चंद्रमा अपनी समस्त कलाओं से युक्त होते हैं। इसके साथ ही जो भी व्यक्ति मेरी पूजा के दौरान तुम्हारे दर्शन करेंगे उसे झूठे कलंक का सामना करना पड़ेगा। इसी कारण माना जाता है कि गणेश चतुर्थी के दिन चंद्र के दर्शन नहीं करना चाहिए।