मालवा के मंच पर लोक संस्कृति का उत्सव:महाराष्ट्र के धनगर गाजा, सैला कर्मा और राजकोट के तलवार रास से हुई सांस्कृतिक उत्सव की शुरुआत

इंदौर:एक बार फिर देश के अलग अलग राज्यों से जनजातीय कलाकार मालवा के केंद्र इंदौर में जमा हुए। एक बार फिर लोक की कोई कहानी कहता भव्य मंच सजाया गया। एक बार फिर मुस्करा उठी वह लोक परम्पराएं जिन्हें हम बिसरा चुके हैं। रील्स की दुनिया में खोई युवा पीढ़ी में से ज्यादातर तो इन लोक परम्पराओं के बारे में जानते तक नहीं। ऐसे में मालवा उत्सव इन संस्कृतियों का महज प्रदर्शन नहीं बल्कि एक जीवंत दस्तावेज़ भी है जो नई पौध को हमारी जड़ों की ओर ले जाता है। मंगलवार शाम लोक संस्कृति मंच के प्रमुख व सांसद शंकर लालवानी की उपस्थिति में लालबाग परिसर में मालवा उत्सव की भव्य शुरुआत हुई। इंदौर गौरव दिवस के तहत मनाए जा रहे इस उत्सव में सबसे पहले मंच पर आए छत्तीसगढ़ के कलाकार। वहां की कर्मा जनजाति ने सैला कर्मा नृत्य प्रस्तुत किया। यह एमपी-छत्तीसगढ़ के आदिवासियों का नृत्य है जो कर्मा राजा रानी को खुश करने के लिए किया जाता था। मंदर और टिमकी की थाप पर महिला-पुरुष कलाकार सर्कल और सेमीसर्कल में बंटकर यह नृत्य करते हैं।

धनगर गाजा : महाराष्ट्र के सांगली से आए कलाकार वहां का यह जनजातीय नृत्य लेकर आए। धोती, अंगरखा, फेटा पहने हुए, हाथों में रुमाल लेकर उन्होंने यह नृत्य किया। इसमें ढोल बजाया जाता है और सभी उसके आसपास गोल घूमते हुए नृत्य करते हैं।

डांगी नृत्य : गुजरात के डांग जिले से आए समूह ने होली के समय किया जाने वाला प्रसिद्ध नृत्य प्रस्तुत किया। लड़कों ने धोती कुर्ता पहना था और महिलाएं खांडवा दुपट्टे में सजकर आईं। उन्होंने लट्ठ के साथ रास प्रस्तुत किया।

तलवार रास : 2500 महिलाओं ने हाल ही में बनाया गिनीज़ रिकॉर्ड गुजरात राजकोट से आई 15 लड़कियों की टीम ने लाल-हरे रंग के परिधान में नारी शक्ति का प्रदर्शन करते हुए तलवार रास प्रस्तुत किया। वास्तविक तलवारों का उपयोग करते हुए पुराने जमाने में राजपूतानियां स्वयं व किले की रक्षा युद्ध के समय कैसे करती थी इसका बेहतरीन प्रदर्शन किया। राजकोट के इस समूह ने पिछले दिनों 2500 महिलाओं के साथ तलवार रास करके गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में अपना नाम दर्ज कराया है।

झुमकू : यह गुजरात का लोकनृत्य है और इसमें गांव की सीधी सादी दिनचर्या दिखाई जाती है। इसमें ग्रामीण परिवेश में महिलाएं सामेला सूपड़े से गेहूं साफ करती, मिर्च कूटती भी नजर आईं। इन चीजों को नृत्य में इसलिए दिखाया जाता है क्योंकि महिलाओं के लिए यह काम एक दूसरे से मिलने-बतियाने के बहाने भी होते थे। मोहल्ले की सब महिलाएं एक दूसरे के घर यह काम कराने जाती थीं। वहां बतिया लेती थीं।

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