अटल सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे यशवंत सिन्हा को विपक्ष का राष्ट्रपति उम्मीदवार बनाया गया है। मंगलवार को शरद पवार के घर पर हुई विपक्षी दलों की बैठक में यह फैसला लिया गया। अब उनका मुकाबला NDA उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू से होगा।
1958 में पटना यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर बनने से लेकर 2022 में राष्ट्रपति उम्मीदवार बनाए जाने तक के पॉलिटिकल सफर में कई बार यशवंत सिन्हा बगावती तेवर देखने को मिले हैं।
ऐसे में चलिए आज हम यशवंत सिन्हा के राजनीतिक सफर से जुड़े दिलचस्प और बगावती किस्सों को जानते हैं…
1964 में बिहार के CM महामाया भीड़ के सामने करने लगे थे यशवंत से सवाल-जवाब
1960 के IAS परीक्षा में यशवंत सिन्हा को देशभर में 12वीं रैंक मिली थी। शुरुआती ट्रेनिंग के बाद उन्हें बिहार के संथाल परगना में DC बनाया गया था। DC यानी डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर। साल था 1964। बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री महामाया प्रसाद सिन्हा संथाल परगना के दौरे पर गए थे।
इसी दौरान कुछ ऐसा हुआ कि यशवंत सिन्हा चर्चा में आ गए। दरअसल, CM से लोगों ने अधिकारियों के खिलाफ शिकायत की। इसके बाद भीड़ के सामने ही मुख्यमंत्री यशवंत सिन्हा से सवाल करने लगे। बार-बार किए जा रहे सवाल से यशवंत सिन्हा परेशान हो गए।
CM के सामने सिंचाई मंत्री ने दिखाए तेवर तो मुख्यमंत्री से भिड़ गए यशवंत
इस दौरान यशवंत सिन्हा अपने जवाब से CM को खुश करने की कोशिश कर रहे थे। तभी CM के साथ आए सिंचाई मंत्री उन पर कुछ ज्यादा ही बिगड़ गए। इसके बाद सिन्हा ने मुख्यमंत्री महामाया प्रसाद की तरफ देख कर कहा कि सर मैं इस तरह के व्यवहार का आदी नहीं हूं।
यशवंत के इस जवाब को सुनकर मुख्यमंत्री उन्हें एक कमरे में ले गए। वहां के SP और DIG के सामने महामाया प्रसाद ने उनसे कहा कि आपको मंत्री के साथ इस तरह का बर्ताव नहीं करना चाहिए था। इसके बाद यशवंत ने कहा कि आपके मंत्री को भी मेरे साथ इस तरह व्यवहार नहीं करना चाहिए था।
सिन्हा का ये जवाब सुनकर महामाया प्रसाद गुस्से में बोल पड़े कि मुख्यमंत्री से आपकी इस तरह बात करने की हिम्मत कैसे हो गई? साथ ही उन्होंने IAS सिन्हा से कहा कि आप दूसरी नौकरी खोज लीजिए।
इतना सुनते ही यशवंत सिन्हा ने महामाया प्रसाद से कहा, ‘सर, आप एक IAS नहीं बन सकते हैं, लेकिन मैं एक दिन मुख्यमंत्री बन सकता हूं।’
कैबिनेट की जगह राज्यमंत्री बनाया तो 10 सेकेंड में छोड़ा पद
जेपी यानी जयप्रकाश नारायण से बेहद प्रभावित होकर यशवंत सिन्हा ने रिटायरमेंट से 12 साल पहले ही IAS की नौकरी छोड़ दी। कुछ महीनों बाद ही वो जनता दल में शामिल हो गए और चंद्रशेखर के करीबी हो गए। बोफोर्स घोटाले पर घमासान के बीच 1989 में वीपी सिंह देश के प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने यशवंत को राज्यमंत्री बनाने का ऑफर दिया।
तब के कैबिनेट सचिव टीएन सेशन ने यशवंत को मंत्री बनाए जाने की चिट्ठी भी सौंप दी, लेकिन 10 सेकेंड के अंदर उन्होंने इस पद को ठुकरा दिया था। दरअसल, सिन्हा कैबिनेट मंत्री बनना चाहते थे। सिन्हा का तब कहना था कि उनकी सीनियरिटी और चुनाव प्रचार में काम को देखते हुए वीपी सिंह ने राज्यमंत्री का पद देकर उनके साथ अन्याय किया है।
वीपी सिंह की सरकार 343 दिन चली। इसके बाद नवंबर 1990 में जब चंद्रशेखर PM बने तो उन्होंने सिन्हा को वित्त मंत्री बना दिया। यह सरकार भी महज 223 दिन चली थी। सरकार गिरने के कुछ दिनों बाद यशवंत सिन्हा BJP में शामिल हो गए। अटल सरकार में वे वित्त मंत्री और विदेश मंत्री भी बने।
अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में यशंवत सिन्हा विदेश और वित्त मंत्री रह चुके हैं। 2018 में उन्होंने भाजपा से इस्तीफा दे दिया था।
मोदी सरकार के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए थे यशवंत सिन्हा
तारीख 24 अक्टूबर 2018। BJP के बड़े नेताओं में शुमार रहे अरुण शौरी और वकील प्रशांत भूषण के साथ यशवंत सिन्हा मोदी सरकार के खिलाफ केस दर्ज कराने के लिए सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए थे। तीनों ने कोर्ट में याचिका दाखिल कर मोदी सरकार के दौरान राफेल सौदे में हुए भ्रष्टाचार का आरोप लगाया।
इसके साथ ही राफेल मामले में मोदी सरकार के खिलाफ CBI में केस दर्ज कराने की मांग की थी। यशवंत सिन्हा के इस बागी तेवर को देखकर हर कोई हैरान रह गया था।