नई दिल्ली: उच्च न्यायालय ने 2021 में अपने आदेश में कहा था कि आवारा कुत्तों को भी भोजन का अधिकार है और नागरिकों को उन्हें (कुत्तों को) खिलाने का अधिकार. शीर्ष अदालत ने एक गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) ह्यूमैन फाउंडेशन फॉर पीपल एंड एनिमल्स की याचिका पर चार मार्च को इस आदेश पर यह कहते हुए रोक लगा दी थी कि इससे आवारा कुत्तों से खतरों की आशंका बढ़ेगी.
न्यायमूर्ति उदय उमेश ललित, न्यायमूर्ति एस. रवीन्द्र भट तथा न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ ने इन दलीलों का संज्ञान लिया कि उच्च न्यायालय का आदेश एक दीवानी मामले में सुनाया गया था, जिसमें दो निजी पक्षकार आमने-सामने थे और एनजीओ को इस मुकदमे में हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं है. पीठ ने इस तथ्य का भी संज्ञान लिया कि असली मुकदमे के दोनों पक्षों के बीच विवाद का निस्तारण हो चुका था. इसलिए तीसरे पक्ष के इशारे पर मुकदमे को जारी रखने की जरूरत नहीं थी.
अपने आदेश में शीर्ष अदालत ने कहा कि यह विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) दिल्ली उच्च न्यायालय के 24 जून 2021 के फैसले से उत्पन्न होती है. अपने फैसले के तहत न्यायाधीश कई निष्कर्ष पर पहुंचे हैं. न्यायालय ने कहा कि बाद में इस फैसले पर रोक लगा दी गयी थी. पीठ ने अपने आदेश में कहा कि यह याचिका (उच्च न्यायालय के) फैसले के खिलाफ अपील की अनुमति के लिए दायर की गई थी, क्योंकि एनजीओ इस वाद में पक्षकार नहीं था. ऐसा समझा जाता है कि मूल वाद के दोनों पक्षों ने मामला सुलझा लिया था. चूंकि मामला दोनों निजी पक्षों के बीच विवाद को लेकर था इसलिए एसएलपी दायर करने की अनुमति मांगने का याचिकाकर्ता का कोई अधिकार नहीं है.
हम इसलिए याचिका का निस्तारण करते हैं और अंतरिम आदेश वापस लेते हैं. इससे पहले शीर्ष अदालत ने एनजीओ की अपील पर नोटिस जारी करते हुए भारतीय पशु कल्याण बोर्ड, दिल्ली सरकार और अन्य से भी जवाब मांगा था. दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा था कि आवारा कुत्तों को भोजन का अधिकार है और नागरिकों को सामुदायिक कुत्तों को खिलाने का अधिकार है. अदालत ने तब कहा था कि इस अधिकार का इस्तेमाल करते समय यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि इससे दूसरों के अधिकार का हनन न हो और उत्पीड़न न हो. साथ ही किसी के लिए यह परेशानी का सबब न बने.