एनसीपी पर संकट के बादल, साथ छोड़ गए सारे संस्थापक

मुंबई । शरद पवार के अगुवाई वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) का राजनीतिक भविष्य अधर में आ गया है। पार्टी पर इन दिनों संकट के बादल मंडरा रहे हैं। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव सिर पर हैं और एनसीपी नेता एक-एक कर शरद पवार का साथ छोड़कर दूसरे दलों का दामन थाम रहे हैं। हालत ये हो गई है कि अपने जिन करीबियों को लेकर शरद पवार ने 1999 में एनसीपी की बुनियाद रखी थी उनमें से ज्यादातर नेता आज उनका साथ छोड़कर जा चुके हैं। ज्ञात हो कि करीब 20 साल पहले कांग्रेस में नेतृत्व को लेकर जो संघर्ष हुआ उसमें शरद पवार ने मेघालय के कांग्रेसी नेता पीए संगमा और बिहार के तारिक अनवर के साथ राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का गठन किया था। उनमें से पवार और संगमा के रास्ते 2004 में ही अलग हो गए थे और 2019 के लोकसभा चुनाव से ऐन वक्त पहले तारिक अनवर भी एनसीपी का साथ छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो गए। एनसीपी के गठन में इन्हीं तीनों नेता का अहम किरदार था।
संगमा और तारिक अनवर के एनसीपी का साथ छोड़ने के बाद अब महाराष्ट्र में शरद पवार के जो साथी रहे वो भी अब विधानसभा चुनाव से ऐन वक्त पहले उनका साथ लगातार छोड़ रहे हैं। एनसीपी का साथ छोड़ने वाले संस्थापक सदस्यों में गणेश नाईक, मधुकर पिचड़ और अकोला से उनके विधायक पुत्र वैभव पिचड़, विजय सिंह मोहिते पाटिल और उनके बेटे रणजीत सिंह पाटिल, पदमा सिंह पाटिल और सचिन अहीर का नाम प्रमुख हैं। एनसीपी के ये वह नाम हैं जिन्होंने शरद पवार के साथ मिलकर पार्टी की बुनियाद रखी और उसे महाराष्ट्र की सियासत में मजबूत करने में अहम भूमिका अदा की थी। एनसीपी का साथ छोड़ने वाले नेता नेता ज्यादातर भाजपा का दामन थाम रहे हैं। इसके बाद दूसरे नंबर की पसंद शिवसेना हो रही है। ऐसे में एनसीपी के सामने अपने अस्तित्व को बचाए रखने की बड़ी चुनौती है।
ज्ञात हो कि कांग्रेस में पवार समर्थक जो लोग थे उन्हीं के दम पर यह एनसीपी अस्तित्व में आई थी। इसलिए उनके पास स्थानीय राजनीतिक संस्थान, साधन और कार्यकर्ता थे। इसलिए नई पार्टी के रूप में जो चुनौतियां एनसीपी के सामने आती, उसका उसे सामना नहीं करना पड़ा। शरद पवार अपने राजनीतिक कौशल के जरिए जल्द ही एनसीपी को सत्ताधारी पार्टी के रूप में स्थापित कर दिया था। इस वजह से एनसीपी ने कांग्रेस के साथ मिलकर 15 सालों तक सत्ता में बने रहे। शरद पवार के नेतृत्व के कारण शुरुआती दौर से ही पार्टी कार्यकर्ता बेहद सक्रिय रहे और युवा कार्यकर्ता भी बड़े पैमाने पर एनसीपी के साथ बने रहे। पवार के ही कारण एनसीपी के राष्ट्र की राजनीति में महत्वपूर्ण जगह बनाई। इसलिए पार्टी के राज्य के समर्थक हमेशा उत्साहित रहते हैं और उन्हें आशा रहती है कि उनकी पार्टी का कद बढ़ेगा। संसाधनों की कमी का सामना एनसीपी को 2014 में सत्ता से अलग होने के बाद करना पड़ा। इसी का नतीजा था कि एनसीपी में दूसरे दलों से आए नेताओं के साथ-साथ पार्टी के बुनियाद रखने वाले नेता भी अपना सियासी भविष्य बचाने के लिए सुरक्षित जगह तलाशने में जुट गए हैं। इसका नतीजा है कि अकेला शरद पवार परिवार ही एनसीपी में बचा रह गया है।

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