एमपी में आदिवासियों को लुभाने के लिए लगाया योजनाओं का अंबार, अब पैसों के लिए केंद्र का मुंह ताक रही सरकार

भोपाल। आगामी चुनाव को ध्यान में रखते हुए बीजेपी आदिवासी क्षेत्रों में वोट बैंक बढ़ाने की कोशिश में जुटी है. इसके लिए आदिवासी क्षेत्रों में सरकारी योजनाओं का लाभ ज्यादा से ज्यादा पहुंचाने की कोशिश की जा रही है, लेकिन बजट की कमी इसमें आड़े आ रही है. केन्द्र और राज्य अंश में पिछले एक साल में करीबन 4500 करोड़ रुपए की कमी आई है. इसके वजह से आदिवासी क्षेत्रों में संचालित योजनाएं प्रभावित हुई हैं. उधर इसको लेकर बीजेपी का कहना है कि न तो बजट की कमी है और न ही नीति की कमी है. उधर कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि सरकार सिर्फ योजनाओं का ढिंढोरा पीट रही है. जबकि जमीन पर लोगों को इसका लाभ नहीं मिल रहा है.

कई योजनाओं में केन्द्र और राज्यांश की कमी
आदिवासी क्षेत्रों में करीब डेढ़ दर्जन विभागों के माध्यम से कई योजनाएं संचालित की जा रही हैं, लेकिन इन योजनाओं का लोगों तक लाभ पहुंचाने में बजट आड़े आ रहा है. मसलन राज्य छात्रवृत्ति मद में केन्द्र से 77 करोड़ का फंड मिला, जबकि राज्य सरकार से फंड नहीं मिला. यह पूरी राशि खर्च की जा चुकी है. प्रधानमंत्री आवास योजना में 1500 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया. इसमें से राज्य ने 502.12 करोड़ दिए, जबकि केन्द्र से 612.30 करोड़ रुपए मिले. निर्मल भारत अभियान, राज्य जल स्वच्छता मिशन के लिए केन्द्र से पर्याप्त राशि नहीं मिली. काॅलेज स्तरीय छात्रवास भवन निर्माण में 37.19 करोड़ राज्य ने दिए. हालांकि केन्द्र का अंश नहीं मिला.

इन योजनाओं का भी बुरा हाल
अजजा के विद्यार्थियों को आवास सहायता में सिर्फ राज्य से 146.93 करोड़ रुपए आवंटित हुए, केन्द्र का अंश प्राप्त नहीं हुआ. इसी तरह एनसीसी के विकास और सुदृढ़ीकरण के लिए साल 2019-20 में केन्द्र से कोई अंश नहीं मिला. वहीं आदिवासी संस्कृति के संवर्धन, अनुसंधान, प्रशिक्षण एवं विकास राज्य योजना में करीब 47 करोड़ के प्रावधान में से केन्द्र से 16.22 करोड़ की राशि मिली. इसमें से करीब 1 करोड़ रुपए खर्च किया जा सका.

आदिवासी उपयोजना में नहीं मिला पर्याप्त बजट
आदिवासी उपयोजना विशेष केन्द्रीय सहायता और संविधान के अनुच्छेद 275 (1) के तहत शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि, उद्यानिकी, पशुपालन, डेयरी, मत्स्य पालन और अन्य प्राथमिक सेक्टर तथा आय सृजित योजना के काम कराए जाने के प्रावधान हैं. इसके लिए विभिन्न योजनाओं के जरिए राशि खर्च की जाती है, लेकिन बताया जाता है कि इसके लिए केन्द्र और राज्य अंश में साल 2019-20 और 2020-21 के बीच 4589 करोड़ रुपए की कमी आई है, जिसका असर योजनाओं के क्रियान्वयन पर पड़ रहा है.

बजट पर बीजेपी अलाप रही अलग राग
केन्द्र से ज्यादा से राशि लाने के लिए मुख्यमंत्री पहले ही अपने मंत्रियों को ज्यादा से ज्यादा कामों के प्रस्ताव केन्द्र को भेजने और संबंधित विभाग के केन्द्रीय मंत्री से संपर्क में रहने के निर्देश दे चुके हैं. हालांकि बीजेपी का कहना है कि अनुसूचित जाति और जनजातियों के लिए संचालित योजनाओं के लिए न बजट की कमी है और न ही नीति में कमी है.

बीजेपी प्रदेश प्रवक्ता पंकज चतुर्वेदी का कहना है कि किसी तकनीकि विषय की वजह से इसमें देरी हुई है. जनजाति क्षेत्रों के विकास में सरकार बेहद गंभीर है. मध्यप्रदेश ऐसा राज्य है, जहां पैसा एक्ट का प्रावधान किया गया है. 89 ब्लाॅक में अनाज पहुंचा रहे हैं. इसके माध्यम से आदिवासी युवाओं को रोजगार उपलब्ध कराया जा रहा है. उधर, कांग्रेस प्रवक्ता केके मिश्रा ने आरोप लगाया है कि बीजेपी की प्रदेश सरकार सिर्फ योजनाओं के नाम पर लोगों को ठगने का काम कर रही है. योजनाएं चलाई जा रही हैं, लेकिन उसमें बजट ही नहीं है.

यह है बजट की स्थिति

  • जनजातीय कार्य विभाग के लिए साल 2021-22 के लिए बजट सिर्फ 9796 करोड़ रुपए.
  • अनुसूचित जाति कल्याण विभाग का बजट सिर्फ 1497 करोड़ रुपए.
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