मोबाइल, लैपटॉप बढ़ा रहें है बच्चों में दृष्टि दोष

मार्गदर्शन

लॉकडाउन के कारण शिक्षा तंत्र ने ऑनलाइन स्कूल के जरिए कक्षाएं फिर शुरू कर दिये हैं. सरकार की इस पहल से बच्चों की शिक्षा में रूकावट तो नहीं आ रही है, लेकिन स्क्रीन टाइम बढ़ने से आंखों से संबंधित समस्याएं सामने आ रही हैं. इसके लिए बाल नेत्र चिकित्सक ने बच्चों की आंखों की सुरक्षा के लिए दिशा निर्देश दिए हैं.कोरोना वायरस के साये में जहां पूरी दुनिया रूक रूक कर चल रही है. ऐसे में हमारा शिक्षा तंत्र पूरी कोशिश में लगा है कि बच्चों की शिक्षा का हनन न हो. इसी कवायद का हिस्सा है ऑनलाइन कक्षाएं. अध्यापक तथा अध्यापिकाएं पूरी मेहनत के साथ ऑनलाइम कक्षाओं में बच्चों को पढ़ा रहें हैं और बच्चे लैपटॉप, कंप्यूटर या मोबाइल फोन की मदद से इन कक्षाओं में शामिल होते हैं. इससे बच्चों की शिक्षा के नुकसान से तो हम काफी हद तक बच गए हैं, लेकिन इस डिजीटल पढ़ाई का बच्चों की आंखों पर बुरा असर पड़ रहा है. चिकित्सकों की मानें तो पिछले कुछ महीनों में ऐसे केसेज की संख्या में लगातार बढ़ोतरी हो रही हैं. जहां हर उम्र के बच्चों को आंखों से जुड़ी समस्या का सामना करना पड़ रहा हैं. क्या सिर्फ ऑनलाइन कक्षाएं ही बच्चों में लगातार बढ़ रहें दृष्टि दोष का कारण है!

ऑनलाइन कक्षाएं नहीं मोबाइल स्क्रीन है कारण

डॉ. भाटे बताती हैं कि कोरोना के चलते बच्चों की दिनचर्या सिर्फ उनके घरों तक सिमट कर रह गई है. ऐसे में मनोरंजन के लिए भी बच्चे ज्यादातर इन्ही डिजीटल साधनों पर निर्भर रह गए हैं. चाहे मोबाइल गेम्स हो या फिर फिल्में या फिर मनोरंजन का कोई और साधन, अब दिन भर यदि बच्चा कंप्यूटर या मोबाइल स्क्रीन के सामने बैठेगा तो उसकी आंखों पर असर पड़ना स्वाभाविक है. ऐसे में बच्चों में नजर कमजोर होना, मायोपिया जिसे निकटदर्शिता भी कहते है तथा अन्य तरह की नजर संबंधी परेशानियां भी देखने में आ रही है. इन बीमारियों से बच्चों को कैसे बचाया जा सकता है. इसके लिए एलवी प्रसाद नेत्र संस्थान की तरफ से बच्चों की ऑनलाइन कक्षाओं तथा उनके स्क्रीन टाइम को कम करने के उद्देश्य से एक दिशा निर्देशिका जारी की गई है. जिसमें हर उम्र तथा हर स्तर के बच्चे के लिए लैपटॉप या फिर मोबाइल के सामने बैठने का समय निर्धारित किया गया है.

इस दिशा निर्देशिका के अनुसार 4 से 6 साल के बच्चे को 90 मिनट से ज्यादा किसी भी प्रकार से सामने नहीं बैठना चाहिए. और इन 90 मिनटों के बीच कम से कम एक अंतराल जरूरी है. वहीं 7 से 12 साल से बच्चों के लिए डिजीटल साधनों के उपयोग की समय सीमा 3 से 4 घंटे से अधिक नहीं होनी चाहिए, वो भी कम से कम 2 अंतराल के साथ. यही समय सीमा 12 से 16 साल के बच्चों के लिए 6 से 8 घंटे से अधिक नहीं होनी चाहिए. जिसमें नियमित अंतराल शामिल हो. कुल मिला कर किसी भी परिस्थितियों में लगातार स्क्रीन के सामने बैठना ही नहीं है.

डिजीटल दोस्तों से दोस्ती कैसे निभाएं

मोबाइल, कंप्यूटर, लैपटॉप एक तरह से आज के समय में बच्चों के सबसे खास दोस्त बन गये हैं. अब इस खास दोस्ती का बच्चों के शरीर पर बुरा असर न पड़े, इसके लिए जरूरी है कि बच्चे कुछ नियमों का पालन करें. डॉ. भाटे कहती हैं कि सबसे जरूरी है कि माता-पिता तथा स्वयं कक्षा लेने वाले शिक्षकगण बच्चों को समझाएं कि इन इलेक्ट्रोनिक उत्पादों के साथ वे किस तरह से सावधानी बरतें. कक्षाएं लेना तो बच्चों के लिए जरूरी है, लेकिन कक्षाओं के बाद किसी तरह से वह अपने स्क्रीन पर व्यतीत करने वाले समय को नियंत्रित कर सकते है. जिस भी स्क्रीन पर बच्चे बैठें हो, उससे कम से कम एक हाथ की दूरी बना कर रखें. इसके अलावा बच्चों को बोर्ड गेम्स खेलने के लिए भी प्रोत्साहित किया जा सकता है. कक्षा में अंतराल के दौरान बच्चे आंखों या स्ट्रेचिंग जैसी हल्के-फुल्के शारीरिक व्यायाम भी कर सकते है. जो बच्चे चस्मा पहनते है, उन्हें पढ़ते समय कभी भी अपना चस्मा नहीं हटाना चाहिए.

ज्यादा ऑनलाइन समय बिताने से होने वाली परेशानियां

डॉ. भाटे बताती है कि यदि बच्चे जरूरत से ज्यादा समय ऑनलाइन बिताने लगते है, तो नजर दोष के अलावा बच्चों में मायोपिया, नींद में कमी, तनाव, बेचैनी, व्यवहारात्मक समस्याएं जैसे चिड़चिड़ापन व गुस्सा जैसी समस्याएं देखने में आती है.

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