नई दिल्ली : उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए अभी तक चार चरणों का मतदान हो चुका है. मीडिया रिपोर्ट में यह बात सामने आई है कि यूपी में मुख्य मुकाबला भारतीय जनता पार्टी और समाजवादी पार्टी के बीच है. यह भी चर्चा है कि मुसलमान वोटर भी गोलबंद होकर सपा के लिए वोट कर रहे हैं, मगर क्या सच में बहुजन समाज पार्टी विधानसभा चुनाव 2022 में पिछड़ रही है.
इस चुनाव में मायावती ने 2017 वाला फार्मूला अपनाया है और बीएसपी ने करीब 90 मुसलमानों को टिकट दिया है. पहले चरण में 58 विधानसभा सीटों के लिए 10 फरवरी को वोट डाले गए थे. इनमें सपा-आरएलडी गठबंधन ने 13 सीटों पर मुस्लिम कैंडिडेट उतारे थे जबकि बसपा ने 17 मुस्लिमों पर भरोसा जताया है.
दूसरे चरण में इन 55 सीटों पर वोटिंग हुई थी, उसमें बीएसपी ने 23 मुस्लिम कैंडिडेट उतारे थे जबकि समाजवादी पार्टी गठबंधन ने 18 सीटों पर अल्पसंख्यकों को टिकट दिया था. चौथे चरण में मायावती ने 60 सीटों में से16 सीटों पर मुस्लिमों को उतारा है. तीसरे चरण की 59 सीटों में से बसपा ने 5 मुस्लिमों को टिकट दिया है. इसके अलावा बीएसपी ने 90 से अधिक दलित उम्मीदवार भी मैदान में उतारे हैं. टिकट बंटवारे में सोशल इंजीनियरिंग करते हुए सवर्ण कैंडिडेट भी मैदान में उतारे गए हैं. इस तरह बीएसपी ने मुकाबले को त्रिकोणीय बना दिया है.
पहले और दूसरे चरण की वोटिंग के बाद कई एक्सपर्ट ने ग्राउंड रिपोर्ट के आधार पर मुकाबले को सपा गठबंधन बनाम भाजपा करार दिया. इससे अलग यह भी रिपोर्ट आई कि बीएसपी पश्चिमी यूपी के 113 सीटों में से 25 पर भाजपा से मुकाबले में है. इसके अलावा 37 सीटों पर उसका सपा से मुकाबला है. कुल मिलाकर वह 85 सीटों पर समाजवादी पार्टी को नुकसान पहुंचाने की स्थिति में है. तीसरे चरण की वोटिंग के दौरान बुंदेलखंड इलाके में बीएसपी के कोर वोटर एक्टिव नजर आए.
उत्तर प्रदेश में 84 विधानसभा सीटें अनुसूचित जाति के लिए रिजर्व हैं. इन सीटों पर 2017 में बीजेपी ने इनमें से 70 सीटें जीत ली थी. जबकि 2012 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने इन 84 सीटों में से 58 सीटों पर जीत हासिल की थी. वहीं 2007 के विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी ने 62 सीटों पर जीत मिली थी. 2017 के चुनाव में यह माना गया कि बीजेपी ने उसके गैर जाटव दलित वोटरों को अपने पाले में खींचा है. अगर जाटव के अलावा अन्य दलित जातियां बीएसपी को सपोर्ट करती है तो नतीजे चौंकाने वाले हो सकते हैं.
यूपी में अभी तक चार दौर की वोटिंग हुई है. फर्स्ट फेज के मतदान के दौरान 62.08 फीसदी वोटरों ने वोट डाले थे. दूसरे चरण में 64.42 पर्सेंट वोटरों ने मतदान किया था. उत्तरप्रदेश में तीसरे चरण के तहत रूहेलखंड और बुंदेलखंड के 6 जिलों की 59 सीटों के लिए 20 फरवरी को वोट डाले गए थे. तीसरे फेज में 61.02 प्रतिशत वोटरों ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया था.
एक्सपर्ट के अनुसार अभी तक आए वोट प्रतिशत से ऐसा लगता है कि चुनाव में एकतरफा लहर नहीं है. सभी दलों के कोर वोटरों ने अपनी-अपनी पार्टियों के लिए वोट किए हैं. बीएसपी के पास दलित जाटव और मुसलमानों का कोर वोट बैंक है, जिसका समर्थन उसे मिला है. यह मुमकिन है कि मुसलमानों ने 2007 और 2012 के चुनाव के तरह एकतरफा वोटिंग की हो मगर उसमें बीएसपी का कुछ हिस्सा जरूर है.
2014 के लोकसभा चुनाव के बाद से गैर बीजेपी दलों को लोकसभा और विधानसभा चुनाव में झटका लगा था. मगर लहर वाली स्थिति में भी बीएसपी के वोट प्रतिशत में बड़ी गिरावट नहीं आई. 2017 के विधानसभा चुनाव में बीएसपी को तक़रीबन 22 फ़ीसदी वोट मिले थे, जबकि उसने किसी दल के साथ गठबंधन नहीं किया था. 2019 के लोकसभा चुनाव में मायावती की बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) को 19.60 फीसदी वोट मिले थे जबकि अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी (एसपी) को 18.05 पर्सेंट ही वोट मिले. अगर इस विधानसभा चुनाव में बीएसपी अपने कोर वोट बैंक को सेंधमारी से बचा लेती है और 4-5 फीसद वोट बढ़ाने में सफल होती है तो उसकी सीटें भी बढ़ेंगी.