न्यूयॉर्क । साउथ अफ्रीका में ओमिक्रॉन वेरिएंट की पहचान के बाद विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसे बेहद गंभीर और संक्रामक वेरिएंट बताया है।वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन (डब्ल्यूएचओ) का कहना है कि कई मेडिकल एक्सपर्ट और वैज्ञानिक इस वायरस की जांच कर रहे हैं और कुछ दिन या सप्ताह के अंदर इसे बारे में तथ्य सामने आएंगे।
एक इंटररव्यू में कई महामारी विशेषज्ञों ने कहा कि इस बात के ठोस तथ्य हैं कि ओमिक्रॉन वेरिएंट वैक्सीन के प्रभाव को कम कर सकता है।क्योंकि इस वेरिएंट में पिछले दो वेरिएंट की तुलना में अधिक म्यूटेशन मिले हैं।ओमिक्रॉन में 26 विशेष म्यूटेशन हैं और इनमें से कई म्यूटेशन वैक्सीन द्वारा विकसित एंटीबॉडीज को निशाना बना सकते हैं।इससे पहले डेल्टा वेरिएंट कुछ महीनों के अंदर तेजी से फैला था, जिसने दुनियाभर में लाखों लोगों की जान ले ली थी।न्यूयॉर्क स्थित विल कॉर्नेल मेडिकल कॉलेज में माइक्रोबायलॉजी एंड इम्युनोलॉजी के प्रोफेसर जॉन मूरी ने कहा कि, अभी हमारे सामने सबसे बड़ा सवाल है कि ओमिक्रॉन, डेल्टा के मुकाबले कितनी तेजी से फैलता है और हमें यह जाने की जरुरत है।मेडिकल एक्सपर्ट्स का कहना है कि, वैज्ञानिक पब्लिक डाटाबेस की मददद से यह जानने की कोशिश कर रहे हैं कि डेल्टा वेरिएंट की तुलना में ओमिक्रॉन वेरिएंट के कितने मामले सामने आए हैं।इसमें 2 से 3 दिन का वक्त लग सकता है, इससे इस बात का पता चल सकेगा कि यह वेरिएंट कितनी तेजी से फैलता है।वहीं इस अवधि में वैज्ञानिक यह जानने की कोशिश भी कर रहे हैं कि क्या ओमिक्रॉन वेरिएंट वैक्सीन से मिली सुरक्षा को खत्म कर सकता है।
इस बारे में लैब टेस्ट से वैक्सीनेटेड लोगों के ब्लड सैंपल का डाटा लिया जाएगा, जिससे यह पता लगाया जाएगा कि नए वेरिएंट से एंटीबॉडीज पर क्या असर हुआ है। न्यूयॉर्क स्थित कोलंबिया यूनिवर्सिटी में माइक्रोबायलॉजी के प्रोफेसर डेविड हो का मानना है कि ओमिक्रॉन वेरिएंट में ‘सब्सटेंशनल डिग्री ऑफ रेजिस्टेंस’ दिखाने को मिला है।यह वायरस के स्पाइक प्रोटीन में म्यूटेशन की लोकेशन पर आधारित अध्ययन के बाद पाया गया है।इसलिए वैक्सीन इस वेरिएंट के खिलाफ काम कर पाएगी इसके बारे में स्टडी की जा रही है।वहीं फिलडेल्फिया में पेन इंस्टीट्यूट ऑफ इम्युनोलॉजी के डायरेक्टर जॉन वेरी कहते है किं वैक्सीनेशन की मदद से अस्पताल में भर्ती होने की जरुरत नहीं होगी।वहीं एक अन्य मेडिकल विशेषज्ञ ने कहा कि ओमिक्रॉन के खिलाफ वैक्सीन के प्रभावों को जानने के लिए 3 से 4 सप्ताह का समय लग सकता है और तमाम साइंटिस्ट इस दिशा में प्रयास कर रहे हैं।
मालूम हो कि ओमिक्रॉन वेरिएंट के सामने आने के बाद दुनियाभर में लोगों के मन में यह सवाल उठने लगा है कि यह वायरस कितना घातक और तेजी से फैलता है, क्या यह डेल्टा वेरिएंट से भी ज्यादा संक्रामक है, क्या कोविड-19 वैक्सीन ले चुके लोग भी इसकी जद में आ सकते हैं? ऐसे तमाम सवालों के जवाब जानने के लिए विश्व के सभी साइंटिस्ट अपनी कोशिश में लगे हुए हैं।
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