नई दिल्ली:निर्वाचन आयोग ने उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, मणिपुर और गोवा में विधानसभा चुनाव के लिए तारीखों का एलान कर दिया है. इसमें पहला चरण 10 फरवरी को, दूसरा चरण 14 फरवरी को, तीसरा चरण 20 फरवरी को, चौथा चरण 23 फरवरी को, पांचवां चरण 27 फरवरी को, छठा चरण 3 मार्च व सातवें चरण का मतदान 7 मार्च को होगा. वहीं पांचों राज्यों में मतगणना 10 मार्च की जाएगी. इसी के साथ चुनाव की आदर्श आचार संहिता लागू हो गई है. स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के लिए आयोग ने कई नियम बनाए हैं, जिन्हें आदर्श आचार संहिता कहते हैं. आदर्श आचार संहिता का उद्देश्य सभी राजनीतिक दलों के लिए बराबरी का समान स्तर उपलब्ध कराना, प्रचार अभियान को स्वस्थ्य रखना और राजनीतिक दलों के बीच विवाद को टालना है.
सत्ताधारी पार्टी इस दौरान सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग न कर सके, इसके लिए केंद्र और राज्य सरकार के कर्मचारी चुनाव प्रक्रिया पूरी होने तक चुनाव आयोग के कर्मचारी की तरह काम करते हैं. इस दौरान मंत्री या अधिकारी अनुदान, नई योजनाओं की घोषणा, लोकार्पण, शिलान्यास या भूमिपूजन नहीं कर सकते.
सामान्य आचरण के लिए नियम
- राजनीतिक दल या उम्मीदवार जाति, धर्म या भाषा के आधार पर मतभेद नहीं फैलाएंगे.
- आलोचना नीति और काम को लेकर हो, किसी की निजी जिंदगी पर टीका-टिप्पणी नहीं की जानी चाहिए.
- जाति या धर्म के आधार पर वोट की अपील और धार्मिक स्थलों का इस्तेमाल प्रचार के लिए नहीं करेंगे.
- किसी भी व्यक्ति की अनुमति के बिना उसकी भूमि, भवन और परिसर का इस्तेमाल करना गलत.
- मतदाताओं को घूस देना या डराना-धमकाना भ्रष्ट आचरण और अपराध माना जाएगा.
सभा और जुलूस के लिए नियम
- सभा के लिए पुलिस से पहले ही अनुमति लेनी होगी ताकि यातायात और शांति व्यवस्था बनी रहे.
- जुलूस शुरू और समाप्त होने का स्थान और समय पहले से ही तय कर पुलिस को अग्रिम सूचना देंगे.
- मतदान शुरू होने के 48 घंटे पहले से सार्वजनिक सभाओं पर रोक.
मतदान के दिन के लिए नियम
- राजनीतिक दल अपना कैंप या अस्थाई कार्यालय मतकेंद्र से कम से कम 100 मीटर दूर बनाएंगे.
- राजनीतिक दल प्राधिकृत कार्यकर्ताओं को बैज और पहचान पत्र देंगे.
- मतदाताओं को दी जाने वाली पर्ची पर कोई प्रतीक, उम्मीदवार या दल का नाम नहीं होगा.
- मतदान के दिन और इससे 48 घंटे पहले शराब देने या बांटने से दूर रहेंगे.
- मतदाताओं को छोड़कर, ऐसा कोई व्यक्ति बूथ के भीतर प्रवेश नहीं करेगा, जिसके पास चुनाव आयोग का कोई मान्य पास नहीं है.
यदि कोई राजनीतिक दल या उम्मीदवार आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन करता है तो चुनाव आयोग उम्मीदवार को चुनाव लड़ने से रोक सकता है और उसके खिलाफ आपराधिक मुकदमा दर्ज कराया जा सकता है.
आचार संहिता के उल्लंघन में जेल जाने तक के प्रावधान भी हैं. आचार संहिता के उल्लंघन पर नजर रखने के लिए चुनाव आयोग पर्यवेक्षक भी नियुक्त करता है. इसके साथ ही सी-विजिल एप के जरिए आम लोग भी इसकी शिकायत कर सकते हैं.
आदर्श आचार संहिता की शुरुआत 1960 में केरल में राज्य विधानसभा चुनावों को दौरान की गई थी. इसके तहत चुनावी सभाओं, भाषणों, नारों आदि के बारे में राजनीतिक दलों को निर्देश दिए गए थे.
1962 के आम चुनावों में मान्यता प्राप्त दलों को आदर्श आचार संहिता परिचालित किया गया और राज्य सरकारों ने पार्टियों से प्रतिक्रिया मांगी, जिसके बाद से ये बराबर चलन में हैं.
आचार संहिता उल्लंघन के चर्चित मामले
- 2017 में गुजरात विधानसभा चुनावों के दौरान प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने वोट करने के बाद स्याही लगी उंगली को मतदान केंद्र के बाहर हजारों लोगों के सामने लहराया. विपक्षी दलों ने इसे आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन के रूप में देखा. मोदी के खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई.
- उसी चुनाव में गुजरात में अंतिम चरण के मतदान से एक दिन पहले टीवी पर साक्षात्कार देने पर तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की खिंचाई की. चुनाव आयोग ने गुजरात के मुख्य चुनाव अधिकारी बीबी स्वैन को राहुल के साक्षात्कार का प्रसारण करने वाले राज्यों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का निर्देश दिया.
- 2017 में गोवा की एक चुनावी रैली में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर भद्दी टिप्पणी करने का आरोप लगा जिस पर चुनाव आयोग ने फटकार लगाई. EC ने कहा अगर वह मॉडल कोड का उल्लंघन करते रहे तो उनके और उनकी पार्टी के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी.
- 2016 में आदर्श आचार संहिता लागू होने के दौरान पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सार्वजनिक रैली में आसनसोल को जिला बनाने की घोषणा की जिस पर चुनाव आयोग ने नाराजगी जताई. उसी साल असम के तत्कालीन मुख्यमंत्री और वरिष्ठ कांग्रेस नेता तरुण गोगोई एक प्रेस मीट आयोजित करने के लिए सवालों के घेरे में आ गए थे. दरअसल राज्य के 61 निर्वाचन क्षेत्रों में चुनाव होने बाकी थे इसी दौरान उन्होंने प्रेस कॉन्फेंस की थी. गोगोई के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई थी.
- 2014 में भाजपा महासचिव अमित शाह को चुनाव आयोग ने आम चुनाव प्रचार के दौरान उत्तर प्रदेश में दंगा प्रभावित क्षेत्रों में घृणा फैलाने वाले भाषण के लिए नोटिस जारी किया था. दरअसल उन्होंने जाट समुदाय के लोगों से ‘उनके अपमान का बदला लेने’ का आग्रह किया था.