लखनऊ. उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने हैं. ऐसे में सभी राजनीतिक दलों ने अभी से अपनी ताकत झोंक दी है. यूपी में होने जा रहे चुनाव में किस पार्टी की जीत होगी और किसे मात मिलेगी, इसे लेकर तरह-तरह के कयास लगाए जाने शुरू हो गए हैं. रैलियों में आने वाली भीड़ को देखकर यह चर्चा तुरंत आम हो जाती है कि किस पार्टी का जलवा कायम हो रहा है. इन दिनों सोशल मीडिया पर कुछ ऐसी भी चर्चाएं जोर शोर से चल रही हैं, जिसमें ये बताया जा रहा है कि शर्तिया तौर पर प्रदेश में किसकी सरकार बनेगी. इसके लिए बहुत मजबूत तर्क भी दिए जा रहे हैं. इसे तर्क भी कह सकते हैं और चुनावी टोटके भी.
यह टोटका उत्तर प्रदेश की कई विधानसभा सीटोंसे जुड़ा हुआ है. इन सीटों के बारे में कहा जाता है कि जिस भी पार्टी का विधायक जीतता है सूबे में उसी की सरकार बनती है. और तो और एक टोटका यह भी चल रहा है कि यूपी की एक ऐसी भी सीट है जहां दूसरे नंबर पर जिस पार्टी का विधायक जीतता है, प्रदेश में उसकी सरकार बनती है. यानी इस सीट से हार होने पर प्रदेश में सरकार बनने का टोटका जुड़ा हुआ है. बलिया की बेल्थरा रोड, मेरठ की हस्तिनापुर, कासगंज सीट, इटावा की भरथना सीट और लखनऊ के बख्शी का तालाब सीट के साथ यह टोटका जुड़ा है कि इन सीटों पर जिस पार्टी का विधायक जीता है प्रदेश में उसकी सरकार बनती है.
जानिए पीछे का रहस्य!
बता दें कि बलिया की बेल्थरा रोड सीट पर 2012 से चुनाव हो रहा है. 2012 में सपा की जबकि 2017 में भाजपा की जीत सीट से हुई थी. लखनऊ जिले की बख्शी का तालाब सीट भी 2012 में अस्तित्व में आई जहां पहला चुनाव सपा ने जीता और 2017 में भाजपा ने जीता. कासगंज सीट के लिए यह टोटका बहुत काम का नजर आता है. वैसे तो कासगंज की सीट बहुत पुरानी है. लेकिन पिछले चार चुनाव के नतीजे इस टोटके को मजबूत आवाज देते हैं. 2002 में यहां से सपा, 2007 में बसपा , 2012 में सपा और 2017 में भाजपा ने जीत दर्ज की. इन्हीं सालों में इन्हीं पार्टियों की सरकारें प्रदेश में बनी. इसी तरह मेरठ जिले की हस्तिनापुर सीट का भी इतिहास है. यह सीट भी बहुत पुरानी है लेकिन पिछले चार चुनाव के नतीजे इसके बारे में बताए जाने वाले टोटके को सही साबित करते हैं.
दोबारा मुख्यमंत्री की कुर्सी पर नहीं बैठता?
2002 में यहां से सपा, 2007 में बसपा, 2012 में सपा और फिर 2017 में भाजपा ने यह सीट जीती. इन सालों में इन्हीं पार्टियों की सरकार प्रदेश में बनी. इन सब के अतिरिक्त एक और चुनावी टोटका इन दिनों फिर से चर्चा में आ गया है. यह टोटका नोएडा जिले से जुड़ा हुआ है. नोएडा के बारे में कहा जाता है कि इस शहर का दौरा करने वाला व्यक्ति दोबारा मुख्यमंत्री की कुर्सी पर नहीं बैठता. आज से नहीं बल्कि 1985 से वीर बहादुर सिंह जब यूपी के मुख्यमंत्री थे तब से यह दाग नोएडा के माथे पर लगा हुआ है. राजनाथ सिंह और अखिलेश यादव ने तो कभी नोएडा की तरफ रुख ही नहीं किया. दोनों ने नोएडा से शुरू होने वाली योजनाओं का शिलान्यास या तो दिल्ली से किया या लखनऊ से. अगले 3 महीनों में ये पता चल जाएगा कि ये टोटके बरकरार रहते हैं या फिर कोई नया इतिहास गढ़ा जा रहा है.