माल्या की याचिका को खारिज करने का निर्णय गोथम डाइजेस्ट ने लिया, जो स्विस फेडरल न्यायालय के लिए सभी म्यूचुअल लीगल असिस्टेंस ट्रीटी (एमएलएटी) से जुड़े मामलों की निगरानी करते हैं. डाइजेस्ट ने बोला कि माल्या के स्विस एडवोकेट की यह दलील की उसके विरूद्ध मामले की जांच कर रहे ऑफिसर (विशेष निदेशक राकेश अस्थाना) पर खुद करप्शनके आरोप लगे हैं, इसे न्यायालय स्वीकार नहीं करती है.
26 नवंबर व 29 नवंबर को लॉजेन में स्विस फेडरल ट्रिब्यूनल द्वारा तीन फैसला सुनाए गए थे. उनके निर्णय दिखाते हैं कि माल्या के वकीलों ने CBI तक उसके बैंक खातों की डिटेल्स पहुंचने से रोकने के लिए आखिरी दांव चला था. उन्होंने मानवाधिकार पर यूरोपीय सम्मेलन (ईसीएचआर) की धारा 6 का हवाला दिया जिसके अनुसार हर आदमी को निष्पक्ष ट्रायल का अधिकार है व इसे CBI प्रमुख पर चल रहे करप्शन के आरोपों से जोड़ दिया.
स्विस फेडरल ट्रिब्यूनल में दायर अपीलें 14 अगस्त, 2018 के तीन आदेशों का पालन करती हैं. जिसनें कांटन ऑफ जेनेवा के सरकारी अभियोजक से बोला गया है कि वह माल्या के बैंक खातों का विवरण हिंदुस्तान को दे दे. इसके लिए CBI ने एमएलएटी के तहत अनुरोध भी किया है. 10 दिसंबर, 2018 को ब्रिटेन की एक न्यायालय ने माल्या के हिंदुस्तान प्रत्यर्पण को मंजूरी दे दी थी.
अपने निर्णय में स्विस फेडरल ट्रिब्यूनल जज ने बोला कि इस मामले में ईसीएचआर के उल्लंघन की याचिका लागू नहीं होती है. इससे पहले माल्या ने बोला था कि हिंदुस्तान की गवर्नमेंट ने उसके विरूद्ध राजनीतिक प्रतिशोध छेड़ा हुआ है. इसी वजह से उसके विरूद्ध आपराधिक कार्रवाई व जांच प्रारम्भ की हुई है. हालांकि जज ने ब्रिटेन में रहने के पीछे दिए इस आधार को खारिज कर दिया था.
अपने 55 पन्नों के आदेश में विशेष जज एमएस आजमी ने माल्या को भगोड़ा आर्थिक क्रिमिनल घोषित कर दिया था. उन्होंने बोला था, ‘इस विषय में तर्क देकर खुद को कानून का पालन करने वाले नागरिक के तौर पर पेश करना कपोल कल्पना मात्र है. अभियोजन पक्ष ने उनके विरूद्ध जो बयान दिया है वह किसी राजनीतिक कारणों है, इससे यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता कि उसे भगोड़ा आर्थिक क्रिमिनल घोषित नहीं किया जाना चाहिए.’